वंदे भारत ट्रेनें, फ्रेट कॉरीडोर और सुरंगें... PM मोदी ने ऐसे किया इंफ्रास्ट्रक्चर का कायाकल्प

PM Modi Documentary Series Episode 4: मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर NDTV खास डॉक्यूमेंट्री सीरीज लेकर आया है. आज सीरीज के चौथे एपिसोड में देखिए मोदी सरकार ने बीते 9 साल में इंफ्रास्ट्रक्चर पर कैसा काम किया.

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कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर जिस रफ्तार से बन रहा है, वैसा पहले नहीं दिखा.

नई दिल्ली:

भारत अर्थव्यवस्था को  5 ट्रिलियन डॉलर की बनाने को लेकर मोदी सरकार (9 Years of Modi Government)लगातार कोशिशें कर रही है. राष्ट्रीय संरचना पाइपलाइन के तहत भारत 2020 से 2025 तक 111 लाख करोड़ रुपये निवेश करने जा रहा है. जिसके अंतर्गत ऊर्जा, सड़क, शहरी बुनियादी ढांचा, रेलवे, एयरपोर्ट जैसे सेक्टर का विकास किया जाएगा. केंद्र में मोदी सरकार (#9YearsOfPMModi) के 9 साल पूरे होने पर NDTV खास डॉक्यूमेंट्री सीरीज लेकर आया है. आज सीरीज के चौथे एपिसोड (PM Modi Documentary Series Episode 4) में देखिए मोदी सरकार ने बीते 9 साल में इंफ्रास्ट्रक्चर (#Infrastructure) पर कैसा काम किया. (यहां देखिए, डॉक्यूमेंट्री सीरीज के चौथे एपिसोड का पूरा वीडियो)

रणनीतिक तौर से अहम कश्मीर घाटी को लद्दाख से जोड़ने वाली जोजिला सुरंग. कश्मीर के सोनमर्ग में जोजिला सुरंग का ताप सर्दी के मौसम में भी तपता रहा. जोजिला सुरंग उन बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में से एक है, जिनके जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए भारत का निर्माण कर रहे हैं. 

इंफ्रास्ट्रक्चर के पैमाने की बात करें, तो पिछले साल के बजट और इस साल के बजट को आप देख लीजिए. हमने 10 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड निवेश किया है. ये 2014 से 5 गुना अधिक है.

नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री

7 हजार करोड़ रुपये की लागत से बन रही जोजिला सुरंग
जोजिला सुरंग एशिया की सबसे लंबी सुरंग है. ये 7 हजार करोड़ रुपये की लागत से बन रही है. 13.14 किलोमीटर लंबी सुरंग हिमालय के विशाल जोजिला दर्रे से होकर गुजरती है. यह सुरंग कश्मीर को लद्दाख में और कारगिल जिले के द्रास कस्बे से जोड़ती है. इसमें चार पुल और चार सुंरगें हैं. अब तक जोजिला सुरंग का 28 फीसदी काम पूरा हो चुका है. इससे एक घंटे से ज्यादा की यात्रा घटकर 20 मिनट की रह जाएगी. सबसे अहम बात ये है कि इस सुरंग से सेना के आने-जाने में बहुत सहूलियत हो जाएगी.

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हर साल बन रहा 10 हजार किलोमीटर हाईवे 
भारत हर साल 10 हजार किलोमीटर हाईवे बना रहा है. 100 वंदे भारत ट्रेनें शहरों को नज़दीक ला रही हैं. अगले 24 महीनों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मेट्रो सिस्टम तैयार हो जाएगी. ढुलाई के लिए 6 नए कॉरीडोर कारोबार के साथ ही यात्रियों के लिए भी सहूलियत लाएगी. कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर जिस रफ्तार से बन रहा है, वैसा पहले नहीं दिखा.

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भारत को 2025-26 में 5 ट्रिलियन डॉलर और 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने के लिए नई सड़कों, हाईवे, एयरपोर्ट और रेलवे की बड़ी अहमियत है. ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर की ये ताकत उभरते हुए मिडिल क्लास को शायद सबसे ज्यादा आकर्षित करती है. इसे पीएम मोदी के प्रशासन की खासियत के तौर पर भी देखा जाता है. 

नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और G-20 के शेरपा अमिताभ कांत बताते हैं, "हम लोगों ने 3 करोड़ लोगों को घर दिए हैं. 3 करोड़ मतलब हमने पूरी ऑस्ट्रेलिया की आबादी को घर दिया है. हम लोगों ने 11 करोड़ टॉयलेट दिए हैं. यानी जर्मनी की जितनी जनसंख्या है, हमने उतने लोगों को टॉयलेट दिए हैं. हमें 24.3 करोड़ पाइप वॉटर दिया है. यानी ब्राजील की जनसंख्या जितने लोगों को पानी मिला है. हमने 55 हजार किलोमीटर सड़क बनाई. 55 हजार मतलब पृथ्वी के व्यास का डेढ़ गुना. प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत रूप से निगरानी रखना और उनक विजन इसकी सफलता के कारण थे."

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ग्रामीण सड़क नेटवर्क की लंबाई  7 लाख के पार पहुंची
सड़कों की बात करें, तो ग्रामीण सड़क नेटवर्क की लंबाई इस साल 7 लाख 29 हजार किलोमीटर पहुंच गई है. पिछले आठ साल में 50 हजार किलोमीटर नेशनल हाईवे बने हैं. ये उससे पहले के आठ साल से दो गुना ज्यादा है. इस साल के बजट में सड़कों और रेलवे को केंद्र सरकार के पूंजी खर्च का लगभग 11 फीसदी हिस्सा मिला है. ये 2014-15 में 2.75 फीसदी था. 2014 से पहले सालाना करीब 600 किलोमीटर रेलवे लाइन का विद्युतिकरण यानी इलेक्ट्रिफिकेशन हुआ था. अब इसकी रफ्तार 4 हजार किलोमीटर प्रति वर्ष हो गई है.

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दिल्ली डिकंजेशन का एक प्लान हमारे विभाग ने तैयार किया था. इसमें हम 65 हजार करोड़ रुपये के अलग-अलग काम कर रहे हैं. अब तक करीब 25 हजार के काम हमने पूरे कर लिए हैं.

नितिन गडकरी

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री

पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय कहते हैं, "कई बार दिल्ली या भारत के दूसरे हिस्सों से आने वाले लोग मेरे राज्य में पहले रेलवे स्टेशन या पहले हवाई अड्डे के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बारे में नहीं जानते. मनोवैज्ञानिक तौर पर ये बहुत अहम है कि पूर्वोत्तर मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए. कनेक्टिविटी की बात करे तो सड़कों और राजमार्गों पर काम साफ दिखता है."

2024 से पहले देश में होंगी 100 वंदे भारत ट्रेनें
2024 से पहले देश के कोने-कोने को जोड़ती 100 वंदे भारत ट्रेनें. ये भारत में निर्मित सेमी हाई स्पीड और सेल्फ प्रोपेल्ड ट्रेनें हैं. यानी इन्हें लोकोमोटिव की जरूरत नहीं पड़ती. 180 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली ये सबसे तेज रफ्तार ट्रेनें हैं.

इंफ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक और मैनेजिंग ट्रस्टी विनायक चटर्जी कहते हैं, "हम बेहतर, ज्यादा तेज और ज्यादा साफ ट्रेनों की तलाश में हैं. इसके लिए 400 और वंदे भारत ट्रेनों का कार्यक्रम है. इनमें से 100 जल्द आनी चाहिए. भारतीय रेलवे का जो पुनरुद्धार हुआ है, इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत असर पड़ा है. लोग इसे देख और महसूस कर सकते हैं."

पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय कहते हैं, "रेलवे के लिए जो करने की जरूरत है, वो बहुत जटिल है. हमे किराये को तर्कसंगत करना होगा. ढुलाई के लिए कॉरीडोर पूरे करने होंगे. मालगाड़ियों की रफ्तार बढ़ानी होगी. सस्ते यात्री टिकट और महंगे माल भाड़े खत्म करने होंगे. तेजी से बढ़त मालभाड़े से आएगी, यात्रियों के किराये से नहीं." (ब्लर्व)

फ्रेट कॉरीडोर से बदलेगा भारतीयों की यात्रा का अनुभव
जिन 6 ढुलाई कॉरीडोर से भारतीयों की यात्रा बदलने वाली है, उनमें से 2 आंशिक रूप से चालू हैं. इनमें से एक मुंबई और दिल्ली के बीच  वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर, दूसरा पंजाब और पश्चिम बंगाल के बीच ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर है. ये जल्द ही पूरे बन जाएंगे. इनसे न सिर्फ मौजूदा लाइनों पर भीड़ कम होगी, बल्कि ट्रेनें और तेजी से चलेंगी. सरकार को उम्मीद है कि नए फ्रेट कॉरीडोर से माल ढुलाई 2030 तक 27 फीसदी से बढ़कर 45 फीसदी हो जाएगा.

9 साल में एयरपोर्ट की संख्या दोगुनी से ज्यादा हुई
भारत में हवाई यात्रा भी बदल रही है. पिछले 9 साल में भारतीय हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है. इंफ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक और मैनेजिंग ट्रस्टी विनायक चटर्जी कहते हैं, "अगर आप मध्यम वर्ग की बात करें, तो छोटे हवाई अड्डों और क्षेत्रीय रास्तों से उनको लाभ हुआ है. अब मध्यम वर्गीय परिवार हवाई यात्राएं कर रहे हैं. ये विकास के ऐसे संकेत हैं, जो दिख रहे हैं. पीएम मोदी के कार्यक्रमों ने लोगों के जीवन को छुआ है."

PM खुद करते हैं प्रगति की समीक्षा
प्रगति, इस योजना का एक अनोखा, महत्वाकांक्षी, बहुउद्देशीय और मल्टीनोडल मंच है. जिसके प्रमुख स्वयं प्रधानमंत्री हैं. वो रेलवे, सडक़ और अन्य विभागों के साथ हर महीने प्रगति की समीक्षा करते हैं. इन परियोजनाओं में एक व्यवस्था है. हर मील का ख़ाका तैयार है. 

विनायक चटर्जी बताते हैं, "आजकल चार स्तर पर निगरानी होती है. प्रधानमंत्री कार्यालय से प्रधानमंत्री की अपनी समीक्षा होती है. मेरे ख़याल से उसे प्रगति मंच कहते हैं जहां वो सीधे ज़िलाधीशों से बात करते हैं कि कोई चीज़ रुकी क्यों हुई है. फिर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का एक विशेष समूह है, जो इसपर नज़र रखता है. नीति आयोग को भी परियोजनाओं की विस्तृत समीक्षा करने का काम दिया गया है. ख़ासकर ऐसी परियोजनाएं जिनके पनपने या बचने की ज़्यादा उम्मीद नहीं है, या फिर उन्हें बंद करने के फ़ैसले होते हैं. इसके अलावा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय भी इसमें पहले से अधिक सक्रिय है."

इन योजनाओं के सेंटर 'गतिशक्ति' है. अलग-अलग मंत्रालयों का मंच अब विभिन्न क्षेत्रों के बीच तालमेल बनाने, कमियों और बर्बादियों को रोकने, बेहतर योजनाएं बनाने, अधिग्रहण में तेजी लाने और समय पर परियोजनाओं के पूरा होने का काम देखते हैं. इस मंच पर बेहतर फ़ैसले करने के लिए आंकड़ों की 1,600 परत हैं. इन्फ़्रा पर ज़ोर तो है,लेकिन इसमें सबसे ज़्यादा ध्यान लोगों पर दिया जा रहा है. उन लोगों पर जिनके जीवन में बाधा पहुंची हो, सबसे ज़्यादा अहमियत उनके पुनर्वास पर है.

विनायक चटर्जी बताते हैं, "पुनर्स्थापन और पुनर्वास पर सरकार की एक तय नीति है, ऐसे नियम हैं जिनके तहत डेवेलपर को, चाहे वो सरकारी हो या निजी उसे विस्थापित लोगों का ध्यान रखना होता है. अगर बड़ा बांध बना कर एक गांव डुबो रहे हैं तो वैकल्पिक ठिकाना, रोज़गार आदि देने होंगे. ये सब स्थापित प्रक्रियाएं हैं. अब पुनर्स्थापन और पुनर्वास इतना बड़ा मुद्दा नहीं रहा जैसे पहले था." 

दुर्गम और नाज़ुक क्षेत्रों में परियोजनाएं ले जाना भी बड़ी चुनौती
सरकार के सामने एक चुनौती थी दुर्गम और नाज़ुक क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं को ले जाना. दरकते हुए पहाड़ों पर सुरक्षित रास्ते कैसे बनाए जाएं? सरकार की एक अहम परियोजना थी 889 किलोमीटर की चारधाम परियोजना का निर्माण. जिससे श्रद्धालु भारत के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में बने गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तक आसानी से पहुंच सके. इस परियोजना से यात्रा का समय 40 प्रतिशत तक कम हो जाएगा.

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भारत में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा मेट्रो नेटवर्क
भारत में दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा मेट्रो नेटवर्क है. यहां रोज़ाना नए रूट पर मेट्रो लाइन बिछ रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में वॉटर मेट्रो की शुरुआत की. एक अनोखी शहरी मास ट्रांज़िट सिस्टम की कोच्चि में शुरुआत हुई है, जो किसी आम मेट्रो सिस्टम जैसा ही सुगम है. इन्फ़्रा क्षेत्र की इस सफलता के कई कारण रहे हैं. भारत की बिजली पैदा करने की क्षमता में 22% की बढ़त हुई है, जबकि अक्षय ऊर्जा की क्षमता पिछले पांच साल में दोगुनी हो गई है. इंटरनेट कनेक्विटी और डिजिटल पेमेंट भी पिछले पांच साल में कई गुना बढ़े हैं. 

विश्व बैंक की नई रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि तेज़ी से बढ़ती हुई शहरी आबादी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए भारत को अपने शहरी इन्फ़्रा में अगले 15 साल के दौरान 840 अरब डॉलर का निवेश करना होगा. 2036 तक 60 करोड़ लोग यानी भारतीय आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा शहरों में रह रहा होगा, जिससे शहरी सुविधाओं पर बहुत दबाव पड़ेगा.

विनायक चटर्जी कहते हैं, "भारत का भू-राजनीति में रुतबा बहुत बढ़ा है. बैंकिंग प्रणाली में सुधार से कारोबार में आसानी तो आई है ही, लेकिन आम चुनावों से पहले मैं देखना चाहूंगा कि वो कौन सी योजनाएं हैं, जो आम आदमी देख सकते हैं, छू सकते हैं और लाभ उठा सकते हैं? 2024 चुनाव के लिहाज से मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी कामयाबी होगी नल से जल हर घर में तेजी से पहुंचाना. विशेषज्ञों का कहना है कि ये दुनिया की सबसे असरदार विकास परियोजनाओं में से एक है."

भारत की इन्फ़्रा स्टोरी पिछले 9 साल की सबसे कामयाब कहानियों में एक है. इतने बड़े पैमाने पर इतनी तेज़ी से काम नए मापदंड स्थापित कर रहा है. देश में नई नई चीज़ें बन रही हैं, लेकिन सरकार को ये रफ़्तार बनाए रखनी है. ताकि विकास के साथ साथ निवेश भी होता रहे और जनता को लाभ मिलता रहे.

सीरीज के पहले 3 एपिसोड आप यहां देख सकते हैं:-

एपिसोड 1- कूटनीति

एपिसोड-2 महिला सशक्तीकरण

एपिसोड-3 कल्याणकारी योजनाएं