इंडियन फूड एंड बेवरेज एसोसिएशन (आईएफबीए ) ने मंगलवार को चिंता जताई कि उपभोक्ता उत्पादों पर अचानक 'नो पाम ऑयल' (पाम तेल-मुक्त) लेबल का बढ़ता इस्तेमाल भ्रामक है और सिर्फ एक मार्केटिंग हथकंडा है. एसोसिएशन ने चिंता जताते हुए कहा कि यह उपभोक्ताओं को गलत जानकारी दे रहा है. भारत में 19वीं सदी से पाम ऑयल का इस्तेमाल हो रहा है, फिर भी इसे लेकर गलतफहमियां बनी हुई हैं. यह किफायती, बहुउपयोगी और लंबी शेल्फ लाइफ वाला तेल है, जिसका इस्तेमाल वैश्विक ब्रांड्स खाद्य उत्पादों में करते हैं.
आईएफबीए ने चेतावनी दी कि लोग सोशल मीडिया ट्रेंड्स के आधार पर भोजन चुन रहे हैं, न कि वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर. एसोसिएशन ने उपभोक्ताओं को सलाह दी कि वे पोषण की पूरी समझ के बिना झूठी जानकारी फैलाने वाले इन्फ्लुएंसर्स की सलाह न मानें. आईएफबीए के अनुसार, ‘पाम ऑयल फ्री' जैसे लेबल अब विश्वसनीय पोषण सलाह की जगह ले रहे हैं. ये लेबल उपभोक्ताओं की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का फायदा उठाने के लिए मार्केटिंग रणनीति के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं, खासकर फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स उद्योग में हैं."
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आईएफबीए के चेयरपर्सन दीपक जॉली ने कहा, “पाम ऑयल संतुलित आहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ‘नो पाम ऑयल' जैसे लेबल विज्ञान के बजाय मार्केटिंग को प्राथमिकता देकर उपभोक्ताओं को भटकाते हैं.”उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय के आहार दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए यह बात कही. जॉली ने आगे कहा, "ये बातें समग्र पोषण संतुलन के महत्व से ध्यान भटकाती हैं और भारत के आत्मनिर्भरता के प्रयासों को कमजोर कर सकती हैं, जिससे अंततः सभी हितधारकों - किसानों और उत्पादकों से लेकर उपभोक्ताओं और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तक को नुकसान होगा."
भारत में हर साल 26 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत होती है, जिसमें 9 मिलियन टन पाम ऑयल शामिल है.
आईएफबीए की वैज्ञानिक और नियामक मामलों की निदेशक शिल्पा अग्रवाल ने कहा, “आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के डायटरी गाइडलाइंस 2024 में पाम ऑयल में मौजूद टोकोट्रिनॉल्स को कोलेस्ट्रॉल कम करने और हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी बताया गया है. यह विज्ञान है, अनुमान नहीं.”
आईएफबीए ने सरकार की नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स-ऑयल पाम पहल की सराहना की, जिसके तहत 11,040 करोड़ रुपए के निवेश से पाम की खेती बढ़ाई जा रही है.
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