RBI ने जारी की अपनी सलाना रिपोर्ट. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
केंद्रीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने कहा है कि साल 2022 में ग्लोबल रिकवरी पर बहुत ज्यादा असर पड़ सकता है, हालांकि, कई वैश्विक स्थितियों के बावजूद भारत अपनी रिकवरी सुरक्षित निकाल ले जाने में सक्षम रह सकता है, वहीं भारत में मैक्रो-इकॉनमिक स्थितियों में सुधार भी देखा जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में जोखिम काफी हैं, कोविड महामारी के प्रभावों से उबरने के पहले ही रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कच्चे माल में कमी और ग्लोबल सप्लाई चेन पर बुरा असर देखा जा रहा है. दुनियाभर के सामने कई देशों में फिर से उबरती महामारी, चीन में स्लोडाउन और क्लाइमेट समझौतों पर पिछड़ते देश अभी चिंता का विषय हैं. रिपोर्ट में भारत की संभावनाओं को लेकर भी कई बातें कही गई हैं.
आरबीआई की रिपोर्ट के अहम बिंदु
- सेंट्रल बैंक की रिपोर्ट में यह जताया गया है कि दुनिया भर में बढ़ती मुद्रास्फीति के बीच बैंक के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वो कैसे आर्थिक वृद्धि को चोट पहुंचाए बिना कैसे बढ़ती महंगाई पर रोक लगाए. आरबीआई ने कहा कि जब इकॉनमिक रिकवरी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी, वैसे वक्त में बढ़ती महंगाई के चलते सख्त मौद्रिक नीति अपनानी पड़ रही है.
- आरबीआई ने कहा कि यूक्रेन-रूस युद्ध का असर दुनियाभर के देश और ग्लोबल इकॉनमी झेल रही है. खाने और तेल की बढ़ती कीमतें, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कमी से कम कमजोर देशों पर ज्यादा असर हो रहा है.
- उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर मानवीय पूंजी और निवेश में हुए नुकसान का असर लंबा रहेगा और इससे साल 2023 तक आर्थिक गतिविधियों और रोजगार की संभावनाओं को महामारी के पहले के ट्रेंड के नीचे रख सकती है.
- मुद्रास्फीति को लेकर आरबीआई ने कहा कि तीन चौथाई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर खतरा मंडरा रहा है. कच्चे माल, धातु और उर्वरक के अंतरराष्ट्रीय दामों में वृद्धि के कारण व्यापार और चालू खाता घाटे में अंतर और बढ़ गया. बैंक ने कहा कि अनिश्चितताओं के बीच मुद्रास्फीति का रुख मुख्य रूप से बदलती भूराजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.
- केंद्रीय बैंक ने कहा कि आपूर्ति पक्ष में नीतिगत हस्तक्षेप जैसे कि गेहूं निर्यात पर रोक, कपास के आयात पर सीमाशुल्क खत्म करना, वाहन ईंधनों पर उपकर घटना, कुछ इस्पाद उत्पादों पर निर्यात शुल्क बढ़ाना जैसे कदमों से कुछ संतुलन मिल सकेगा.
- रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा है कि निकट भविष्य की संभावनाएं अभी बहुत अनिश्चिति हैं, तेजी से बदल रही हैं, ऐसे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.
- आरबीआई ने ढांचागत सुधारों का मजबूती से समर्थन करते हुए कहा है कि समावेशी, टिकाऊ और संतुलित वृद्धि के लिए और वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के बाद के प्रभावों से निपटने के लिए ये सुधार आवश्यक हैं. आरबीआई ने रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया कि भविष्य की वृद्धि का मार्ग आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करने, मुद्रास्फीति को कम करने तथा पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देने के लिए मौद्रिक नीति को समायोजित करने के जरिए निर्धारित किया जाएगा.
- रिपोर्ट के ‘मूल्यांकन एवं संभावनाएं' अध्याय में कहा गया, ‘‘भारत की मध्यावधि वृद्धि की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए ढांचागत सुधार टिकाऊ, संतुलित और समावेशी वृद्धि के लिए अहम हैं, विशेषकर वैश्विक महामारी के बाद के प्रभावों के मद्देनजर कर्मचारियों में कौशल विकसित करने में मदद देना और उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्हें नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना सिखाना आवश्यक है.''
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