आपातकाल के 50 साल: मीडिया पर भी चला था इंदिरा गांधी का चाबुक, अखबारों ने कैसे जताया था विरोध

देश आज आपातकाल की 50वीं बरसी मनाई जा रही है. आइए इस अवसर पर याद करते हैं कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने किस तरह से भारत की मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश की थी.

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  • देश में आज आपातकाल की 50वीं बरसी मनाई जा रही है.
  • देश में आपातकाल 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी की सरकार ने लागू किया था.
  • इस दौरान मीडिया पर कई तरह की पाबंदियां लगाई गई थीं और पत्रकारों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया गया था.
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नई दिल्ली:

देश आज आपातकाल की 50वीं बरसी मना रहा है. इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लागू कर दिया था.आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने दस्तखत किए थे.आपातकाल के दौरान भारत में मीडिया पर भी कई तरह की पाबंदियां लगा दी गई थीं. अखबारों और पत्रिकाओं  में खबरें प्रकाशित करने से पहले अधिकारियों से इजाजत लेनी पड़ती थी. इसका भारत की मीडिया ने डटकर मुकाबला किया था. पूरे आपातकाल के दौरान देश में दो सौ से अधिक पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. 

सरकारों ने कटवा दी थी अखबारों की बिजली

आपातकाल की घोषणा होते ही पुलिस और अधिकारी सक्रिय हो गए थे. आपातकाल से जुड़ी खबरें सामने न आने पाए इसके लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने कई तरह के उपाए किए थे.इनमें से एक अखबारों की बिजली काट देना. इसके पीछे की सोच यह थी कि जब बिजली ही नहीं रहेगी तो मशीने नहीं चल पाएंगी. जब मशीनें नहीं चल पाएंगी तो अखबार कैसे छपेगा. दिल्ली में बहादुर शाह जफर रोड पर अधिकांश अखबारों के दफ्तर हैं. ऐसे में दिल्ली में सरकार ने इस रोड पर स्थिति अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी थी. इसके अलावा सरकार ने अखबारों और पत्रिकाओं को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए उनको मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगा दी थी.

सरकार की ओर से दिए गए आदेश के मुताबिक काम करने से मना करने पर पत्राकारों को जेल में भेजा जाने लगा था. जिन पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया था उनमें मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर और केआर मलकानी शामिल थे. इसके अलावा महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी के नेतृत्व में निकलने वाली साप्ताहिक पत्रिका 'हिम्मत' को कुछ आपत्तिजनक खबरें प्रकाशित करने के आरोप में जुर्माना लगाया गया था.

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न्यूज एजेंसियों का कर दिया था विलय

देश और दुनिया की खबरों को पाठकों तक पहुंचाने में समाचार एजेंसियों की बड़ी भूमिका होती थी. इसी को ध्यान में रखते हुए इंदिरा गांधी की सरकार ने देश की चार प्रमुख एजेंसियों का विलय कर दिया था.सरकार ने जिन एजेंसियों का विलय किया था, वो थीं- प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती. इन चारों एजेंसियों के विलय के बाद 'समाचार'नाम की एक नई एजेंसी का गठन किया गया था.इस एजेंसी की खबरों पर निगरानी रखने के लिए सरकार ने प्रेस इनफारमेशन ब्यूरो (पीआईबी) के एक अधिकारी को तैनात कर दिया था. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि अखबारों में केवल सरकार के पक्ष वाली खबरें ही पहुंचें.  

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जब अखबार ने खाली छोड़ दी थी संपादकीय वाली जगह

आपातकाल के दौरान 1976 में 80 लाख से अधिक पुरुषों की नसबंदी कर दी गई थी. इनमें से अधिकांश लोगों की नसबंदी जबरदस्ती करवाई गई थी. नसबंदी अभियान को इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के दिमाग की उपज माना जाता है. इमरजेंसी के दौरान पत्रकारों को संजय गांधी और नसबंदी से जुड़े उनके परिवार नियोजन कार्यक्रम की प्रशंसा करने और विपक्ष की खबरों को कम करके छापने के लिए कहा गया था. 

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इसके अलावा अखबारों को अगले दिन का संस्करण छापने के लिए सरकार ने मंजूरी भी लेनी होती थी. इस तरह की सेंसरशिप के खिलाफ मशहूर अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने 28 जून, 1975 के अपने संस्करण में संपादकीय वाली जगह को खाली छोड़ कर छापा था. 

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