हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 1985 में हुई थी. इसका मुख्य उद्देश्य नेत्रदान के महत्व को बढ़ावा देना और कॉर्नियल ब्लाइंडनेस को कम करना है. इस अवसर पर अखंड ज्योति आई हॉस्पिटल के अकादमिक एवं शोध सलाहकार, आईजीआईएमएस पटना के प्रोफेसर एमेरिटस और डॉ. आरपी सेंटर, एम्स नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ. राजवर्धन झा आजाद ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से खास बातचीत की. उन्होंने नेत्रदान की चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर प्रकाश डाला.
डॉ. आजाद ने बताया कि जागरूकता की कमी, धार्मिक भ्रांतियां, ग्रामीण क्षेत्रों में आई बैंक की कमी और प्रशिक्षित सर्जनों की कमी प्रमुख चुनौतियां हैं. राष्ट्रीय अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीबीवीआई) के तहत नेत्रदान को प्रोत्साहित किया जा रहा है. भविष्य में ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में 'आई' बैंक नेटवर्क का विस्तार, स्कूल-कॉलेजों में जागरूकता, मीडिया और धार्मिक नेताओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर है. 2030 तक कॉर्नियल ब्लाइंडनेस को नियंत्रित करने का लक्ष्य है.
उन्होंने कहा कि एक डोनर का कॉर्निया कई लोगों को रोशनी दे सकता है. कई मामलों में प्रत्यारोपण से बच्चों और युवाओं को जीवन भर की दृष्टि मिली है. डॉ. आजाद ने अपील की कि लोग जीवित रहते हुए नेत्रदान का संकल्प लें और परिवार को सूचित करें, क्योंकि यह मृत्यु के बाद भी जीवन देने का सबसे महा दान है.
आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 25-30 हजार कॉर्निया प्रत्यारोपण होते हैं, जबकि जरूरत एक से डेढ़ लाख की है. राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा शुरू होने से दान की दर में वृद्धि हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. डॉ. आजाद ने समाज से इस नेक कार्य में योगदान देने की अपील की. बता दें कि नेत्रदान एक ऐसा परोपकारी कार्य है, जो न केवल व्यक्तियों के जीवन को रोशनी प्रदान करता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाता है. नेत्रदान मृत्यु के बाद भी जीवन देने का अवसर है.
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