हिंडनबर्ग मामले (Adani Hindenburg case) में एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट पर बाजार नियामक सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना जवाब दाखिल किया. सेबी ने कहा कि एक्सपर्ट कमिटी ने रिपोर्ट में फैक्ट और कानून की कुछ व्याख्याएं दी हैं, जिसका असर इस मामले की जांच पर पड़ता है. सेबी ने साफ किया कि एक्सपर्ट कमिटी के सामने जो कुछ भी पेश किया गया, वो पहली नजर में उस वक्त तक सेबी के पास उपलब्ध तथ्यों पर आधारित था. जांच पूरी होने के बाद पाए गए तथ्यों पर कानून को लागू करने के आधार पर रिपोर्ट नहीं दी गई थी.
BQ प्राइम की रिपोर्ट के मुताबिक, सेबी ने अपने हलफनामे में कहा कि उसके पास एक एनफोर्समेंट मैनुअल है, जो उसके द्वारा की जाने वाली सभी कार्रवाई पर लागू होता है. हलफनामें में आगे कहा गया है कि मौजूदा रेगुलेटरी रिसोर्सेज के सबसे बेहतर इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए एनफोर्समेंट मैनुअल कई मौकों पर संशोधित किया गया है. कमिटी की रिपोर्ट जांच शुरू करने, उसके निपटान के लिए प्रतिस्पर्धा की निर्धारित समयसीमा की जरूरतों पर भी रोशनी डालती है.
सेबी ने अपने रुख का बचाव करते हुए कहा, "एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट से पता चलता है कि आर्थिक हितधारकों की पहचान करके सेबी द्वारा अनुभव की गई कठिनाइयां कम से कम आंशिक रूप से अपारदर्शी संरचनाओं पर 2014 के प्रावधानों को 2019 में निरस्त किए जाने के कारण थी. हालांकि यह मामला नहीं था."
सेबी ने कहा कि 2018 और 2019 में एफपीआई नियमों में बदलाव के दौरान 80 एफपीआई खुलासे के ढांचे को लगातार कड़ा किया गया था.
इससे पहले कमिटी ने बताया था कि सेबी, आरपीटी संरचना नियमों की जांच कर सकती है. एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट में बाजार नियामक के लिए एक उचित एनफोर्समेंट पॉलिसी को विकसित करने और एक पैमाना तय करने की जरूरत पर जोर दिया गया था.
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