मेंटल हेल्थ स्टेटस और यहां तक कि आत्महत्या की प्रवृत्ति का आकलन करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग और टेलीहेल्थ कंसल्टेशन जैसी टेक्नोलॉजी मेंटल डिसऑर्डर के खिलाफ लड़ाई में नया हथियार हैं. भारत में प्रत्येक एक लाख लोगों पर औसतन 0.75 मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स की उपलब्धता है. यह विसंगति जमीनी स्तर पर भी दिखाई देती है जहां कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त लाखों लोग न केवल कलंक और अज्ञानता के शिकार हैं, बल्कि पर्याप्त संख्या में ट्रेंड मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स नहीं होने की वजह से भी जूझ रहे हैं.
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मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने के लिए टेक्नोलॉजी बहुत जरूरी:
ऐसे में तकनीक आधारित पहल कारगर साबित होती हैं. विशेषज्ञों के अनुसार मेंटल हेल्थ सर्विसेस की जरूरत और ट्रेंड प्रोफेशनल्स की संख्या के बीच बड़े अंतराल पर ध्यान देने के लिए इन टेक्नोलॉजी का उपयोग जरूरी है. चुनौतियां भरपूर हैं, लेकिन हाथ में कुछ समाधान भी हैं.
भारत में 1.38 अरब आबादी के लिए 9,000 से भी कम मनोचिकित्सक
कर्नाटक के हुबली स्थित मानस इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ में सीनियर साइकेट्रिस्ट डॉ आलोक कुलकर्णी ने कहा, "भारत में 1.38 अरब आबादी के लिए 9,000 से भी कम मनोचिकित्सक हैं. इसलिए तकनीक आधारित पहल रेलिवेंट हो जाती हैं"
टेलीहेल्थ, सोशल मीडिया ऐप, एआई, रोबोट, अल्गोरिद्म और अन्य कई आधुनिक तकनीक जनता, डॉक्टरों और रिसचर्स को सहायता प्रदान करने, निगरानी रखने और मानसिक सेहत के बारे में समझ बढ़ाने के नए तरीके मुहैया करा रही हैं.
मशीन लर्निंग अल्गोरिद्म से आत्महत्या के प्रयास की प्रवृत्ति का पता लगा सकते हैं:
हरियाणा स्थित पानीपत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी की अंजू भंडारी गांधी ने से कहा, "मैंने मशीन लर्निंग अल्गोरिद्म का इस्तेमाल करके एक मॉडल विकसित किया है जो किसी व्यक्ति के व्यवहार का विश्लेषण करके उसकी आत्महत्या के प्रयास की प्रवृत्ति का पूर्वानुमान लगा सकता है."
मशीन लर्निंग एआई का एक प्रकार है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)