50 हजार लोग और दाल-बाटी-चूरमे का स्‍वाद... जयपुर में 100 साल बाद लौटी राजा-महाराजाओं वाली परंपरा 'ज्‍योणार'

जयपुर में रियासतकालीन परंपरा को जीवंत करते हुए ‘जयपुर की ज्योणार’ का आयोजन किया गया. सांगानेरी गेट के पास अग्रवाल कॉलेज ग्राउंड में हो रहे इस भव्य आयोजन में 50 हजार से अधिक लोगों को देसी घी में बनी दाल-बाटी-चूरमा परोसा गया.

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  • जयपुर में राजा-महाराजाओं की सदियों पुरानी परंपरा ज्योणार का आयोजन 100 साल बाद अग्रवाल कॉलेज ग्राउंड में भव्य रूप से किया गया.
  • इस सामूहिक भोज में करीब पचास हजार लोगों को देसी घी में बना दाल-बाटी-चूरमा परोसा गया, जिसमें प्रवेश कूपन से ही संभव था.
  • जयपुर नगर निगम हेरिटेज महापौर कुसुम यादव ने कहा कि आयोजन का उद्देश्य सभी जाति-धर्म और वर्गों को एक जाजम पर बैठाकर जयपुर की परंपरा से जोड़ना है.
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जयपुर:

राजा-महाराजाओं के दौर की सदियों पुरानी परंपरा ‘ज्योणार' को जयपुर में एक बार फिर जीवंत हो उठी. किया गया. अग्रवाल कॉलेज ग्राउंड में आयोजित इस भव्य सामूहिक भोज में करीब 50 हजार लोगों ने देसी घी में बनी शुद्ध दाल-बाटी-चूरमे का स्वाद लिया. इस आयोजन के जरिए ना केवल स्वाद परोसा गया, बल्कि जयपुर की सांस्कृतिक विरासत, लोक कलाएं और सामाजिक एकजुटता की झलक भी देखने को मिली. 100 साल बाद लौटे इस आयोजन ने रियासतकालीन यादों को फिर से ताजा कर दिया. 

जयपुर में रियासतकालीन परंपरा को जीवंत करते हुए ‘जयपुर की ज्योणार' का आयोजन किया गया. सांगानेरी गेट के पास अग्रवाल कॉलेज ग्राउंड में हो रहे इस भव्य आयोजन में 50 हजार से अधिक लोगों को देसी घी में बनी दाल-बाटी-चूरमा परोसा गया. भोजन के लिए एंट्री केवल कूपन से ही दी गई, जो शहर के प्रमुख मंदिरों से वितरित किए गए. 

एक जाजम पर हर जाति-धर्म और वर्ग के लोग 

जयपुर नगर निगम हेरिटेज महापौर कुसुम यादव ने ख़ुद अपने हाथों से भोजन परोसा. एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने कहा कि हैं कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि सभी जाति-धर्म और वर्गों को एक जाजम पर बैठाकर जयपुर की परंपरा से जोड़ना है. इस परम्परा को फिर से शुरू किया गया है. 

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कार्यक्रम स्थल पर जयपुर की कलाओं, हस्तशिल्प और इतिहास से जुड़ी झांकियां भी लगाई गई. आयोजकों का मानना है कि इससे नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का अवसर मिलेगा. 

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500 हलवाई और साढ़े 12 हजार किलो आटा

इस आयोजन में भोजन तैयार करने के लिए 500 हलवाई और 200 सपोर्ट स्टाफ जुटे. रसोई में 12,500 किलो आटा-बेसन, 1500 किलो दाल, 1200 किलो मावा, 160 पीपे देसी गाय का घी और 1200 किलो शक्कर जैसी सामग्री का उपयोग किया गया. बारिश को ध्यान में रखते हुए आयोजन स्थल पर तीन वाटरप्रूफ डोम लगाए गए. इनमें दो डोम 330 फीट लंबे और 200 फीट चौड़े, जबकि एक डोम 250 फीट लंबा और 50 फीट चौड़ा है. कुल 1000 टेबल्स पर एक साथ 5000 लोगों के  टेबल-कुर्सियों पर बैठकर भोजन करने की व्‍यवस्‍था की गई. 

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सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक

‘ज्योणार' शब्द अपने आप में राजघरानों की उस परंपरा को समेटे है, जिसमें राजा अपनी प्रजा को आमंत्रित कर भोजन कराता था. अब इसी परंपरा को शहर की सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में पेश किया गया है. आयोजन के दौरान सुरक्षा के लिए 100 पुलिसकर्मी, 100 प्राइवेट गार्ड और 500 स्वयंसेवक (300 पुरुष और 200 महिलाएं) तैनात किए गए हैं.

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कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जयपुर की 'ज्योणार' अब केवल भोज नहीं, बल्कि शहर की सांस्कृतिक आत्मा का उत्सव बन गया है, जहां स्वाद के साथ-साथ इतिहास और एकता की खुशबू भी परोसी जा रही हैं.

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