आपातकाल के 50 साल: दो महारानियां भी हुई थीं गिरफ्तार, कैसे हुई थी दोनों की तिहाड़ से रिहाई

देश में बुधवार को आपातकाल की 50वीं बरसी मनाई जाएगी. आपातकाल में नागरिक सुविधाएं स्थगित कर हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तार किए गए लोगों में अधिकतर विपक्ष के नेता थे. इन लोगों में दो महारानियां भी शामिल थीं. आप जानते हैं कि वो कौन थीं.

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  • इंदिरा गांधी की सरकार ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी.
  • इस दौरान प्रेस पर सेंसरशिप लगाकर नागरिकों की स्वतंत्रता में कटौती कर दी गई थी.
  • जयपुर की महारानी गायत्री देवी को 30 जुलाई 1975 को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेजा गया था.
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नई दिल्ली:

इंदिरा गांधी की सरकार ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी. यह मार्च 1977 तक चला था.सरकार ने नागरिकों की स्वतंत्रता में कटौती करके प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी थी. इन 21 महीनों में सरकार ने हजारों नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था. इंदिरा गांधी की सरकार ने जिन लोगों को गिरफ्तार करवाया था, उनमें दो महारानियां भी शामिल थीं. आइए जानते हैं कि आपातकाल में कौन सी दो महारानियां गिरफ्तार की गई थीं और कब हुई थी, उनकी रिहाई. 

महारानी गायत्री देवी की गिरफ्तारी

भारत की राजनीति में इंदिरा गांधी और राजस्थान के जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी की प्रतिद्वंद्विता मशहूर है. ऐसे में आपातकाल की घोषणा के बाद जयपुर राजघराना सरकार के निशाने पर आ गया. सरकारी अधिकारियों ने इस घराने के महलों पर छापेमारी शुरू कर दी थी. उस समय गायत्री देवी संसद सदस्य थीं. वो स्वतंत्र पार्टी के नाम से एक राजनीतिक दल चलाती थीं. जिस समय देश में आपातकाल लगा, उस समय  वह मुंबई में इलाज कर रही थीं.वो 30 जुलाई, 1975 को दिल्ली पहुंचीं. इसके बाद ही पुलिस ने उन्हें विदेशी विनिमय और स्मगलिंग विरोधी कानून में गिरफ्तार कर लिया गया.उनके साथ उनके बटे भवानी सिंह को भी पुलिस ने पकड़ा था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि उनके पास विदेश यात्रा से बचे कुछ डॉलर हैं, जिनका हिसाब उन्होंने नहीं दिया है.मां-बेटे को दिल्ली की मशहूर तिहाड़ जेल में रखा गया था. 

ग्वालियर राजघराने की राजमात विजय राजे सिंधिया को तीन सितंबर 1975 को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल लाया गया था. जेल अधिकारियों ने पहले दोनों महारानियो को एक ही कमरे में रखने की सोची थी. लेकिन इसकी खबर लगते ही गायत्री देवी ने विरोध शुरू कर दिया था. उनका कहना था कि इससे उनकी निजता प्रभावित होगी और उन दोनों की आदतें अलग-अलग हैं. उनकी इस अपील को जेल अधिकारियों ने मान लिया था. विजयराजे सिंधिया को तिहाड़ की एक दूसरी कोठरी में रखा गया. वहीं गायत्री देवी के बेटे भवानी सिंह को एक ऐसे कमरे में रखा गया था. उनके कमरे में बाथरूम भी था. भवानी सिंह 'महावीर चक्र' से सम्मानित सैनिक थे.

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राजमाता और महारानी का कमरा

इस घटना का जिक्र गायत्री देवी ने अपनी आत्मकथा 'द प्रिंसेज रिमेंबर्स' में भी किया है. उन्होंने लिखा है, "मुझे योग के लिए अपने कमरे में थोड़ी जगह चाहिए थी. मुझे रात में पढ़ने और संगीत सुनने की भी आदत थी.हम दोनों की आदतें अलग-अलग थीं. वो (विजयराजे सिंधिया) अपना अधिकतर समय पूजा-पाठ में बिताती थीं."

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महारानी गायत्री देवी के बेटे जगत उन्हें इंग्लैंड से 'वोग' और 'टैटलर' पत्रिका के अंक तिहाड़ में भेजा करते थे. जिन्हें पढ़ते हुए वो अपना समय बिताती थीं. वहीं कुछ लोगों उन तक एक रेडियो सेट भी पहुंचा दिया था. इस पर वह समाचार सुना करती थीं. लेकिन राजमहलों में रहने वाली गायत्री देवी जेल के दूसरे कैदियों से दूरी बनाकर रखती थीं.

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गायत्री देवी ने अपनी और अपने बेटे की रिहाई के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था.इसमें उन्होंने देश की बेहतरी के लिए प्रधानमंत्री और उनके कार्यक्रमों का समर्थन करने का आश्वासन दिया था. इसके साथ ही उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का भी वादा किया था. इसके बाद 11 जनवरी, 1976 को उनकी रिहाई हो गई. तिहाड़ में उन्होंने कुल 156 रातें बिताईं थीं.

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विजयराजे सिंधिया की गिरफ्तारी

राजमाता विजयराजे सिंधिया को भी आर्थिक अपराध की धाराओं में गिरफ्तार किया गया था. सरकार ने उनके बैंक खाते सील कर दिए थे. सिंधिया ने अपनी आत्मकथा 'प्रिंसेज़' में लिखा कि जब वो तिहाड़ पहुंची तो जयपुर की महारानी गायत्री देवी ने उनका स्वागत किया था. इसके बाद उन्होंने राजमाता को जेल में होने वाली असुविधा की जानकारी दी थी. 

विजयराजे सिंधिया ने अपनी किताब में लिखा है, "कमरे में हर समय बदबू फैली रहती थी. खाना खाते समय हम अपना एक हाथ भिनभिनाती हुई मक्खियों को दूर करने में इस्तेमाल करते थे. जब रात में मक्खियां सोने चली जाती थीं तो उनका स्थान मच्छर और दूसरे कीड़े मकोड़े ले लेते थे. पहले महीने मुझे एक भी व्यक्ति से मिलने नहीं दिया गया. मेरी बेटियों को पता ही नहीं था कि मुझे किस जेल में रखा गया है. रात में मेरे कमरे में एक लाइट जलती थी जिसके बल्ब के ऊपर कोई शेड नहीं था."

जेल में रहते हुए ही विजयराजे सिंधिया बीमार पड़ गईं. उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया.वहां उन्हें एक प्राइवेट रूम में रखा गया था. उनकी सुरक्षा के लिए कमरे के बाहर एक संतरी बैठा रहता था. किसी को भी उनसे मिलने की इजाजत नहीं थी.उन्हें अस्पताल में ही बताया गया कि उन्हें स्वास्थ्य कारणों से पेरोल पर छोड़ा जा रहा है. जब वो तिहाड़ से रिहा हुईं तो उनकी तीनों बेटियां उन्हें लेने के लिए जेल के गेट पर ही खड़ी थीं. 

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