महाराष्ट्र में नाट्यगृह खुले, लंबे अरसे तक बेरोजगार रहे कर्मचारियों को मिली राहत

लॉकडाउन में नाट्यगृहों के बंद रहने से प्रोड्यूसर और कलाकारों के रोजगार पर भी पड़ा बुरा असर, शुक्रवार से सिनेमा हॉल और नाट्यगृह को दोबारा शुरू किया गया

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मुंबई:

महाराष्ट्र में शुक्रवार से सिनेमा हॉल और नाट्यगृह को दोबारा शुरू किया गया है. कई जगहों पर शनिवार से नाट्यगृहों में कार्यक्रम होने लगे हैं. इन नाट्यगृहों में काम करने वाले लोगों में कई ऐसे हैं जिनके लिए पिछले डेढ़ साल चुनौतीपूर्ण रहे और वे महीनों तक बेरोजगार रहे. मुंबई के विले पार्ले इलाके में शनिवार को नाट्यगृह में होने वाले नाटक से पहले कर्मचारियों और कलाकार व्यस्त नजर आए. महीनों बाद लाइट, साउंड की टेस्टिंग हो रही थी, नाटक का सेट लग रहा है. महाराष्ट्र सरकार ने शुक्रवार से नाट्यगृहों को शुरू करने की अनुमति दी. महीनों बाद महेंद्र भाम्बी नाट्यगृह पहुंचे. जब सब कुछ बंद था, तब इन्होंने कैसे गुजारा किया वह यही जानते हैं. यही हाल 12 साल से साउंड ऑपरेटर का काम करने वाली हर्षला जाधव का है.

लाइट ऑपरेटर महेंद्र भाम्बी ने कहा कि ''मार्च 2020 से दिसंबर 2020 तक मैं घर में ही बैठा था. घर बैठकर प्याज, आलू, अंडे बेचता था. बाहर जाने की अनुमति नहीं थी.'' साउंड ऑपरेटर हर्षला जाधव ने बताया कि ''बंद होने के कारण, एक्सपीरियंस इसी में था तो कहीं काम नहीं मिला. माता-पिता पर दबाव आ गया. कोरोना के समय सभी परेशान थे. बहुत तकलीफों से गुजरना पड़ा.''

नाट्यगृहों के बंद होने का सबसे ज़्यादा असर बैक स्टेज आर्टिस्टों पर पड़ा था. इनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने ढाई दशक से ज़्यादा समय तक यही काम किया. अब यह सभी खुश हैं कि क्योंकि अब नाट्यगृह खुल गए हैं. ड्रेस मेन एकनाथ तलगांवकर ने कहा कि ''मेरे भाई का लड़का काम करता था, उसने मुझे संभाला. इसके अलावा मैं कुछ नहीं कर पाया.. मैं विकलांग हूं, कहीं नौकरी नहीं ढूंढ सकता था और उम्र की वजह से नौकरी भी कोई नहीं देता था. मेरी उम्र 64 है.''

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अब थिएटरों-सिनेमा हॉलों में 50 फीसदी सीटें भरी जा सकती हैं. पहले लॉकडाउन के बाद ये खुले थे, लेकिन दो महीनों बाद ही फिर बंद कर दिए गए. इसका निर्माताओं पर बहुत असर पड़ा. निर्माता और निर्देशक ऋषिकेश गोसालकर ने कहा कि ''एक प्ले चलने लगा और लॉकडाउन हो गया. जब पूरा खर्च करने के बाद शो बंद होता है, तो प्रोड्यूसर को नुकसान होता है. आर्टिस्टों ने रिहर्सल की थी, तैयारियां की थीं और उसके बीच में जाकर शो बंद हो जाता है तो केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी आदमी डिस्टर्ब हो जाता है.''

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थिएटर में जो लोग यह काम करते आए हैं, डेढ़ साल में उनके बारे में किसी ने नहीं सोचा. उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा.. अब जब चीज़ें खुल रही हैं, तो उनकी दुआ और उम्मीद यही है कि इसे दोबारा बंद ना किया जाए.

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