रीढ़ की हड्डी की चोट का इलाज अब आसान, बैज्ञानिकों ने बनाया नया इम्प्लांटेबल डिवाइस

Spinal Cord Injury New Treatment: ऑकलैंड विश्वविद्यालय के वाइपापा तौमाता राउ में फार्मेसी स्कूल के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो, प्रमुख शोधकर्ता डॉ. ब्रूस हारलैंड ने कहा, “जैसे त्वचा पर कट लगने पर घाव अपने आप भर जाता है, वैसे रीढ़ की हड्डी खुद को ठीक नहीं कर पाती.

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डॉ. हारलैंड और उनकी टीम ने एक बहुत पतला उपकरण बनाया है.

Spinal Cord Injury New Treatment: ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाया है, जिसे शरीर में लगाया जा सकता है और जिसकी मदद से रीढ़ की हड्डी में चोट के बाद चलने-फिरने की क्षमता वापस लाई गई है. यह शोध जानवरों पर किया गया और इससे इंसानों और उनके पालतू जानवरों के लिए भी इलाज की उम्मीद जगी है. रीढ़ की हड्डी में चोट लगने पर इसका इलाज अभी संभव नहीं है और यह व्यक्ति की जिंदगी पर बहुत बुरा असर डालती है. लेकिन, न्यूजीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी के वाइपापा तौमाता राउ में एक परीक्षण एक प्रभावी उपचार की उम्मीद जगाता है.

रीढ़ की हड्डी की चोट खुद ब खुद ठीक नहीं हो पाती

ऑकलैंड विश्वविद्यालय के वाइपापा तौमाता राउ में फार्मेसी स्कूल के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो, प्रमुख शोधकर्ता डॉ. ब्रूस हारलैंड ने कहा, “जैसे त्वचा पर कट लगने पर घाव अपने आप भर जाता है, वैसे रीढ़ की हड्डी खुद को ठीक नहीं कर पाती, इसी वजह से इसकी चोट बेहद गंभीर होती है और अभी तक लाइलाज है.”

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उपकरण घाव भरने में मददगार

डॉ. हारलैंड ने नेचर कम्यूनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, डॉ. हारलैंड और उनकी टीम ने एक बहुत पतला उपकरण बनाया, जिसे सीधे रीढ़ की हड्डी पर लगाया जाता है, खासकर वहां जहां चोट लगी हो. यह उपकरण वहां विद्युत का हल्का और कंट्रोल फ्लो भेजता है, जिससे घाव भरने में मदद मिलती है.

चूहों पर की गई स्टडी

यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फार्मेसी में कैटवॉक क्योर प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर डैरेन स्विरस्किस ने कहा कि इसका मकसद यह है कि रीढ़ की चोट से जो कामकाज रुक जाते हैं, उन्हें फिर से शुरू किया जा सके. चूहों में इंसानों के मुकाबले अपने आप ठीक होने की क्षमता थोड़ी ज्यादा होती है, इसी वजह से वैज्ञानिकों ने चूहों पर इस तकनीक को आजमाया और देखा कि प्राकृतिक रूप से भरने की तुलना में विद्युत स्टिमुलेशन से मदद मिलने पर कितना फर्क पड़ता है.

4 हफ्ते में दिखा चूहों में फर्क

4 हफ्तों बाद जिन चूहों को हर दिन यह विद्युत स्टिमुलेशन वाला इलाज दिया गया, उनमें चलने-फिरने की क्षमता उन चूहों से बेहतर थी, जिन्हें यह इलाज नहीं दिया गया. 12 हफ्तों की पूरी स्टडी में देखा गया कि ये चूहे हल्के स्पर्श पर भी जल्दी प्रतिक्रिया देने लगे.

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लाज से रीढ़ की हड्डी में कोई सूजन या नुकसान नहीं

डॉ. हारलैंड ने कहा, “इसका मतलब है कि इलाज ने चलने-फिरने और महसूस करने दोनों में सुधार किया और सबसे जरूरी बात यह रही कि इस इलाज से रीढ़ की हड्डी में कोई सूजन या नुकसान नहीं हुआ, जिससे यह साफ हो गया कि यह सुरक्षित भी है.”

चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर मारिया एस्पलंड ने कहा कि भविष्य में इस तकनीक को ऐसा मेडिकल डिवाइस बनाने की योजना है, जिससे रीढ़ की गंभीर चोटों वाले लोगों को फायदा मिल सके. आगे वैज्ञानिक यह पता करने पर काम करेंगे कि इलाज की ताकत, उसकी बारंबारता और अवधि में कितना बदलाव किया जाए ताकि सबसे अच्छा नतीजा मिल सके.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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