UAE में शादी से पहले करवाना होगा आनुवंशिक परीक्षण, क्या है प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग, क्यों है बेहद जरूरी?

इस नियम को एक अक्टूबर, 2024 से लागू किया जाएगा. सरकार ने इस फैसले को आने वाली पीढ़ियों को सेहतमंद बनाए रखने की कोशिश करार दिया है.

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संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की सरकार ने देश में आनुवांशिक बीमारियों का गैरजरूरी बोझ कम करने के मकसद से एक बड़ा कदम उठाया है. स्वास्थ्य विभाग के फैसले के मुताबिक अबू धाबी में प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य कर दिया गया है. इसके तहत देश भर में शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों के लिए जेनेटिक टेस्टिंग कराना जरूरी होगा. इस नियम को एक अक्टूबर, 2024 से लागू किया जाएगा. सरकार ने इस फैसले को आने वाली पीढ़ियों को सेहतमंद बनाए रखने की कोशिश करार दिया है.

कई देशों में पहले से प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य

अबू धाबी में 22 सेंटर्स पर जेनेटिक टेस्टिंग किया जाएगा. इनमें 570 जीन और 840 वंशानुगत समस्याओं की जांच शामिल होंगी. यूएई से पहले भी दुनिया के कई देशों ने 1970 के दशक से ही कपल्स के लिए विवाह से पहले जेनेटिक जांच अनिवार्य किया हुआ है. साइप्रस ने 1973 में, इटली और ग्रीस ने 1975 में, तुर्की ने 1995 में, ईरान ने 1997 में, जॉर्डन और सऊदी अरब ने 2004 में और बहरीन ने 2005 में ही इस जांच को अनिवार्य कर दिया था. आइए, जानते हैं कि प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग क्या है? इसके तहत कौन-कौन सी जांच होती है और इसको अपनाने के क्या फायदे हैं?

प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग क्या है? इसे क्यों करवाते हैं?

प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग यानी विवाह से पहले जेनेटिक टेस्टिंग एक मेडिकल जांच प्रक्रिया है. यह जांच शादी करने से पहले लड़के-लड़की को भविष्य में परिवार नियोजन और बच्चों की प्लानिंग करने के लिए जागरूक करेगी. साथ ही होने वाले बच्चों में जेनेटिक बीमारियों के जोखिम का आकलन करने और उसके मुताबिक परहेज, बचाव, रोकथाम जैसी जरूरी तैयारी करने में मदद करेगी. जेनेटिक जांच से यह पता लगाने में मदद मिलती है कि क्या लड़का या लड़की दोनों में से किसी एक में आनुवांशिक बीमारियों जैसे सिकल सेल एनीमिया या थैलेसीमिया वगैरह के लिए जिम्मेदार जीन हैं.

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जीन से ही रंग, रूप, बनावट, आदतें, रवैया और बीमारी

एक्सपर्ट के मुताबिक, हर किसी को अपने माता-पिता से खास डीएनए सीक्वेंस या क्रोमोसोम की संरचना मिलती है. इनमें पाए जाने वाले जीन से ही हमारे रंग, रूप, बनावट, आदतें और व्यवहार वगैरह तय होते हैं. मेडिकल साइंस के मुताबिक, इंसान का सब कुछ उसके पूर्वजों के जीन का असर होता है. अगर इनमें कोई म्यूटेशन या गड़बड़ी होती है तो वह भी आने वाली पीढ़ियों को ट्रांसफर होता है. कई आनुवांशिक बीमारियां इसी तरह बच्चों को मुश्किल में डालती रहती है. ऐसी कई बीमारियों का कोई इलाज ही नहीं होता है. कई बार तो ऐसी बीमारी से नवजात शिशुओं की मौत तक हो जाती है.

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भारत में क्या है प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग की मौजूदा स्थिति?

भारत में फिलहाल प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य नहीं है. हालांकि, देश के टॉप मेडिकल पैनल, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने आनुवंशिक परामर्श और परीक्षण पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जो मेडिकल प्रोफेशनल्स और कपल्स के लिए कई तरह की जांच की सिफारिशें करती हैं. कई एक्सपर्ट मॉलिक्यूलर हेमेटोलॉजिस्ट, ऑन्कोलॉजिस्ट और  गायनेकोलॉजिस्ट बताते हैं कि भारत में आनुवंशिक बीमारियों के बढ़ते प्रचलन और उनके प्रभाव के बारे में बढ़ती जागरूकता को देखते हुए प्रीमैरिटल जेनेटिक टेस्टिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

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टेस्ट और लाइफ स्टाइल में सुधार से कई बीमारियों की रोकथाम

डॉक्टरों का कहना है कि डेढ़ अरब की आबादी वाले देश में जेनेटिक टेस्टिंग से शिशुओं और बच्चों की मृत्यु दर, उनकी आनुवांशिक बीमारी, माता-पिता के खर्च और पब्लिक हेल्थ सर्विस पर पड़ते बोझ को कम किया जा सकता है. क्योंकि जेनेटिक बीमारियां नियति या किस्मत की बात नहीं हैं. समय पर पता चलने से ऐसी कई लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों को रोकना अपने हाथों में है. कुछ स्क्रीनिंग, कंप्लीट ब्लड काउंट, ब्लड ग्रुप और  Hb वेरिएंट जैसे सामान्य टेस्ट से ही जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाकर इलाज शुरू किया जा सकता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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