बॉलीवुड के शानदार एक्टर्स में से एक कबीर बेदी आज भी उस दिन को नहीं भूले हैं, जब उनके बेटे सिद्धार्थ ने आज से 27 साल पहले आत्महत्या कर ली थी. कबीर बेदी को आज भी अपने बेटे के जाने का गम सताता रहता है. कबीर बेदी ने समय-समय पर बेटे को याद किया है और आज फिर इस बात को 27 साल होने के बाद कबीर बेदी का दर्द छलका है. कबीर ने बताया कि कैसे इस हादसे ने उनको भावुक तौर पर बर्बाद कर दिया है. कबीर बेदी ने अपने बेटे सिद्धार्थ की मेंटल हेल्थ पर बात की और बताया कि बच्चों के मेंटल प्रेशर से गुजरना पेरेंट्स के लिए बहुत चैलेंजिंग होता है.
सिजोफ्रेनिया बीमारी से जूझ रहे थे बेटे सिद्धार्थ
दरअसल, कबीर ने बेदी ने हाल ही में अपने बेटे की मौत पर बात की है. कबीर बेदी के बेटे सिद्धार्थ सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) बीमारी से जूझ रहे थे. इस इंटरव्यू में कबीर बेदी ने बताया, 'मेरा बेटा बहुत ब्रिलियंट था और मुझे उसकी बीमारी के बारे में पता चला, जो मेरी लिए एक सदमे की तरह था'. वहीं, कबीर बेदी ने अपनी ऑटोग्राफी में भी इसका जिक्र किया है.
इसमें एक्टर ने अपने संघर्ष के बारे में लिखा है. एक्टर ने बताया, 'अपनी किताब में मैंने सिद्धार्थ की जिंदगी के आखिरी महीनों के बारे में लिखा है, एक कहानी जिसमें एक बाप अपने बेटे को आत्महत्या करने से रोक रहा है, अब आप अंदाजा लगाइए कि मुझपर क्या बीत रही होगी'.
'मैं जंग नहीं जीत सका'
कबीर बेदी ने आगे कहा, 'बाप-बेटे की इस जंग में मैं हार गया, यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा है'. इससे पहले कबीर बेदी अपने जीवन में असफलताओं और दिवालियापन पर भी बात कर चुके हैं. एक्टर ने बताया कि पैसों की तंगी के चलते वह अपने बेटे का इलाज नहीं करा पाए थे. एक्टर ने कहा कि उन्होंने अपने बेटे को बचाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन वो बचा नहीं पाए और आज भी खुद को दोषी मानते हैं. बता दें, कबीर बेदी आज भी बॉलीवुड में एक्टिव हैं और फिल्मों में साइड रोल में नजर आते हैं. कबीर बेदी ने बॉलीवुड में कई फिल्मों में काम किया है, जिसमें उनकी एक्टिंग को सराहा गया है. आज एक्टर फिल्मों में पिता के रोल में नजर आते हैं.
पेरेंट्स कैसे करें इसका सामना?
एक्सपर्ट ने इस पर कहा है, 'मेंटल हेल्थ से जुड़ीं चुनौतियां आज भी अपना प्रभाव लोगों पर छोड़ रही हैं, पुरानी मान्यताएं और मनोवैज्ञानिक एजुकेशन की कमी अकसर सामाजिक धारणाओं को चलाती है, जब मेंटल हेल्थ की बात आती है तो यह समझना खासकर चुनौतीपूर्ण होता है कि कुछ क्यों हो रहा है या इसे कैसे संबोधित किया जाए.
कुछ लोग बच्चे की ऐसी स्थिति होने के लिए जैविक, मनोवैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारकों को नजरअंदाज करते हुए उसके माता-पिता के 'बुरे कर्मों' को भी दोषी मानते हैं, सपोर्ट और सहानुभूति की कमी परिवारों को अलग-थलग कर देती है'.
क्या होता है सिजोफ्रेनिया
ऐसी स्थिति में पेरेंट्स भ्रम, दोषी, हेल्पलेस और चिंता जैसी परेशानियों से घिरने लगते हैं, क्योंकि वे अपने बच्चे को समझने और उनकी अच्छी देखभाल करने की कोशिश करते हैं. वहीं, एक्सपर्ट का कहना है कि सिजोफ्रेनिया का महंगा इलाज भी पेरेंट्स को कमजोर कर देता है. यह एक लॉन्गटर्म ट्रीटमेंट हैं, जिसमें थेरेपी और दवाईयों पर बड़ा खर्चा आता है. वहीं, सिजोफ्रेनिया के बढ़ने से इंजॉयटी बढ़ने लगती है. वहीं, इसके इलाज के दौरान पेरेंट्स की भी फिजीकल और मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है. पेरेंट्स अपने बच्चे की जरूरतों का ध्यान रखने के लिए अपने निजी जीवन, करियर और रिश्तों तक को भूल जाते हैं.
क्या है सिजोफ्रेनिया का इलाज
एक्सपर्ट का कहना है कि इस तरह की दयनीय स्थिति में पेरेंट्स को खुद को मजबूत रखने के लिए पर्सनल थेरेपी, काउंसलिंग और कम्यूनिटी सपोर्ट की जरूरत होती है. इसमें भगवान के प्रति आस्था भी पेरेंट्स को राहत प्रदान कर सकती है.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)