इनसाइड स्टोरी : इन 5 कारणों और मजबूरियों से नीतीश कुमार ने दूसरी बार छोड़ा BJP का साथ

हाल ही में जेपी नड्डा ने बिहार प्रवास के दौरान विपक्ष मुक्त राजनीति की बात कहकर नीतीश को संजीदा और अलर्ट कर दिया और उन्होंने हफ्तेभर के भीतर खेल कर दिया.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
नीतीश कुमार का राजनीतिक पदार्पण और प्रशिक्षण समाजवादी विचारधारा और परिवेश में हुआ है
नई दिल्ली:

बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के सबसे बड़े नेता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने 9 साल बाद फिर से बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया है. अब वो पांच साल पुरानी राह पर लौट रहे हैं. यानी साल 2017 में उन्होंने राजद के साथ जहां सियासी सफर छोड़ा था, उसे फिर से आगे बढ़ाने जा रहे हैं.  ऐसा नहीं है कि यह नीतीश कुमार का अचानक से लिया गया फैसला है, बल्कि सियासी घटनाक्रमों के देखें तो यह 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान ही दिख गया था कि बीजेपी नेतृत्व नीतीश और जेडीयू को कमजोर कर रहा है लेकिन अब जाकर नीतीश ने उसका प्रतिकार करने का फैसला किया है.  आइए जानते हैं, उन कारणों और मजबूरियों के बारे में जिनकी वजह से नीतीश कुमार ने दोबारा बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला किया है-

  1. प्रधानमंत्री पद की आकांक्षा : नीतीश कुमार के करीबी और उनकी पार्टी के संसदीय दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने आज ही सुबह ट्वीट कर ये स्पष्ट कर दिया है कि नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल हैं और वह अब प्रधानमंत्री पद की चाहत रखते हैं. हालांकि, गाहे-बेगाहे नीतीश इसका खंडन करते रहे हैं लेकिन यह नीतीश कुमार का अपना अंदाज है कि वो ना-ना कहते बहुत कुछ भीतरखाने पका जाते हैं. जब से बीजेपी-जेडीयू गठबंधन टूटने की चर्चा ने जोर पकड़ा है, सूत्र बताते हैं कि तब से नीतीश कुमार की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से दो बार फोन पर बातचीत हो चुकी है. संभव है कि नीतीश 2024 के चुनाव में विपक्ष की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार हों.  यह भी संभव है कि इनकी उम्मीदवारी से सोनिया गांधी ममता बनर्जी समेत कुछ और सियासी विरोधियों को खास संदेश देना चाह रही हों.
  2. जातीय समीकरण और जातिगत जनगणना : नीतीश कुमार का राजनीतिक पदार्पण और प्रशिक्षण समाजवादी विचारधारा और परिवेश में हुआ है. साथ ही वो जनता दल परिवार और मंडल राजनीति से भी जुड़े रहे हैं. पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नीतीश की राजनीति और राजनीतिक विचारधारा भी इसी समाजवाद की अवधारणा पर टिकी हुई है. लिहाजा, वो जातीय जनगणना के पुरोजर समर्थक रहे हैं. जब से बीजेपी ने जातीय जनगणना से इनकार किया है और राजद ने इसकी पुरजोर वकालत की है, तब से नीतीश और राजद के बीच दूरियां धीरे-धीरे मिटने लगीं और आज एकबार फिर से जयप्रकाश नारायण के दोनों चेले (लालू यादव और नीतीश कुमार) एकसाथ नजर आ रहे हैं. खास बात यह भी है कि नीतीश बीजेपी के हिन्दुत्व ध्रुवीकरण के भी विरोधी रहे हैं और इंद्रधनुषीय राजनीति के समर्थक रहे हैं.
  3. बीजेपी की जन विरोधी नीति और वादाखिलाफी : केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी ने चुनावों से पहले 2014 और 2019 में जनसरोकार से जुड़े कई वादे किए लेकिन जमीनी स्तर पर वैसा हुआ नहीं. महंगाई, बेरोजगारी, खाद्य वस्तुओं पर जीएसटी लगाने से उनके दामों में हुई बढ़ोतरी, तेल-गैस के दाम में इजाफा समेत अन्य मुद्दों ने बीजेपी के खिलाफ मध्यम वर्ग में असंतोष पैदा किया है. इस विरोध में बीजेपी के साथ-साथ जेडीयू को भी कोपभाजन बनना पड़ रहा था. लिहाजा, जेडीयू ने बीजेपी से राहें जुदा कर खुद को जनपक्षधर होने का प्रमाण पेश किया है.
  4. जेडीयू को बचाना: यह बात अब किसी से छुपी नहीं रही कि बीजेपी बिहार में खेल करना चाह रही थी और जैसा कि जेडीयू ने आरोप लगाया है कि यह खेल आरसीपी सिंह के जरिए ही करना चाह रही थी, इसलिए नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह और बीजेपी पर स्ट्राइक कर ना केवल अपना भविष्य सुरक्षित करने की कोशिश की है बल्कि अपनी पार्टी जेडीयू की भी मजबूत किलेबंदी की है. कोईरी-कुर्मी की पार्टी कहलाने वाली जेडीयू ने राजद के साथ गठजोड़ कर बिहार के बड़े वोटबैंक को अब अपने पाले में कर लिया है. संभव है कि इस गठजोड़ के कारण 2024 के आम चुनावों में बीजेपी राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से दहाई का भी आंकड़ा न छू सके.
  5. बीजेपी की महत्त्वाकांक्षाएं और मिशन बिहार : बिहार जैसे राजनीतिक तौर पर उपजाऊ राज्य  में अपना मुख्यमंत्री बनाने की बीजेपी की कसक फिर से अधूरी रह गई, जिसका सपना कभी बीजेपी के पितामह कहलाने वाले कैलाशपति मिश्र ने देखा था लेकिन उस सपने को साकार करने की दिशा में नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की टीम ने जो जल्दबाजी दिखाई, वह इस अंजाम तक पहुंच गई. नीतीश इस बात से भी खफा थे के पुराने भाजपाइयों (सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव) को किनारे लगा दिया गया. बीजेपी के मिशन बिहार के उलट अब नीतीश और लालू के मिशन बिहार ने सियासी तौर पर बिहार को फिर से मंडल बनाम कमंडल के मोड़ पर पहुंचा दिया है, जहां वोट बैंक और जनसंख्या के लिहाज से  जेपी के चेलों का ही पलड़ा फिर से भारी हो चला है.
Advertisement
Featured Video Of The Day
UP By Election Exit Poll: UP में जहां सबसे अधिक मुसलमान वहां SP को नुकसान | Party Politics | UP News