भगवद गीता (Bhagavad Gita) हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में शामिल है. प्राचीन समय से ही बेहतर, धार्मिक और अधिक संतुष्टिदायक जीवन जीने में लोगों को गीता से मदद मिलती रही है. गीता में जीवन के हर पहलू से जुड़ी समस्याओं के बारे में बताया गया है और उसमें हर समस्या का हल मिलता है. बात चाहे पारिवारिक संबंधों की हो या संघर्ष की गीता के श्लोकों में इनके बारे में विस्तार से बताया गया है. मन में आने वाले नकारत्मक भावनाओं (negative emotions) से छुटकारा पाने में भी गीता के श्लोक मददगार साबित हो सकते हैं. आइए जानते हैं गीता के ऐसे पांच श्लोक जिनके पाठ से निगेटिव भावनाओं से मिल सकता है छ़ुटकारा.
निगेटिविटी से छुटकारा दिलाएंगे भगवद गीता के ये श्लोक (Bhagavad Gita for overcome negative emotions)
क्रोध से छुटकारा
गीता के अध्याय 2 में 56 वां श्लोक है
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु अतीतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥
अर्थ- जिसका मन दुख के बीच शांत रहता है, जो सुखों की लालसा नहीं करता है, और जो मोह, भय और क्रोध से मुक्त है, उसे स्थिर ज्ञान वाला ऋषि कहा जाता है.
इस मंत्र में बताया गया है कि कैसे क्रोध किसी व्यक्ति को प्रभावित कर ऐसे कार्य करवा सकता है जिसके लिए बाद में पछतावा हो सकता. इसलिए, जब ऐसी परिस्थितियां हों तो शांत रहना बहुत महत्वपूर्ण है और केवल एक शांत और संयमित व्यक्ति ही सही निर्णय ले सकता है.
जब भ्रम हो
गीता के अध्याय 2, सातवां श्लोक
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढ़चेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रुहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वं प्रपन्नम्॥
अर्थ-अभी मैं अपने कर्तव्य को लेकर भ्रमित हूं और कमजोरी के कारण अपना मानसिक संतुलन खो चुका हूं. इस स्थिति में, मैं आपसे स्पष्ट रूप से यह बताने के लिए कह रहा हूं कि मेरे लिए क्या सर्वोत्तम है. कृपया मुझे निर्देश दें.
जब संदेह हो तो भगवान से पूछें! घबराहट और भ्रम की स्थिति में अक्सर हम ठीक निर्णय नहीं ले पाते हैं. ऐसे समय में भगवान से पूछना सही होता है वे हमारा सही मार्गदर्शन कर सकते हैं. भगवान के प्रति समर्पण से मन से निगेटिव विचारों से मुक्ति मिलती है.
भय की स्थिति में
गीता के अध्याय 4, दसवां श्लोक
वीतराग्भयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता:।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमगतः॥
अर्थ- आसक्ति, भय और क्रोध से दूर रहकर, कई लोग पूरी तरह से मुझमें लीन हो गए हैं और मेरी शरण में आ गए हैं. इससे उन्होंने स्वयं को शुद्ध कर लिया है और दिव्य प्रेम प्राप्त कर लिया है.
कई बार भय विचारों पर हावी हो जाता है. ऐसे समय में हम आगे बढ़ने से डरने लगते हैं और सही फैसला नहीं कर पाते हैं. श्लोक सलाह देता है कि भय से मुक्ति भक्ति और उच्च शक्ति के प्रति समर्पण के माध्यम से आती है. परमात्मा पर ध्यान केंद्रित करके व्यक्ति भय से ऊपर उठ सकता है.
मन में लालच जागने पर
गीता के अध्याय 14, सतरहवां श्लोक
सत्त्वात्सञ्जयते ज्ञानं रजसो लोभ एव च।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च॥
अर्थ - अच्छाई से, वास्तविक ज्ञान आता है; जुनून से लालच आता है और अज्ञान से पागलपन और भ्रम आता है.
यह श्लोक बताता है कि लालच से भौतिक संसार और उसके खाली सुखों के प्रति लगाव होने लगता है. लालच से निपटने के लिए हमें इससे ऊपर उठने की जरूरत है. हमें खुद को अच्छाई के माध्यम से सच्चे ज्ञान की ओर ऊपर उठाना चाहिए.
उम्मीद टूटने पर
गीता के अध्याय 4, ग्यारहवां श्लोक
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
अर्थ- हर कोई मेरे प्रति समर्पण करता है और मैं उन्हें तदनुसार पुरस्कार देता हूं.
कभी कभी उम्मीद खोना सामान्य है. किसी भी चीज़ में अपना 100% देने के बाद भी, चाहे वह परीक्षा हो या साक्षात्कार, कुछ कमी रह जाती है. असफल होने के कारण उम्मीद खोने लगती है. ऐसे समय में यह श्लोक बेहद मददगार है. यह बताता है कि ईश्वर उन सभी को कैसे पुरस्कृत करते हैं जो उनके प्रति समर्पण करते हैं और जो अपने जीवन के अंतिम परिणाम उन पर छोड़ देते हैं.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)