एचआईवी बनाम एड्स - दोनों में अंतर जानिए

हैरानी तो इस बात की है कि ज्यादातर लोग जो एचआईवी या एड्स में फर्क तक नहीं पता. तो चलिए सबसे पहले जानते हैं एचआईवी और एड्स में क्या फर्क है.

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- WHO के मुताबिक एचआईवी एक मेजर ग्लोबल पब्लिक हेल्थ इशु बना हुआ है और यह अब तक लगभग 33 मिलियन यानी करीब 330 लाख लोगों की जान ले चुका है. हालांकि, प्रभावी रोकथाम, निदान, उपचार और देखभाल से एचआईवी के साथ रहने वाले लोग लंबे और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं.

- यह अनुमान लगाया गया कि साल 2019 के अंत तक तकरीबन 38.0 million लोग HIV के साथ जी रहे थे. 

- एचआईवी संक्रमण का कोई इलाज नहीं है. हालांकि, प्रभावी रोकथाम उपलब्ध हैं: मां से बच्चे के संचरण को रोकने, पुरुष और महिला कंडोम का उपयोग, पूर्व-जोखिम प्रोफिलैक्सिस, पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस वायरस को फैलने से रोकने में मदद कर सकते हैं.

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ये तो थीं वो कुछ बातें जो ये समझने के लिए जरूरी हैं कि क्यों एचआईवी पर खुल कर बात की जाए. 

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इतने बड़े स्तर पर लोगों के संक्रमित होने के बाद भी एचआईवी या एड्स जैसे रोगों पर लोग बात तक करना नहीं चाहते. आज भी ज्यादातर लोग एड्स या एचआईवी सुनते ही जजमेंटल हो जाते हैं, या तो लोगों के मन में दूसरे के लिए घि‍न आती या वो मुंह घुमा लेते हैं... और हैरानी की बात तो इस तरह के लोगों को न ही तो एचआईवी की जानकारी होती है और न ही एड्स की. 

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हैरानी तो इस बात की है कि ज्यादातर लोग जो एचआईवी या एड्स में फर्क तक नहीं पता. तो चलिए सबसे पहले जानते हैं एचआईवी और एड्स में क्या फर्क है.

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आम तौर पर एचवीआई के नाम से पुकारा जाने वाला ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस एक ऐसा वायरस है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है और उसकी विभिन्न संक्रमणों से लड़ने की क्षमता को नष्ट कर देता है. जबकि एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम) एचआईवी का बाद वाला चरण है, जिसमें एचआईवी के चलते प्रतिरक्षा प्रणाली गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती है. एड्स का निदान होते समय इम्यून सेल या सीडी4 सेल की संख्या दयनीय स्थिति (200 से भी कम) में पहुंच जाती है. अगर किसी संक्रमित व्यक्ति की हालत लगातार बिगड़ती रहे और वह एड्स के अगले चरण तक पहुंच जाए, तो उसे कुछ किस्म के कैंसर और ट्यूबरक्लोसिस हो सकते हैं तथा उसके फेफड़े/त्वचा/मस्तिष्क में भी संक्रमण फैल सकता है.

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आम तौर पर यह गलत धारणा फैली हुई है कि एचआईवी तथा एड्स एक ही बीमारी है और एचआईवी से संक्रमित होने पर लोगों को एड्स हो ही जाएगा! जबकि सच्चाई यह है कि एचआईवी के संक्रमण से एड्स होना जरूरी नहीं होता. तथ्य तो यह है कि एचआईवी से संक्रमित अनेक लोग बिना एड्स के सालोंसाल जिंदा रहते हैं, शर्त बस यही है कि उनको लगातार उचित व सुझाया गया चिकित्सकीय इलाज कराते रहना चाहिए.

वर्तमान में एचआईवी के लिए एआरटी (एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी) नामक इलाज सुझाया जाता है. यह एक बेहद प्रभावी थेरेपी है और खून में वायरस के स्तर को एकदम निचले स्तर पर ले आती है. इसका नतीजा यह होता है कि एचआईवी न तो संक्रमित व्यक्ति की दिनचर्या को प्रभावित कर पाता और न ही उसकी जिंदगी कम कर पाता है.

(डॉ. रेशू अग्रवाल, कंसल्टेंट: इंटरनल मेडिसिन, मणिपाल हॉस्पिटल्स, व्हाइटफील्ड, बैंगलुरु)

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