इलाज के दौरान 10 माह के शिशु की मौत, माता-पिता ने उसका अंग दान कर बचाई दो रोगियों की जान

शिशु के माता-पिता ने कहा, 'हमने अंग दान के लिए इसलिए सहमति जताई कि हम जानते थे कि इससे किसी और को मदद मिल सकती है और उन्हें उस मानसिक पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ेगा जिससे हम गुजर रहे थे. हम जानते थे कि ऐसा करना सही काम है.'

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प्रतीकात्मक तस्वीर

चंडीगढ़: चंडीगढ़ के एक अस्पताल में इलाज के दौरान 10 माह के शिशु की मौत हो जाने पर उसके माता-पिता ने उसका अंग दान करने का फैसला किया, जिससे दो रोगियों की जान बच गई. बच्चे के माता-पिता के इस साहसिक फैसले के बाद, जिंदगी के लिए जूझ रहे दो लोगों को नया जीवन मिला. इनमें से एक व्यक्ति नयी दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बाइलिरी साइंसेज (आईएलबीएस) में और दूसरा यहां पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में भर्ती है. दोनों के व्यक्तियों के अंगों ने काफी हद तक काम करना बंद कर दिया था.

पीजीआईएमईआर के निदेशक डॉ. विवेक लाल ने संस्थान की ओर से शुक्रवार को हरियाणा के यमुनानगर जिले के जगाधरी क्षेत्र के एक गांव में रहने वाले शिशु के परिवार के प्रति आभार जताया. लाल ने कहा, 'यह एक बेहद कठिन निर्णय है, लेकिन अंग दान करने वाला परिवार दोनों रोगियों के लिए उम्मीद की किरण बन गया.'

शिशु के माता-पिता ने कहा, 'हमने अंग दान के लिए इसलिए सहमति जताई कि हम जानते थे कि इससे किसी और को मदद मिल सकती है और उन्हें उस मानसिक पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ेगा जिससे हम गुजर रहे थे. हम जानते थे कि ऐसा करना सही काम है.'

पीजीआईएमईआर द्वारा शुक्रवार को यहां जारी एक बयान के अनुसार, बच्चा 12 जुलाई को अपने पालने से गिरने के बाद सिर में घातक चोट लगने से कोमा में चला गया था. परिजन शिशु को स्थानीय सिविल अस्पताल और फिर एक निजी अस्पताल ले गए.

बयान में कहा गया है कि हालांकि, बच्चे को 17 जुलाई को 'बेहद गंभीर हालत' में पीजीआईएमईआर में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां दो दिन बाद इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई.

दुखी पिता ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि हमारे बेटे की कहानी उन परिवारों को प्रेरित करेगी जो खुद को इसी स्थिति में पाते हैं.' पीजीआईएमईआर के अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विपिन कौशल ने कहा, 'परिवार की सहमति के बाद, हमने उनके यकृत (लीवर) और गुर्दे (किडनी) को सुरक्षित रखा लिया था. दानकर्ता के अंग उपलब्ध होने पर हर कोई तेजी से अपने काम में जुट गया.” इसके बाद इन अंगों को जरूरतमंद रोगियों के शरीर में प्रतिरोपित कर दिया गया.

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