कांग्रेस और प्रशांत किशोर की वार्ता के बीच IPAC ने टीआरएस से मिलाया हाथ

प्रशांत किशोर जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि वो शनिवार से ही हैदराबाद में चंद्रशेखर राव के आधिकारिक आवास में ठहरे हुए हैं.  

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प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की संभावना
हैदराबाद:

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के कांग्रेस ( Congress) में शामिल होने की संभावनाओं के बीच इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPAC) ने तेलंगाना राष्ट्र समिति से हाथ मिलाया है. टीआरएस की अगुवाई तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव करते हैं. जबकि आईपीएसी की कमान कभी प्रशांत किशोर के हाथों में थी. इस कंपनी ने बंगाल आंध्र प्रदेश कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में अलग-अलग दलों के साथ काम किया है. प्रशांत किशोर जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि वो शनिवार से ही हैदराबाद में चंद्रशेखर राव के आधिकारिक आवास में ठहरे हुए हैं.  राव और आईपीएसी के बीच चुनावों के लिए गठजोड़ काफी समय से चर्चा में है. 

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सूत्रों ने कहा है कि राव की पार्टी के साथ समझौता पिछले कुछ समय से होने के आसार थे. लेकिन प्रशांत किशोर की कांग्रेस पार्टी से बातचीत और उसे दोबारा मजबूत करने की कवायद के बीच इसे बेहद अहम माना जा रहा है. प्रशांत किशोर ने मिशन 2024 के तहत कांग्रेस के समक्ष अहम प्रजेंटेशन दिया है. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य बड़े नेताओं के साथ मुलाकात की है. कथित तौर पर उन्होंने कांग्रेस को किसी फैसले के लिए दो मई तक की डेडलाइन दी है. माना जा रहा है कि सोमवार को कांग्रेस की अहम बैठक के दौरान इस बाबत कुछ निर्णय़ लिया जा सकता है.

हालांकि कांग्रेस का एक गुट प्रशांत किशोर के कई अन्य राज्यों के राजनीतिक दलों के साथ जुड़े होने को लेकर सशंकित है. प्रशांत किशोर ने बंगाल में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के साथ मिलकर काम किया है. प्रशांत किशोर के प्रस्ताव पर सोनिया गांधी ने एक कमेटी भी गठित की थी, जिसने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी है. 

सूत्रों का कहना है कि इस कमेटी ने प्रशांत किशोर के प्रस्ताव पर विचार किया है, लेकिन वो चाहती है कि कांग्रेस से पूरी तरह जुड़ने के साथ प्रशांत किशोर अन्य राजनीतिक दलों से खुद को पूरी तरह अलग कर लें. किशोर ने आधिकारिक तौर पर तो आईपीएसी से किनारा कर लिया है. लेकिन संगठन के बड़े फैसलों में उनका विशेषाधिकार साफ दिखाई देता है. 

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