56 प्रतिशत बीमारियों की वजह खराब खान-पान, ICMR ने जारी की 17 गाइडलाइंस, जानिए बैलेंस डाइट क्या शामिल करें

अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने से टाइप-2 डायबिटीज से 80 प्रतिशत तक सुरक्षा मिल सकती है. गर्भवती महिलाओं को लेकर भी ICMR ने जारी की अहम गाइडलाइंस.

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अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने से समय से पहले होने वाली मौतों की बड़ी संख्या को रोका जा सकता है.

आईसीएमआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 56.4 प्रतिशत बीमारियों की वजह खराब खानपान है. इन्हें देखते हुए ICMR ने खाने और पोषण से जुड़ी 17 डाइटरी गाइडलाइंस जारी की हैं. इनका उद्देश्य जरूरी पोषण को सुनिश्चित करना और मोटापे-डायिटीज जैसी बीमारियों से लोगों को दूर रखना है. दरअसल आईसीएमआर के तहत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन (NIN) ने ये रिपोर्ट बनाई है. रिपोर्ट के मुताबिक अच्छी डाइट रखने और फिजिकल एक्टिविटीज बनाए रखने से दिल की बीमारियों और हाइपरटेंशन जैसी स्थितियों से बहुत हद तक बचा जा सकता है, साथ ही टाइप-2 डायबिटीज से भी 80 प्रतिशत तक सुरक्षा मिलती है.

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प्री-मैच्योर मौतों को रोकने के लिए जरूरी है हेल्दी लाइफस्टाइल:

रिपोर्ट कहती है कि 'अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने से समय से पहले होने वाली मौतों की बड़ी संख्या को रोका जा सकता है. दरअसल बहुत ज्यादा प्रोसेस्ड फूड्स, जिनमें बड़ी मात्रा में शुगर और फैट होता है, जब उन्हें लगातार व्यक्ति खाता है, ऊपर से फिजिकल एक्टिविटीज भी बहुत सीमित होती हैं, तो शरीर में माइक्रोन्यूट्रीएंट की कमी होने लगती है, साथ में मोटापा भी घेर लेता है.'

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एनआईएन ने दी ये सलाह:

एनआईएन (NIN) की मल्टी-डिसिप्लिनरी कमिटी ने DIGs (Dietary Guidelines For Indians) गाइडलाइन बनाई हैं, जिसमें एक्सपर्ट्स का लीडरशिप ICMR-NIN की डायरेक्टर डॉक्टर हेमलता आर के हाथ में था. इन गाइडलाइनों के कई साइंटिफिक रिव्यू भी किए गए हैं.

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गाइडलाइंस की अहम बातें:

  • एनआईएन ने नमक कम खाने, फैट और ऑयल सीमित मात्रा में लेने, एक्सरसाइज करने, शुगर और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड को कम करने की सलाह दी है.
  • एनआईएन का सुझाव है कि मोटापे से बचने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की जरूरत है. साथ ही फूड लेबल्स में लिखी जानकारी को ठीक ढंग से पढ़कर इनफॉर्म्ड च्वाइस अपनाने की सलाह दी है.
  • इंक्लूसिव डाइट: प्लांट बेस्ड डाइट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन तार्किक ढंग से मांस बेस्ड प्रोटीन, जैसे रेड मीट को भी खाने में शामिल करना चाहिए. हर दिन 70 ग्राम और हफ्ते में 500 ग्राम तक मीट बेस्ड प्रोटीन लेने की सलाह दी गई है.
  • बच्चों और युवाओं को डेली डाइट में दूध शामिल करने की सलाह दी गई है.
  • सामान्य युवाओं और गर्भवती महिलाओं जैसे गैर जरूरी आयुर्वेदिक खुराक या पारंपरिक आयुर्वेदिक नुस्खों का उपयोग करने की जरूरत नहीं है.
  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लेक्टेयर और फेनुग्रीक जैसे खास आयुर्वेदिक सप्लीमेंट्स ना देना.
  • शिशुओं को शहद के इस्तेमाल की मनाही. रोजाना खाना बनाने के लिए सीड्स ऑयल का इस्तेमाल कर सकते हैं.
  • घी, पॉम ऑयल और कोकोनट ऑयल जैसे सैचुरेटेड फैट्स की मात्रा को घटाना चाहिए. पिंक या ब्लैक सॉल्ट कोई बेहतर सॉल्ट कैटेगरी में नहीं हैं.
  • हेल्दी शुगर जैसी कोई चीज नहीं है, इसमें शुगर, गुड़, हनी सभी शुगर के ही टाइप हैं. कोई भी एक दूसरे से बेहतर नहीं है.

इस मौके डॉक्टर हेमलता ने कहा, 'DGIs के जरिए हम जोर देते हैं कि कुपोषण को दूर करने का दीर्घकालीन और सबसे तार्किक तरीका न्यूट्रिशन से भरपूर डाइट खाने को किफायती दाम पर इसकी सभी तक पहुंच सुनिश्चित करवाना है. इस दौरान विविधता भरे खाने को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. गाइडलाइंस में वैज्ञानिक जानकारी है, जिससे नेशनल न्यूट्रीशन पॉलिसी में बताए गए टारगेट को हासिल करने में मदद मिलेगी.'

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नॉन कम्युनिकेबल डिजीज की चर्चा करते हुए एनआईएन ने बताया कि 5 से 9 साल के बच्चों में से 34 प्रतिशत हाई ट्राईग्लिसराइड्स की समस्या से जूझ रहे हैं.

आईसीएमआर के डायरेक्टर डॉक्टर राजीव बहल कहते हैं, 'बीते कुछ दशकों में भारतीय लोगों की खान-पान की आदतों में बहुत जबरदस्त बदलाव आया है. इससे नॉन-कम्युनिकेबल बीमारियों की मात्रा बढ़ेगी, जबकि कुपोषण की कुछ मौजूदा समस्याएं जस के तस बरकरार हैं.'

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बैलेंस डाइट में क्या जरूरी है? (What is important in a balanced diet?)

  • एक बैलेंस और इंक्लूसिव डाइट में प्लांट बेस्ड डाइट के साथ-साथ मीट से मिलने वाला प्रोटीन भी जरूरी होता है.
  • बैलेंस डाइट में 45 प्रतिशत कैलोरी अनाज और मोटे-अनाज से होनी चाहिए. जबकि 15 प्रतिशत कैलोरी दालों, बीन्स (फलियों) और मांस से आनी चाहिए. बाकी कैलोरीज सब्जियों, फलों और दूध से आनी चाहिए.
  • एनआईएन के मुताबिक दालों और मांस की बढ़ी हुई कीमत के चलते भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा अनाजों पर निर्भर करता है, जिसके चलते ये मैक्रोन्यूट्रीएंट्स और माइक्रोन्यूट्रीएंट्स का खराब इस्तेमाल करता है.

जरूरी न्यूट्रीएंट्स की कम मात्रा से मेटाबॉलिज्म प्रभावित हो सकता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस के साथ-साथ इससे जुड़ी दिक्कतों के बढ़ने से कम उम्र में ही कई बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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