मन में उठते गलत विचार भी हैं बीमारी का कारण, मुकाबला करने के लिए बैलेंस बनाना जरूरी

How Negative Thoughts Affect Health: इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च (आईजेएचएसआर) में भी इसे लेकर लेख प्रकाशित हुआ. इस शोध पत्र में बाह्य और निज वजहों का उल्लेख है, जो मन और शरीर के बीच सामान्य संतुलन की गड़बड़ी से पैदा होता है.

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कोई भी व्यक्ति सेहतमंद तभी रहेगा जब वह नियमों का पूरी निष्ठा से पालन करेगा.

How Negative Thoughts Affect Health: आयुर्वेद का सिद्धांत है "स्वस्थ्य रक्षणम, आतुरस्य विकार प्रशमन च" मतलब हेल्दी व्यक्ति की हेल्थ की रक्षा करना और बीमार व्यक्ति के रोग का इलाज करना ही आयुर्वेद है. कोई भी व्यक्ति सेहतमंद तभी रहेगा जब वह नियमों का पूरी निष्ठा से पालन करेगा. आयुर्वेद मानता है कि किसी भी व्यक्ति के बीमार होने के तीन मुख्य कारण होते हैं. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च (आईजेएचएसआर) में भी इसे लेकर लेख प्रकाशित हुआ. इस शोध पत्र में बाह्य और निज वजहों का उल्लेख है, जो मन और शरीर के बीच सामान्य संतुलन की गड़बड़ी से पैदा होता है.

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स्टडी में क्या सामने आया?

अध्ययन शरीर की निजता को समझने के लिए बाहरी दुनिया से संतुलन बनाने की सलाह देता है. इसका मतलब है कि शरीर का आंतरिक वातावरण बाहरी दुनिया के साथ निरंतर संपर्क में रहता है. विकार तब होता है जब दोनों में संतुलन नहीं होता है, इसलिए आंतरिक वातावरण को बदलने के लिए इसे बाहरी दुनिया के साथ संतुलन में लाने के लिए मन और शरीर की स्थिति के भीतर रोग होने की प्रक्रिया को समझना जरूरी है.

आयुर्वेद के अनुसार, किसी भी बीमारी का मूल कारण हमेशा त्रिदोष या शरीर के द्रव्यों का असंतुलन होता है. बीमारियां अमूमन दो तरह की होती है. एक लाइफस्टाइल संबंधित (एलडी) और दूसरी नॉन कम्युनिकेबल डिजिज (एनसीडी). इनके तीन कारण - असत्मेंद्रियार्थ संयोग, प्रज्ञाप्रद और परिणाम. अब जब मौसम पल-पल बदल रहा हो तो इनके बारे में जान लेना जरूरी है.

इन्द्रियों का दुरुपयोग

असत्मेंद्रियार्थ संयोग यानी इन्द्रियों का दुरुपयोग मतलब सेंसरी ऑर्गन के बीच कुप्रबंधन और भ्रम की स्थिति होना. जब गर्मी चरम पर हो और प्यास लगे तो हमें ठंडा कोला या सॉफ्ट ड्रिंक की बजाय ऐसी चीजों का सेवन करना चाहिए जो गले को ही न तर करे बल्कि पेट के लिए भी सही हो. आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने के आठ अलग-अलग सिद्धांत हैं जो प्रकृति (भोजन की प्रकृति), करण (भोजन बनाने की प्रक्रिया), संयोग (कई भोजन का कॉम्बिनेशन), राशि (मात्रा), देश (स्थान), काल (समय), उपयोग संस्था (भोजन करते समय सावधानियां) और उपयोग (उपयोगकर्ता स्वयं) पर आधारित हैं.

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भोजन करते समय इन सिद्धांतों (मात्रा को छोड़कर) की उपेक्षा करना रस इंद्रिय (जीभ) का अनुचित उपयोग है. ज्यादा गर्म या ठंडे पानी से स्नान करना, बहुत ज्यादा मालिश (अभ्यंग) या शरीर को मलना (उत्साह) स्पर्श इंद्रिय (त्वचा) का ज्यादा उपयोग है. स्नान और इन प्रक्रियाओं से बचना स्पर्श इंद्रिय (त्वचा) का कम उपयोग है. इन प्रक्रियाओं का गलत क्रम या तरीके से उपयोग करना ही विकार को जन्म देता है और हम रोग के चंगुल में फंसते हैं.

प्रज्ञाप्रद क्या है?

प्रज्ञाप्रद (बुद्धि का दुरुपयोग) का अर्थ है गलत विचारों के साथ गलत कार्य करना, इससे "दोष" पैदा होता है और शरीर में असंतुलन पैदा होता है. आचार्य चरक ने परिणाम का उल्लेख किया है, जिसका आयुर्वेदानुसार अर्थ मौसमी बदलाव से है. काल (समय)- शीत (ठंड), उष्ण (गर्मी) और वर्षा (बारिश) के बीच असंतुलन या अनुपातहीनता से जुड़ा है.

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इससे स्पष्ट है कि आज जिस तरह का वातावरण है, उसमें बीमारियों का मुकाबला करने के लिए उचित और विवेकपूर्ण संतुलन बनाए रखने की जरूरत है, तभी 'स्वास्थ्य स्वास्थ्य रक्षणम' सूक्त चरितार्थ हो पाएगा.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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