विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने रविवार को मिस्र को मलेरिया मुक्त देश घोषित कर दिया. यह उपलब्धि हासिल करने वाला वह दुनिया का 44वां देश बन गया है. डब्ल्यूएचओ ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि 10 करोड़ की आबादी वाले मिस्र की सरकार की करीब 100 साल की कोशिश के बाद उसने यह उपलब्धि हासिल की है. डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. तेद्रोस ए. गेब्रेयेसस ने एक बयान में कहा, "मलेरिया रोग उतना ही पुराना है, जितनी मिस्र की सभ्यता. फराओ को मात देने वाली यह बीमारी अब उसके इतिहास की बात बन चुकी है, न कि भविष्य की." उन्होंने कहा कि मिस्र की यह उपलब्धि वाकई ऐतिहासिक है और वहां के लोगों तथा सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है.
साल 2010 के बाद पूर्वी मेडिटरेनियन क्षेत्र में पहली बार किसी देश को मलेरिया मुक्त घोषित किया गया है. इस क्षेत्र में संयुक्त अरब अमीरात और मोरक्को के बाद सफलतापूर्वक मलेरिया उन्मूलन करने वाला यह तीसरा देश है.
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मिस्र के उप-प्रधानमंत्री डॉ. खालिद अब्दुल गफ्फार ने कहा कि मलेरिया उन्मूलन का यह प्रमाणन एक नए चरण की शुरुआत है. अब इस उपलब्धि को बनाए रखने के लिए अथक प्रयास की जरूरत है.
डब्ल्यूएचओ किसी देश को मलेरिया मुक्त होने का प्रमाणन तब देता है, जब वह लगातार तीन साल तक इस बीमारी के घरेलू प्रसार को रोकने में सफल रहता है और भविष्य में इसे दोबारा फैलने से रोकने की क्षमता का प्रदर्शन करता है. मिस्र में मलेरिया के प्रमाण ईसा पूर्व 4,000 साल से मिलते हैं. सरकारी स्तर पर इसे रोकने के प्रयास 1920 के दशक में शुरू हुए जब देश में बस्तियों के आसपास चावल तथा दूसरी फसलों की खेती पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे. उस समय नील नदी के किनारे रहने वाली देश की 40 प्रतिशत आबादी मलेरिया से संक्रमित होती थी. दूसरे विश्व युद्ध के समय 1942 में देश में मलेरिया के 30 लाख मामले दर्ज किए गए थे. लेकिन साल 2001 तक मिस्र ने मलेरिया पर काफी हद तक काबू पा लिया था.
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