डेनमार्क की एक अदालत ने भारत के उस अनुरोध को खारिज (Arm Smuggler Niels Holcs Extradite Case) कर दिया है, जिसमें उन्होंने 29 साल पुराने हथियार तस्करी मामले के आरोपी नील्स होल्क के प्रत्यर्पण की अपील की थी. कोर्ट ने गुरुवार को इस अपील को खारिज कर दिया. नील्स ने साल 1995 में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक कार्गो प्लेन से रॉकेट लॉन्चर, मिसाइलें और असॉल्ट राइफलें पहुंचाने की बात को स्वीकार किया था. भारत का आरोप है कि देश विरोधी किसी संगठन के लिए ये हथियार भेजे गए थे. भारतीय अधिकारियों का दावा है कि नील्स एक आतंकवादी है. उसने 1995 में सेना से लड़ने के लिए पश्चिम बंगाल के विद्रोहियों को हथियार मुहैया करवाए थे.
फिर भारत नहीं आ सका हथियार तस्कर नील्स
डेनमार्क की हिलेरोड जिला अदालत इस बात पर सुनवाई कर रही थी कि नील्स के अपराध या बेगुनाही को लेकर भारत के प्रत्यर्पण की अपील को स्वीकार किया जाए या नहीं. अदालत ने कहा कि नील्स होल्क को भारत को सौंपना डेनमार्क के प्रत्यर्पण नियमों के खिलाफ होगा. उनको संदेह है कि भारत के आश्वासन के बाद भी उसे अमानवीय व्यवहार झेलना पड़ सकता है. दरअसल होल्क के वकील जोनास क्रिस्टोफरसेन ने कहा कि भारत की तरफ से दी गई गारंटी वैध नहीं है. अभियोजकों के पास कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए अब तीन दिन का वक्त है. बता दें कि सुनवाई से पहले नील्स होल्स ने डेनिश रेडियो डीआर से कहा था कि प्रत्यर्पण किए जाने पर मेरी जान को खतरा है.
नील्स होल्क की गिरफ्तारी से जुड़ी जानकारी
- नील्स होल्क को साल 2010 में गिरफ्तार किया गया था.
- डेनिश अधिकारियों ने प्रत्यर्पण पर भारत के साथ एक समझौता किया था.
- समझौते में यह गारंटी भी शामिल थी कि उसे मौत की सजा नहीं दी जाएगी.
- वह भारतीय जेल के बजाय डेनिश जेल में दी गई किसी भी सजा को काटेगा.
- डेनिश जिला अदालत ने यातना और दुर्व्यवहार के डर से 2011 में फैसले को पलट दिया था.
- एक अपील कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा था.
- भारत ने 2016 में फिर से होल्क के प्रत्यर्पण की अपील की थी.
- इस मामले की वजह से सालों तक डेनिश-भारतीय संबंध तनावपूर्ण रहे.
पैराशूट से भेजा था हथियारों का जखीरा
नील्स होल्स ने पश्चिम बंगाल में पैराशूट से चार टन हथियार भेजने की बात स्वीकार की थी. उसने कहा था कि इन हथियारों की जरूरत उसे स्थानीय कम्युनिस्ट अधिकारियों से बचाव के लिए पड़ी थी. भारतीय वायुसेना द्वारा रोके जाने के दौरान नील्स होल्स बुल्गारिया से हथियार पहुंचाने वाले रूसी मालवाहक विमान से भागने वाला एकमात्र यात्री था. जब कि छह अन्य यूरोपीय नागरिक पकड़ लिए गए थे. उन पर मुकदमा चलाकर जेल में डाल दिया गया था, हालांकि बाद में वह रिहा हो गए थे. नई दिल्ली का दावा है कि होल्क, किम डेवी के नाम से फेमस था. वही इस प्लानिंग का मास्टरमाइंड था. वह साल 1996 में नेपाल और फिर डेनमार्क भागने में सफल रहा.
डेनमार्क को नील्स की सुरक्षा का डर
भारत सख्त तौर पर चाहता है कि होल्क पर मुकदमा चलाया जाए. उसने होल्क की सुरक्षा का वादा डेनमार्क से किया है. लेकिन अदालत ने कहा कि नई दिल्ली के वादों के बावजूद उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकती. बचाव पक्ष को उम्मीद है कि आरोपी अब अपनी लाइफ आराम से जी सकेगा. होल्क के वकील जोनास क्रिस्टोफरसन का कहना है कि वह "फैसले से बहुत संतुष्ट हैं" लेकिन उम्मीद है कि अभियोजन पक्ष फिर से अपील करेगा. इसके बाद भी उन्होंने विश्वास जताया कि डेनिश अदालत प्रणाली उनके पक्ष में तीन अलग-अलग फैसलों के बाद होल्क की रक्षा करेगी.
"डेनमार्क में बोझ भरी जिंदगी जी रहा नील्स"
वकील ने उम्मीद जताई कि यह मामला जल्द से जल्द खत्म हो जाए. डेनिश कानूनी प्रणाली यह सुनिश्चित करेगी कि उसे कभी भारत में प्रत्यर्पित नहीं किया जाएगा.वकील क्रिस्टोफ़रसेन का कहना है कि होल्क जी तो रहा है लेकिन वह कहीं जा नहीं सकता. डेनमार्क में जीवन उस पर बोझ की तरह है. उसको 28 सालों से बिना किसी तथ्य के आतंकवादी कहा जा रहा है.