Shri krishna: भगवान श्रीकृष्ण का नाम लेते ही हमारी आखों के सामने उनके सुंदर और मनमोहक छवि का आ जाती है. श्रीकृष्ण (Shri krishna) की सभी छवियों में उनके माथे पर मोर पंख (Mor Pankh) और मुकुट (Crown) शोभायमान होता है. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri krishna) को मोर पंख इतना प्रिय था कि वह उनके मुकुट का हिस्सा बन गया. लेकिन क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण अपने माथे पर मोर मुकुट (Peacock Crown) क्यों धारण करते हैं? यदि नहीं, तो चलिए जानते हैं इस बारे में पौराणिक कथा.
भगवान श्रीकृष्ण अपने मष्तक पर क्यों धारण करते हैं मोर मुकुट
पौराणिक मान्यता के अनुसार, वनवास के दौरान मां सीता को जोर की प्यास लगी. श्रीराम वहीं मौजूद थे, उन्होंने चारों ओर देखा. लेकिन उन्हें दूर-दूर तक पानी नजर नहीं आया. ऐसा इसलिए क्योंकि चारों तरफ सिर्फ जंगल ही जंगल था. इसके बाद उन्होंने प्रकृति सा प्रार्थना की कि हे देव! आस-पास जहां भी पानी हो, वहां जाने का मार्ग बताएं. जिसके बाद वहां एक मयूर का आगमन होता है. उसने श्रीराम को जल प्राप्ति का मार्ग बतलाया. उसने कहा कि जलाशय तो नजदीक ही है लेकिन मार्ग में भूल होने की संभावना है. भगवान श्रीराम ने उस मोर के पूछा- आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? तब मोर ने उत्तर दिया कि वह उड़ता हुआ जाएगा और उस क्रम में वह अपने पंख को बिखेरता हुआ जाएगा. जिसके सहारे भगवान श्रीराम उस जलाशय तक पहुंच जाएंगे.
जबकि ऐसा माना जाता है कि मोर का पंख किसी विशेष समय में ही गिरते हैं. कहा जाता है कि मोर अगर अपनी इच्छा के अनुसार अपने पंख गिराता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है. भगवान श्रीराम का मार्ग दिखाने वाले मोर के साथ ही ऐसा ही हुआ. मोर जब अंतिम अवस्था में था तो उसने मन ही मन सोचने लगा कि जो इस संसार का प्यास बुझाते हैं, ऐसे प्रभु का प्यास बुझाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है सो उसकी जीवन धन्य हो गया. उसकी कोई इच्छा बाकी नहीं रही.
इसके बाद भगवान श्रीराम ने उस मोर से कहा कि तुमने पंख बिखेर कर अपने जीवन का त्यागकर मुझ पर जो ऋण चढ़ाया है, मैं इस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा. मान्यता है कि जब श्रीराम ने अगले जन्म में श्रीकृष्ण का अवतार लिया तो अपने सिर पर मयूर पंख धारण किया. इस प्रकार भगवान श्रीराम ने मोर का ऋण चुकाया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)