लोकसभा के ‘प्रोटेम स्पीकर' (अस्थायी अध्यक्ष) की सहायता करने वाले पीठासीन अधिकारियों की सूची में नामित विपक्षी नेता इस जिम्मेदारी को अस्वीकार करने पर विचार कर रहे हैं. एक सूत्र ने शनिवार को यह जानकारी दी.
यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब विपक्षी दलों ने भर्तृहरि महताब को ‘प्रोटेम स्पीकर' के रूप में नियुक्त करने पर आपत्ति जताई है.
ओडिशा की कटक लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद महताब को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 95(1) के तहत ‘प्रोटेम स्पीकर' नियुक्त किया था, ताकि वे 26 जून को अध्यक्ष के चुनाव तक लोकसभा के पीठासीन अधिकारी के कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें.
अठारहवीं लोकसभा के लिए निर्वाचित सदस्यों के शपथ ग्रहण के लिए संसद के विशेष सत्र के दौरान ‘प्रोटेम स्पीकर' की सहायता के लिए पीठासीन अधिकारियों की एक सूची भी जारी की गयी थी.
विपक्षी दलों के सूत्रों ने कहा कि तीन विपक्षी दलों के सांसद-कांग्रेस नेता के. सुरेश, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता सुदीप बंद्योपाध्याय और द्रविड मुनेत्र कषगम के नेता टी आर बालू को ‘प्रोटेम स्पीकर' की सहायता के लिए नामित किया गया, लेकिन वे सूची का हिस्सा नहीं होने पर विचार कर रहे हैं.
भाजपा सदस्य राधा मोहन सिंह और फग्गन सिंह कुलस्ते भी इस सूची का हिस्सा हैं. कांग्रेस के कई नेताओं ने महताब की इस पद पर नियुक्ति को लेकर आपत्ति जताई है, क्योंकि के. सुरेश का कार्यकाल उनसे (महताब से) अधिक रहा है.
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा कि महताब को इसलिए चुना गया, क्योंकि निचले सदन के सदस्य के रूप में उनका कार्यकाल सबसे लंबा है. रीजीजू ने कहा कि सुरेश आठ बार सांसद रहे हैं, लेकिन 1998 और 2004 में वह लोकसभा के सदस्य नहीं थे, इसलिए संसद के निचले सदन में उनका कार्यकाल निरंतर नहीं रहा.
कांग्रेस ने सरकार पर आठ बार के सांसद सुरेश के स्थान पर सात बार के सांसद महताब को ‘प्रोटेम स्पीकर' चुनकर ‘‘संसदीय मानदंडों को नष्ट करने'' का आरोप लगाया है.