100 ग्राम समोसा-जलेबी में कितनी कैलोरी होती है? इस कैलोरी को बर्न करने में लगेगी कितनी मेहनत और एक्सरसाइज

Calories In 100 Grams Samosa And Jalebi : अगर आप अपनी सेहत को लेकर गंभीर हैं, तो बेहतर है कि कुछ चीजों को कभी-कभार तक ही सीमित रखें. स्वाद ज़रूरी है, लेकिन समझदारी उससे भी ज्यादा ज़रूरी है.

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समोसे और जलेबी में कितनी कैलोरीज़ होती हैं (Calories In 100 Grams Samosa And Jalebi)

Calories In 100 Grams Samosa And Jalebi : आजकल की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में लोग खाने-पीने को लेकर ज़्यादा सोचने का वक्त नहीं निकाल पाते. नतीजा यह होता है कि स्वाद के चक्कर में सेहत से समझौता होने लगता है. खासकर जब बात समोसे और जलेबी जैसे पारंपरिक लेकिन भारी नाश्तों (Samose ka nashta) की हो, तो हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि यह स्वाद आगे चलकर कितनी बड़ी परेशानी बन सकता है. शाम की चाय के साथ गरमा-गरम समोसा (Chai Samosa) और मीठी जलेबी का आनंद लेना हर किसी को पसंद होता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह स्वादिष्ट स्नैक आपके शरीर में कितनी एनर्जी भर देता है? और वह एनर्जी आपके कितने काम आती है? शायद नहीं. ऐसे में आइए जानते हैं कि एक समोसे में कितनी कैलोरी होती है. 

समोसे और जलेबी में कितनी कैलोरीज़ होती हैं (Calories In 100 Grams Samosa And Jalebi)


100 ग्राम समोसे और जलेबी में कितनी कैलोरी होती है

पोषण विशेषज्ञ दिप्ती खटूजा का कहना है कि आमतौर पर देखें तो 100 ग्राम जलेबी में लगभग 356 कैलोरी होती हैं. यह मुख्य रूप से मैदा, चीनी और घी या तेल में तलने की प्रक्रिया से बनती है. कभी कभी इनका सेवन किया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से आपकी सेहत और स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है कि आप कितनी मात्रा में इनका सेवन कर सकते हैं. 

वहीं दूसरी ओर फिटनेस एक्सपर्ट की मानें तो एक जलेबी खाने के बाद आपको लगभग एक घंटे के जॉगिंग जितनी कैलोरी अपने शरीर में डाल रहे होते हैं - बिना किसी न्यूट्रीशन के फायदे के. चीनी की ज्यादा मात्रा ब्लड में शुगर को तेज़ी से बढ़ा देती है, जिससे डायबिटीज और मोटापे का खतरा बढ़ता है.

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हार्ट के लिए नुकसानदेह :

दूसरी तरफ समोसे को लोग थोड़ा बेहतर मान लेते हैं, क्योंकि इसमें आलू और मसाले होते हैं. हालांकि यह कह पाना मुश्किल है कि एक समोसे में कितनी कैलोरी है, क्योंकि यह कैसे बना है, किस तेल या मसाले का इस्तेमाल हुआ है यह सभी चीजें इसमें मायने रखती हैं. फिर भी अनुमान के तौर पर लिया जाए तो 100 ग्राम समोसे में लगभग 362 कैलोरी हो सकती हैं. इसमें भी मैदा और तलने के लिए इस्तेमाल होने वाला तेल ही मुख्य भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा, अक्सर दुकानों पर समोसे ऐसे तेल में तले जाते हैं जिसे बार-बार गरम किया गया होता है. ऐसे तेल में मौजूद ट्रांस फैट हार्ट के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं. लेकिन वहीं देश के जाने माने कार्डियोलोजिस्ट डॉक्टर नरेश त्रेहान का कहना है कि अगर आप नियंत्रित रूप से इनका सेवन करते हैं तो यह उतना नुकसानदायक भी नहीं होता. 

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शरीर पर बुरा असर :

अब ज़रा सोचिए, अगर कोई व्यक्ति हफ्ते में तीन बार समोसा और जलेबी खाता है, तो वह लगभग 2,100 से 2,200 एक्स्ट्रा कैलोरी हर हफ्ते खा रहा है. इसका सीधा असर वज़न बढ़ने, पेट बाहर आने और शरीर की चर्बी बढ़ने के रूप में देखा जा सकता है. यही नहीं, इन चीजों के कारण ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियां भी समय से पहले दस्तक दे सकती हैं.

इन दोनों स्नैक्स में कोई फाइबर नहीं होता, न ही इसमें शरीर को ज़रूरी विटामिन या प्रोटीन मिलता है. यानी कैलोरी तो भरपूर मिलती है, लेकिन शरीर के लिए फायदेमंद कोई तत्व नहीं मिलता.

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सरकार को भी चिंता :

अब सरकार और स्पेशलिस्ट दोनों ही इस आदत को लेकर गंभीर चिंता जता रहे हैं. हाल ही में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बच्चों में बढ़ते मोटापे और दूसरी बीमारियों को लेकर चेतावनी दी गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के आंगनवाड़ी केंद्रों में पंजीकृत 5 साल से कम उम्र के करीब 6% बच्चे पहले से ही ज़्यादा वज़न के हैं. यह आंकड़ा छोटा लग सकता है, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई बहुत बड़ी है. यह दिखाता है कि हमारी खानपान की आदतें बच्चों की सेहत को चुपचाप बिगाड़ रही हैं.

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सभी राज्यों को सलाह : 

सरकार ने सभी राज्यों को सलाह दी है कि छोटे बच्चों की खानपान की आदतों को बेहतर बनाने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं. इसमें खासतौर पर तले हुए खाने से दूर रहने, रोज़ाना तेल की मात्रा को सीमित रखने और सबसे अहम बात – ट्रांस फैट से पूरी तरह बचने की बात कही गई है. ट्रांस फैट वही होता है जो वनस्पति घी, पुराने तेल में बने समोसे, जलेबी, और बेकरी के कई सामानों में पाया जाता है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कई दुकानदार एक ही तेल को बार-बार गर्म करके इस्तेमाल करते हैं. ऐसा करना खतरनाक कम्पाउंड को जन्म देता है जो दिल की बीमारी और कैंसर जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकते हैं. मंत्रालय का सुझाव है कि अगर तेल दोबारा इस्तेमाल करना ही है, तो बस एक बार करी बनाने में किया जाए – दोबारा तले जाने के लिए नहीं.

अब इन नाश्तों को सिर्फ स्वाद की नज़र से नहीं देखा जा रहा, बल्कि इन्हें “नई उम्र के सिगरेट” कह कर बुलाया जा रहा है. सोशल मीडिया पर भी लोग इन पर चर्चा कर रहे हैं कि ये चीज़ें बच्चों के शरीर को धीरे-धीरे कैसे नुकसान पहुंचा रही हैं. सरकार ने आंगनवाड़ी और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर "तेल और चीनी" के प्रभावों की जानकारी देने वाले बोर्ड लगाने का आदेश दिया है. यहां तक कि फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को भी फल और हेल्दी स्नैक्स अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. सरकार चाहती है कि लोग बाजार के भरे हुए पकवानों की जगह घर के उबले चने, फल, और कम तेल में बने स्नैक्स को प्राथमिकता दें.

इस आर्टिकल का मकसद यह नहीं है कि आप तला भुना खाना ही छोड़ दें, लेकिन रोज़ाना इन्हें खाना अब एक हेल्दी ऑप्शन नहीं रह गया है. समय आ गया है कि हम अपने खाने-पीने की आदतों पर दोबारा सोचें – खासकर तब, जब बात बच्चों की सेहत की हो.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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