एम्प्लॉई को हुआ फ‍िशर, मैनेजर से मांगी छुट्टी, वायरल हो गई चैट, यहां पढें... | कैसे करें वर्क लाइफ बैलेंस

वर्क-लाइफ बैलेंस का मतलब सिर्फ अपने टाइम को मैनेज करना नहीं होता है बल्कि अपनी मेंटल और फिजिकल हेल्थ को भी एहमियत देना है.

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वर्क और पर्सनल लाइफ को कैसे करें बैलेंस.

आज के समय में जब हर कोई सोशल मीडिया पर एक्टिव रहता है कुछ ना कुछ ऐसा सामने जरूर आ जाता है जो लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच सकता है. इन दिनों सोशल मीडिया पर कई ऐसे पोस्ट वायरल हुए हैं जिसमें बीमारी की छुट्टी मांगने पर कर्मचारी को ऑफिस बुलाया गया और बीमारी की हालत में भी काम करने के लिए कहा गया है. 

हाल ही में एक और ऐसी है चैट सोशल मीडिया पर वायरल हुई है. जिसमें एक रेडिट पोस्ट में यूजर ने अपने मैनेजर के साथ हुई व्हाट्सऐप चैट का स्क्रीनशॉट को इंटरनेट पर शेयर किया है. इस चैट में फिशर होने पर कर्मचारी ने छुट्टी मांगने पर मैनेजर ने उस पर काम से भागने का इल्जाम और अपनी कमिटमेंट को पूरा ना करने का आरोप लगाया. इसी के साथ उससे मेल पर जवाब भी मांगा.

यहां देखिए चैट

जान है तो जहान है, जिस तरह से काम जरूरी है उसी तरह से अपनी सेहत का ख्याल रखना भी बेहद जरूरी होता है. कई बार कॉर्पोरेट कंपनियों में काम करने वाले मैनेजर, सामने वाले की शारीरीक और मानसिक स्थिति से ज्यादा तवज्जों काम को देते हैं. आइए ऐसे में जानते हैं कि कैसे वर्क लाइफ और पर्सनल लाइफ में कैसे बनाएं बैलेंस.

काम और सेहत का संतुलन

अभी हमने जिस मामले की बात की वो दिखने में छोटा जरूर लगता है, लेकिन इसके पीछे आज की कॉर्पोरेट कल्चर और वर्क-लाइफ बैलेंस की जद्दोजहद झलकती है. आज के दौर में नौकरी सिर्फ एक काम की तरह नहीं रह गई है, बल्कि हर समय चलने वाली एक दौड़ बन गई है जहां पर कर्मचारी को खुद को प्रूव करना पड़ता है.

“सिक लीव” में अब बीमारी साबित क्यों करनी पड़ती है?

कई ऑफिस में ऐसा माहौल देखा जाता है जहां पर बीमार पड़ने पर भी छुट्टी लेना एक लग्जरी की तरह देखा जाता है. कर्मचारी को अपने बीमार होने का सबूत देना पड़ता है और भरोसा दिलाना पड़ता है कि उसके लिए छुट्टी लेना कितना जरूरी है.
ये न सिर्फ स्ट्रेस बढ़ाता है, बल्कि मेंटल हेल्थ और फिजिकल हेल्थ दोनों पर असर डालता है.

वर्क प्रेशर और गिल्ट

कई बार छुट्टी लेने के बावजूद कर्मचारी गिल्ट फील करते हैं कि उनके छुट्टी लेने की वजह से उनके साथ काम करने वालों पर वर्क प्रेशर बढ़ जाएगा. या कहीं उनका मैनेजर नाराज ना हो जाए और इसका असर कहीं उसकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट पर न पड़े. ये लगातार चलने वाला मेंटल प्रेशर, क्रोनिक स्ट्रेस और बर्नआउट सिंड्रोम जैसी समस्याओं को न्यौता दे सकता है.

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कैसे करें बैलेंस

वर्क-लाइफ बैलेंस का मतलब सिर्फ अपने टाइम को मैनेज करना नहीं होता है बल्कि अपनी मेंटल और फिजिकल हेल्थ को भी एहमियत देना है. कंपनियों को चाहिए कि वे कर्मचारियों के लिए ऐसा माहौल बनाएं जहां बीमारी या पर्सनल टाइम के लिए एक्सप्लेनेशन ने देना पड़े.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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