Aids Vaccine Day: कोशिशों के बावजूद अब तक क्यों नहीं बन पाई है एड्स की वैक्सीन, जानिए क्या हैं चैलेंज

इस दौरान सुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए कई तरह के प्रोडक्ट्स भी मार्केट में आ गए थे. क्योंकि लोगों को पता चल गया था कि सुरक्षा उपाय (Protective measures) ही इससे बचाव का एकमात्र तरीका है.

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इन वजहों से नहीं बन पा रही एड्स की वैक्सीन.

एड्स (Aids) जैसी जानलेवा बीमारी के वायरस का पता तीस साल पहले लग चुका है लेकिन बावजूद इसके अभी तक इस खतरनाक वायरस के लिए कोई भी प्रभावी वैक्सीन नहीं बन पाई है. तीस साल पहले जब दुनिया को एड्स वायरस का पता चला तो लोगों की पर्सनल जिंदगी पूरी तरह बदल गई. जब लोगों को पता चला कि इस वायरस की प्रमुख वजह असुरक्षित यौन संबंध हैं तो उन्होंने अपनी यौन प्राथमिकताएं बदल ली थी. इस दौरान सुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए कई तरह के प्रोडक्ट्स भी मार्केट में आ गए थे. क्योंकि लोगों को पता चल गया था कि सुरक्षा उपाय (Protective measures) ही इससे बचाव का एकमात्र तरीका है. एड्स के एचआईवी वायरस की वजह से दुनिया भर में अब तक 3 करोड़ से ज्यादा लोग काल के गाल में समा चुके हैं.

एड्स वैक्सीन ना बनने के पीछे के चैलेंज (challenges of failure of aids vaccine)

1. एड्स की वैक्सीन अब तक ना बनने का एक कारण ये है कि कोई वैक्सीन दरअसल सांस या फिर गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल प्रोसेस के जरिए शरीर में प्रवेश करने वाले वायरस से रक्षा करती है. जबकि एड्स ऐसा वायरस है जो खून के जरिए या फिर जननांगों (reproductive organ) के जरिए बॉडी में घुस जाता है.

2. एड्स वायरस तेजी से म्यूटेट करता है यानी ये वायरस बार-बार रूप बदल लेता है. जबकि वैक्सीन की बात करें तो वैक्सीन किसी वायरस के एक प्रकार को ही टारगेट करके बनाई जाती है. वैक्सीन वायरस के जिस रूप के लिए बनी है, उसी को टारगेट करेगी, लेकिन अगर वायरस ने म्यूटेट किया यानी रूप बदला तो वैक्सीन असर नहीं कर पाएगी. इसी वजह से बार बार म्यूटेट करने वाले एड्स वायरस की कोई प्रभावी वैक्सीन नहीं बन पा रही है.

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3. हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम किसी बाहरी बैक्टीरिया से लड़ने के लिए एंटी बॉडी तैयार करता है. लेकिन जहां तक एड्स वायरस की बात है, शरीर का इम्यून सिस्टम उससे लड़ने की बजाय इस वायरस से ही हार जाता है और धीरे धीरे कमजोर हो जाता है.

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4. एक और खास बात, एड्स का जानलेवा वायरस शरीर के डीएनए में जाकर छिपता है. वैक्सीन इसे डीएनए से खोजकर नहीं निकाल पाती. ये लंबे समय तक डीएनए में छिपकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है.

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5. देखा जाता है कि किसी भी वैक्सीन को बनाने के बाद परीक्षण के तौर पर उस टीके को जानवरों पर आजमाया जाता है. इसके बाद मनुष्यों पर इसका ट्रायल होता है. लेकिन एड्स के मामले में ऐसा नहीं हो पा रहा है. दरअसल वैज्ञानिक अब तक जानवरों का कोई ऐसा मॉडल खोज नहीं पाए हैं जिसकी तर्ज पर वैक्सीन बनाई जा सके.

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6. किसी बाहरी बैक्टीरिया के हमले के वक्त इम्यून सिस्टम रिएक्ट करता है, जिससे शरीर में कुछ लक्षण उभरते हैं और पता चलता है कि किसी वायरस का हमला हुआ है. लेकिन एड्स के वायरस के हमले के वक्त इम्यून सिस्टम किसी भी प्रकार से रिएक्ट नहीं करता. शायद यही वजह है कि इस वायरस से लड़ने के अब तक कोई वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है.

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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