पुतिन के करीब 25 सालों के शासन में दुनिया ने पहली बार बगावत जैसी चीज देखी है...जिसने ब्लादिमीर पुतिन तक को अंदर से हिला दिया. हालांकि इसे 24 घंटे में ही दबा दिया गया लेकिन इस बगावत को अंजाम देने वाली प्राइवेट आर्मी वैगनर ग्रुप पूरी दुनिया में फिर से सुर्खियों में आ गई. सवाल पूछे जाने लगे की ये प्राइवेट आर्मी होती क्या है? किन-किन देशों में ऐसी ही प्राइवेट आर्मी है? वो करती क्या है ? उसे पैसे कैसे मिलते हैं? आदि...आदि
क्या होती है प्राइवेट आर्मी ?
अमेरिका स्थित द वर्ल्ड ऑफ स्टैटिक्स संस्था की वेबसाइट के मुताबिक दुनिया के करीब दस देशों में प्राइवेट मिलिट्री कंपनियां हैं. इनमें से अधिकांश वे देश हैं जिन्हें सुपर पावर समझा जा सकता है...मसलन- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया. ज्यादातर देशों फौज से या फिर जासूसी संस्थाओं से रिटायर्ट अधिकारियों ने मिलकर प्राइवेट आर्मी बनाई हुई है. ये मोटी रकम लेकर सुपर रिच लोगों, खतरनाक हालत में काम करने वाली मल्टीनेशनल कंपनियों के अधिकारियों और तानाशाहों को सुरक्षा देती हैं. ऐसा कर वे अरबों डॉलर का धंधा करती हैं.
जहां रेगुलर आर्मी नहीं वहां जाती है प्राइवेट आर्मी
इनकी सेवाएं पूरी दुनिया में बिकती हैं. ये उन जगहों पर भी काम करती हैं जहां रेगुलर आर्मी काम नहीं करतीं. लॉस एंजिल्स टाइम्स के मुताबिक प्राइवेट आर्मी का सबसे बड़ा इस्तेमाल साल 2007 में अमेरिका ने इराक युद्ध के दौरान किया. जब प्राइवेट आर्मी कॉन्ट्रैक्टर्स ने 1 लाख 80 हजार से ज्यादा लोगों को अमेरिकी सरकार के समर्थन में लड़ने के लिए वहां भेजा था जबकि खुद अमेरिका के 1 लाख 60 हजार सैनिक ही मोर्चे पर तैनात थे. ऐसी ज्यादातर आर्मी अपने मूल देश में किसी बिजनेस कंपनी के तौर पर रजिस्टर्ड होती हैं. वे जहां भी ऑपरेशन करती हैं वहां जमकर मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है लेकिन किसी न किसी तरह से वे बेदाग छूट जाते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो इनके लिए नैतिकता, नियम, वसूल कुछ भी काम नहीं करता. इनका इमान केवल पैसा होता है.
अमेरिका में हैं पांच प्राइवेट आर्मी ग्रुप
अमेरिका के पास करीब पांच प्राइवेट आर्मी ग्रुप हैं. इन ग्रुप्स में 83 हजार से ज्यादा लड़ाके हैं. इसमें सबसे खतरनाक ग्रुप है ब्लैकवाटर. अमेरिकी सरकार के लिए इसने अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, बोस्निया और दुनिया के दूसरे युद्धग्रस्त क्षेत्रों में बड़े मिशन को अंजाम दिया. ऐसा माना जाता है कि तकनीक के मामले में ये दुनिया की सबसे एडवांस प्राइवेट आर्मी है. इसके पास अपने मिलिट्री एयरक्राफ्ट, टैंक्स, आर्टिलरी और यूएवी जैसे घातक हथियार हैं. इस पर इराक में मानवाधिकार उल्लंघन के कई गंभीर आरोप लगे. इराक से अमेरिका लौटने के बाद इस ग्रुप के कुछ सदस्यों पर अभियोग चलाकर जेल में डाला गया लेकिन बाद में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इन खूंखार अपराधियों को क्षमादान दे दिया. अमेरिका दूसरी सबसे बड़ी प्राइवेट आर्मी है डायनकॉर्प. इसमें करीब 10 हजार जवान शामिल हैं. इसे साल 1946 में ही बनाया गया था. इसका मुख्यालय वर्जीनिया में है. इस प्राइवेट आर्मी ने पेरू के एंटी ड्रग मिशन समेत सोमालिया और सूडान में भी कई बड़े मिशन को अंजाम दिया है. हालांकि ये चर्चा में तब आई जब इसने कोलंबिया के बागियों के साथ जंग लड़ी. ये आर्मी अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और और लैटिन अमेरिका में भी सक्रिय है. इसके अलावा जो तीन प्राइवेट आर्मी हैं उनका दायरा थोड़ा सीमित है और उनकी ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है.
ब्रिटेन में है एरिनी इंटरनेशनल जैसी बड़ी प्राइवेट आर्मी
वैसे तो एरिनी इंटरनेशनल ब्रिटिश प्राइवेट आर्मी है लेकिन इसका हेडक्वार्टर दुबई में है. इस निजी आर्मी कंपनी के पास 16 हजार जवान हैं. ये आर्मी काफी बिजी रहती है क्योंकि दुनिया के 282 जगहों पर इसके जवानों की तैनाती की गई है. इस आर्मी का इस्तेमाल रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में आयरन, ऑयल और गैस प्रोजेक्ट्स को सुरक्षित रखने के लिए भी किया जा रहा है. ब्रिटेन में इसके अलावा एजिस डिफेस सर्विसेज नाम की प्राइवेट आर्मी भी है. 5000 जवानों वाली यह आर्मी पूरे अफगानिस्तान औार बहरीन में फैली हुई है. ये निजी आर्मी इराक और ऑयल कंपनियों की सुरक्षा के लिए भी काम करती है.
ऑस्ट्रेलिया में है यूनिटी रिसोर्स ग्रुप जैसी आर्मी
ऑस्ट्रेलिया की प्राइवेट आर्मी यूनिटी रिसोर्स ग्रुप बेहद प्रोफेशनल तौर पर काम करती है. इस ग्रुप के पास दुनियाभर में 12 सौ जवानों का स्टॉफ. इसके लंदन,अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में रजिस्टर्ड दफ्तर हैं. इसका नारा है इस अविश्वसनीय दुनिया में विश्वसनीय समाधान. इसकी स्थापना साल 2000 में हुई थी. उसकी वेबसाइट पर दावा किया गया है कि दुनिया की कई देशों की सरकारें आधिकारिक तौर पर उसकी सेवाएं लेती हैं. इसकी मैनेजमेंट टीम में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन की सेना के कई रिटायर्ड आर्मी अफसर शामिल हैं. बगदाद में ऑस्ट्रेलियन एम्बेसी की सुरक्षा की जिम्मेदारी इसी ग्रुप की है. लेबनान में चुनाव को शांतिपूर्वक कराने के लिए इसी आर्मी की तैनाती की गई थी. इसके अलावा बहरीन के क्राइसिस जोन में इसे तैनात करके प्राइवेट ऑयल कंपनी की मदद की गई थी. इसके अलावा यह अफ्रीका, अमेरिका, सेंट्रल एशिया और यूरोप के लिए भी काम करती है.
अफगानिस्तान में है एशिया सिक्योरिटी ग्रुप
अफगानिस्तान की प्राइवेट आर्मी एशिया सिक्योरिटी ग्रुप का हेडक्वार्टर काबुल में है. 600 जवानों वाली इस आर्मी की कमान पहले अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई के रिश्तेदार हश्मत करजई के हाथों में थी. अमेरिका ने कई बार अपने मिशन के लिए इस आर्मी का इस्तेमाल किया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी सेना ने इस आर्मी के साथ लाखों डॉलर के अनुबंध किए हैं. एशिया सिक्योरिटी ग्रुप में भाड़े के सैनिकों की भर्ती अमेरिकी के डायनकॉर्प द्वारा की जाती है. हालांकि तालिबान के शासन के बाद से इस आर्मी की चर्चा बिल्कुल बंद हो गई है.
चीन के पास है फ्रंटियर सर्विस ग्रुप जैसी आर्मी
साल 2014 में हांगकांग के प्राइवेट ठेकेदारों ने फ्रंटियर सर्विस ग्रुप की स्थापना की. इसका मकसद चीन के सरकारी कंपनियों के अधिकारियों को सुरक्षा मुहैया कराना था. चीन फिलहाल इनका इस्तेमाल बेल्ट एंड रोड इनेसिएटिव यानी BRI प्रोजेक्ट्स की सुरक्षा के लिए करता है. इसके अलावा ये कंपनी चीनी अधिकारियों और कंपनियों को एशिया, यूरोप और अफ्रीका में भी सुरक्षा मुहैया कराती है.
कमाई कैसे करती हैं ये प्राइवेट आर्मी ?
जाहिर है दुनिया भर में वैगनर ग्रुप जैसे लड़ाके फैले हुए हैं. कुछ छोटे हैं तो कुछ बेहद बड़े जो पैसों के लिए दुनिया के युद्धग्रस्त एवं संकटग्रस्त हिस्सों में मिशन चला रहे हैं. इनकी कमाई का जरिया दो तरीके से होता है. पहला जिस समय जंग नहीं चल रही होती है उस समय ये प्राइवेट आर्मी दुनिया भर में बड़ी कंपनियों को सुरक्षा देती हैं. इस काम के लिए ये कंपनियां पैसा लेती हैं. दूसरा जब कहीं पर जंग जारी हो तो ये कंपनियां सरकारों की तरफ से लड़ती हैं और मोटा पैसा कमाती हैं. इसके अलावा ये प्राइवेट कंपनियां जिन इलाकों पर कब्जा करती है वहां के संसाधनों का जमकर लूटपाट करती हैं. मसलन वैगनर ग्रुप ने यूक्रेन सोलेडार पर कब्जा किया तो वहां के नमक के खदानों से खूब मुनाफा कमाया. सीरिया में भी प्राइवेट आर्मी जिन इलाकों को अपने कब्जे में ले रही थी. उन पर बशर अल असद की सरकार उन्हें तेल निकालने और खदानों पर अधिकार ईनाम के तौर पर दे देती थी.