किसान आंदोलन : लाखों रुपए का चंदा ठुकराने वाले किसान नेता आखिर कौन हैं?

इन्हीं जमीनी किसान नेताओं की लोकप्रियता और रणनीति के चलते सरकार का रुख नरम है हालांकि बिल को लेकर किसान और सरकार के बीच गतिरोध बना हुआ है..

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नई दिल्ली:

Farmers Protest : किसान आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से चला रहे किसान नेता (Farmers Leader) पंजाब के लुधियाना से लेकर हरियाणा के जींद तक से आए हैं. दर्जनों केस और ताकतवर सरकारों के हमले झेलने वाले किसान नेता टिकरी बार्डर के मंच पर हैं और मंत्री रहे नेता नीचे बैठे हैं. टीवी के कैमरों से दूर लाखों रुपए का चंदा ठुकराने वाले साधारण कपड़ों के ये किसान नेता आखिर कौन है, आपको बताते हैं इस खास रिपोर्ट में.

हरियाणा के ताकतवर नेता और इनेलो सुप्रीमों अभय चौटाला करीब (Abhay Singh Chautala) आधा घंटे तक मंच के नीचे बैठे रहे...और ऊपर किसान नेताओं का भाषण चलता रहा...किसानों की राजनीतिक फसल नेता न काट पाए इसी के चलते अभय चौटाला से लेकर कुमारी शैलजा (Selja Kumari) तक को मंच नहीं मिला...और आखिरकार लावलश्कर समेत बैरंग लौटना पड़ा.

वहीं दूसरी ओर नंगे पैर और साधारण कपड़ों में हजारों किसानों को संबोधित करने वाले ये किसान नेता गुरदीप सिंह डकौंदा हैं...भारतीय किसान यूनियन एकता जत्थे के उपाध्यक्ष हैं... दसवीं पास गुरुदीप सिंह पर दर्जनभर से ज्यादा मुकदमें और किसान हित की लड़ाई में कई बार जेल तक जा चुके हैं.

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गुरदीप सिंह डकौंदा ने कहा, "हमारे संगठन का फैसला है कि संशोधित बिल मंजूर नहीं ये किसानों के मौत का बिल है इसे तीनों को वापस लिया जाए."

पंजाब ही नहीं हरियाणा के किसान नेता भी बड़ पैमाने पर इस आंदोलन में भाग ले रहे हैं...स्टेज के पास बैठ भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के प्रधान जोगेॉदर नैन कृषि कानून के खिलाफ लगातार दो महीने तक हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के घर के बाहर धरने देने के चलते किसानों में खासे लोकप्रिय हैं.

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जोगेंदर नैन ने कहा, "भारतीय किसान हिंसा नहीं करेगा, मैं खुद दुष्यंत चौटाला के खिलाफ धरने पर बैठ चुका हूं. 64 दिन हो गए हैं, मैं अपने घर नहीं गया है हूं, शांतिपूर्ण तरीके से धरना देंगे और कानून को वापस कराकर जाएंगे."

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इन किसान नेताओं की लोकप्रियता के चलते ही किसान आंदोलन में कहीं लोग रसगुल्ले बांटे जा रहे हैं तो कहीं इस तरह बादाम बंट रहे है...ईमानदारी इतनी है कि एक आढ़ती ने एनडीटीवी को बताया कि वो लाखों रुपए चंदा देने गए थे लेकिन किसान नेताओं ने मना कर दिया. 

किसानों से पूछा कि आप कितना पैसा लेकर गए थे? तो उन्होंने बताया, "जी हम उचांणा मंडी से दो लाख रुपए लेकर गए थे 200 दुकानें हैं एक हजार रुपए एक दुकान से लगाए थे. लेकिन किसानों ने मना कर दिया और कहा कि पैसे हमारे पास हैं हम पैसे नहीं लेते हैं."

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इन्हीं जमीनी किसान नेताओं की लोकप्रियता और रणनीति के चलते सरकार का रुख नरम है हालांकि बिल को लेकर किसान और सरकार के बीच गतिरोध बना हुआ है..

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किसानों के इस आंदोलन में बड़े नेता यहां बैठते हैं और खेत खलिहान की बात करने वाले इस मंच पर होते हैं. यही वजह है कि कुछ लोगों ने बार बार इस आंदोलन को खालिस्तान, पाकिस्तान और चीन से जोड़ने की कोशिश की लेकिन किसानों ने अपनी सादगी और हौसले से बताया कि ये इसी मिट्टी के अन्नदाता हैं.

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