Saiyara फिल्म देखकर थिएटर में फूट-फूटकर रोने लगे लोग, कोई हुआ बेहोश, एक्सपर्ट ने बताई इसकी वजह

हाल ही में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जहां कुछ युवा दर्शक सिनेमाघरों में इमोशनल सीन्स को देखकर रो पड़े या यहां तक कि बेहोश भी हो गए. ये घटनाएं यह सवाल उठाती हैं कि क्या आज की युवा पीढ़ी इमोशनली ज्यादा वीक है, या फिर वह भावनाओं को पहले से कहीं ज्यादा गहराई से महसूस करने लगी है?

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
ये फिल्म देखकर क्यों फूट-फूटकर कर रोए लोग.

हाल ही में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जहां कुछ युवा दर्शक सिनेमाघरों में इमोशमल सीन्स को देखकर रो पड़े या यहां तक कि बेहोश भी हो गए. ये घटनाएं यह सवाल उठाती हैं कि क्या आज की युवा पीढ़ी इमोशनली ज्यादा वीक है, या फिर वह भावनाओं को पहले से कहीं ज्यादा गहराई से महसूस करने लगी है? इस पर हमने बात की डॉ. कामना छिब्बर से (क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट प्रमुख – मानसिक स्वास्थ्य विभाग मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान विभाग फोर्टिस हेल्थकेयर) . उन्होंने कहा, “नई जनरेशन की इमोशनल अंडरस्टैंडिंग में बहुत इंटेंसिटी जुड़ गई है. वे जो भी महसूस करते हैं, उसे बेहद तीव्र और गहरे स्तर पर महसूस करते हैं. उनके रिएक्शन कई बार बहुत इम्पल्सिव होते हैं.”

विशेषज्ञ के मुताबिक, पहले के मुकाबले आज के युवाओं में “ठहराव” की कमी देखी जा रही है. वह बताती हैं कि यह ठहराव जीवन के अनुभव, बड़े-बुजुर्गों की सीख और जीवन की धीमी गति से आता है. लेकिन आज का युवा अधिकतर सोशल मीडिया या अपने हमउम्र दोस्तों से ही प्रभावित हो रहा है, जिससे उसकी समझ एकतरफा हो सकती है.

हम किसी कहानी को अब सिर्फ स्टोरी की तरह नहीं देखते, हम खुद को उसमें देखने लगते हैं. जब कोई किरदार पीड़ा झेलता है, तो हम अपने ही किसी पुराने दर्द को उस पर प्रोजेक्ट करने लगते हैं. इस वजह से रिएक्शन और भी ज्यादा इंटेंस हो जाते हैं. इसके साथ ही, रील्स और शॉर्ट वीडियो का ट्रेंड भी एक बड़ा कारण बताया गया है. आज का कंटेंट शॉर्ट और फास्ट है. ध्यान देने की क्षमता घटती जा रही है. हर कोई जल्दी में है. लंबे कंटेंट से दूरी और छोटे क्लिप्स की लत ने युवाओं की भावनाओं को गहराई से प्रोसेस करने की क्षमता को प्रभावित किया है.

Advertisement

उन्होंने बताया कि आज की पीढ़ी को इमोशंस को मैनेज करने की ट्रेनिंग या समझ नहीं दी जा रही. कोई सिखाता नहीं कि अपने इमोशंस से कैसे डील करें. बस जो महसूस हो रहा है, वो ही सही लगता है. ऐसे में मूवी, सिचुएशन या कोई भी ट्रिगर बहुत ज़्यादा असर डाल सकता है. अंत में, उन्होंने कहा कि मीडिया लिटरेसी की कमी भी एक वजह है. “जब हम कोई कंटेंट देखते हैं, तो क्या हम उससे सवाल करते हैं? क्या सोचते हैं कि ये मैसेज क्यों आया? क्या और भी एंगल हो सकते हैं? अगर ये सवाल उठाना बंद हो गया, तो हमारी समझ सीमित हो जाएगी.”

Advertisement

Fatty Liver: सबसे ज्यादा किन लोगों को होती है लिवर की ये बीमारी? डॉक्टर सरीन ने क्या कहा सुनिए

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

Advertisement
Featured Video Of The Day
Mann Ki Baat के 124वें Episode में PM Modi का खास संदेश 'इतिहास से लेकर विज्ञान तक...' | ISRO