नई दिल्ली स्थित अफ़ग़ानिस्तान दूतावास में ट्रेड काउंसलर रहे क़ादिर शाह ने दूतावास से बग़ावत कर दी है. सूत्रों के मुताबिक़ उन्होंने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान का झंडा छोड़ इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान यानि कि तालिबान सरकार का झंडा उठा लिया है. काबुल की तालिबान सरकार से उन्हें भरपूर मदद मिल रही है. इससे अफ़ग़ानिस्तान दूतावास में अस्थिरता पैदा होने की आशंका बढ़ गई है. जबकि अफगानिस्तान दूतावास ने दूतावास प्रमुख में बदलाव की बात का खंडन किया.
दूतावास के राजनायिक थाम रहे हैं इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान का झंडा
काबुल में तालिबान सरकार आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के जिन दूतावासों ने तालिबान का दामन थामने से इंकार किया भारत में अफ़ग़ानिस्तान का दूतावास भी उसमें से एक है. राजदूत फ़रीद मामूंदज़ई के साथ दूतावास के तमाम राजनायिक इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान का झंडा थामे रहे हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ पिछले महीने जब राजदूत फ़रीद मामूंदज़ई व्यक्तिगत छुट्टी पर गए तो क़ादिर शाह ने दूतावास के राजनयिकों को तालिबान के साथ काम करने के लिए मनाने की कोशिश की.
राजनयिकों ने कादिर शाह का साथ देने से किया मना
राजनयिकों ने शाह का साथ देने से मना कर दिया. शाह को सेवा से मुक्त कर दिया गया और दूतावास आने की मनाही कर दी गई. इस बीच में काबुल में तालिबान की सरकार की तरफ़ से क़ादिर शाह को भरपूर समर्थन मिल रहा है. नई दिल्ली स्थित अफ़ग़ानिस्तान दूतावास के राजनयिकों पर इस बात का दबाव बनाया जा रहा है कि ख़ालिद शाह को न सिर्फ़ बहाली हो और उनको दूतावास आने दिया जाए बाक़ी बल्कि सभी राजनयिक भी सीधे तालिबान से निर्देशन लेकर काम करें. तालिबान के मुताबिक़ इससे भारत के साथ अधिक समन्वय के साथ काम करने का रास्ता खुलेगा.
अफगानी मीडिया में दूतावास के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की ख़बर
मौजूदा राजदूत के ख़िलाफ़ सादे काग़ज़ पर लिखी एक चिट्ठी के आधार पर अफ़ग़ानिस्तान की मीडिया में दूतावास के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की ख़बर चलायी जा रही है. इसके पीछे क़ादिर शाह का ही हाथ बताया जा रहा है. तालिबान शासन तले काम कर रहा अफ़ग़ानिस्तान का मीडिया इसे काफ़ी तूल दे रहा है. मौजूदा फ़रीद मामूंदज़ई ने एक फ़ेसबुक पोस्ट के ज़रिए कहा है कि भ्रष्टाचार के आरोप बेबुनियाद हैं, दूतावास बिलकुल पारदर्शिता के साथ काम कर रहा है.
भारत काबुल स्थित भारतीय दूतावास को तकनीकी वजहों से ऑपरेशनल कर चुका है और अफ़ग़ानिस्तान को लगातार मानवीय मदद भेज रहे है. लेकिन ग़ौरतलब है कि तालिबान की सरकार को भारत समेत दुनिया के किसी भी देश में मान्यता नहीं दी है. ऐसे में तालिबान की तरफ़ से नियुक्त किसी राजनायिक को भारत मान्यता देगा ऐसा लगता नहीं. ये ज़रूर है कि तालिबान अपना कोई प्रतिनिधि अफ़ग़ानिस्तान से नहीं भेज रहा बल्कि क़ादिर शाह पहले से ही भारत व तैनात रहे हैं.
सूत्र बताते हैं कि ये अफ़ग़ानिस्तान दूतावास और तालिबान के बीच का आपसी मामला है और इसे आपस में ही सुलझाया जाना चाहिए. इस पूरे मामले पर अफ़ग़ानिस्तान दूतावास की तरफ़ से आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतज़ार है. क़ादिर शाह से भी संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया है.
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