बिहार चुनाव: महागठबंधन ने बनाई नीतीश की नाकामियों को उजागर करने की रणनीति

Bihar Election 2020: आरजेडी का आरोप है कि नीतीश के सत्ता में रहने के दौरान बेरोज़गारी और पलायन बढ़ा, आर्थिक विकास नहीं होने से बिहार काफी पिछड़ गया

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नई दिल्ली:

Bihar Election 2020: बिहार में चुनावी बिगुल बज चुका है. महागठबंधन में लम्बी खींचतान के बाद घटक दलों में सीटों का बंटवारा हो चुका है. अब महागठबंधन (Mahagathbandhan) के घटक दल "बोले बिहार, बदले सरकार" के नारे को लेकर चुनाव मैदान में उतरेंगे. उनका निशाना इस बार नीतीश सरकार (Nitish Government) के 15 साल के कार्यकाल की कथित नाकामियों और खामियों को उजागर करने पर होगा. आरजेडी (RJD) का आरोप है कि नीतीश के सत्ता में रहने के दौरान बेरोज़गारी और पलायन बढ़ा, आर्थिक विकास नहीं होने से बिहार काफी पिछड़ गया. साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के एनडीए (NDA) से अलग होकर चुनाव लड़ने के ऐलान से महागठबंधन को लगता है कि नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिति कमज़ोर हुई है.  

आरजेडी के सांसद एडी सिंह ने NDTV से कहा, ''नीतीश कुमार बीजेपी के लिए अब एक लायबिलिटी हो गए हैं. मुझे लगता है लोक जनशक्ति पार्टी की बगावत से बीजेपी अंदर ही अंदर खुश होगी. अगर दो महीना पहले बीजेपी नीतीश कुमार को अलग कर देती तो नीतीश कुमार लालू यादव की गोदी में जाकर बैठ जाते. पिछले 15 साल में बिहार में ना युवाओं को रोजगार मिला,  ना कृषि क्षेत्र में विकास हुआ और ना ही स्वास्थ्य सेवाओं में कोई सुधार हुआ. COVID-19 संकट इसका उदाहरण है. बिहार देश का सबसे गंदा राज्य है और पटना देश का सबसे गंदा शहर." 

कांग्रेस की नज़र भी एंटी-इन्कम्बेंसी सेंटीमेंट पर है, और साथ ही वो हाथरस कांड को भी चुनावों में मुद्दा मानती है. बिहार के कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने NDTV से कहा, "चाहे करोना संकट का मैनेजमेंट हो या बाढ़ की त्रासदी, या फिर बेरोजगारी का संकट, बिहार की जनता जेडीयू-बीजेपी गठबंधन से तंग आ चुकी है. नीति आयोग ने कहा है कि सस्टेनेबिल डेवलपमेंट, यानी टिकाऊ विकास के मामले में देश का सबसे पिछड़ा राज्य बिहार है. हाथरस में दलित बेटी के साथ जो कुछ हुआ उसका बदला बिहार की जनता (चुनावों में) जरूर लेगी." 

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"बोले बिहार, बदले सरकार" बिहार चुनावों में कांग्रेस ने इस नारे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है. उसकी कोशिश अपने चुनावी अभियान के ज़रिए नीतीश सरकार के 15 साल के कार्यकाल के दौरान उसकी कथित खामियों और नाकामियों को उजागर करने की होगी. साफ़ है, बिहार चुनावों में इस बार राजनीतिक मुकाबले काफी तीखा होने वाला है.

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