Rajpal Yadav meets Premanand Maharaj in Vrindavan: बॉलीवुड के हास्य कलाकार राजपाल यादव हाल ही में जब कान्हा की नगरी मथुरा-वृंदावन की यात्रा पर पहुंचे तो उन्होंने प्रेमानंद महाराज के पास जाकर उनका विशेष आशीर्वाद लिया. वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज का जब सत्संग प्रारंभ हुआ तो बीच में राजपाल यादव ने अपनी एक अनुभूति का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें कई बार यह गलतफहमी हो जाती है कि वे द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के साथ रहने वाले परम मित्र मनसुखा ही हैं. ऐसा सुनते ही प्रेमानंद महाराज समेत सभी लोग ठहाका मार कर हंसने लगे. जिस मनसुखा का नाम सुनते ही संत प्रेमानंद समेत सभी लोग खिलखिला कर हंसने लगे, आइए उनकी कहानी को विस्तार से जानते हैं.
कौन थे मनसुखा?
पौराणिक मान्यता के अनुसार अत्यंत ही विनोदी स्वभाव वाले मनसुखा भगवान श्रीकृष्ण के आठ प्रिय संगी-साथी में से एक थे जो अक्सर कान्हा ओर गोपमित्रों को हमेशा आनंद में बनाए रखने के लिए अक्सर अजब-गजब हरकतें किया करते थे. हिंदू मान्यता के अनुसार मनसुखा भगवान श्रीकृष्ण के गुरु संदीपनि ऋषि के पुत्र थे, जिनका असली नाम मधुमंगल था. वह भगवान श्री कृष्ण के परम मित्रों में से एक थे, जिनसे कान्हा समय-समय पर सलाह भी लिया करते थे.
कैसे पड़ा नाम मनसुखा?
हिंदू मान्यता के अनुसार कान्हा के साथ रहने वाले तमाम ग्वाल-बालों में सिर्फ मनसुखा ही चर्चित नहीं थे, बल्कि उनके साथ ऐसे ही तनसुखा और धनसुखा भी साथ रहा करते थे. जाने-माने कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के साथ जो ग्वाला तन से सबसे ज्यादा कमजोर था, उसे वह तनसुखा कहकर बुलाते थे. इसी प्रकार जो ग्वाला हर समय रोनी सूरत बनाए रखता था, उसे देखकर जब उन्होंने पूछा कि वह क्यों उदास है तो उसने बताया वह उदास नहीं बल्कि उसकी सूरत ही है ऐसी है.
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हर समय विदूषक की तरह से हंसाने वाले उस ग्वाले का नाम उन्होंने मनसुखा रख दिया था. इसी तरह एक ग्वाला जो कई-कई दिनों तक एक ही कपड़ा पहने रहता था, उससे उन्होंने पूंछा कि तुम गंदे कपड़े क्यों पहने रहते हो तो उसने बताया कि बार-बार धुलवाने में धन खर्च होगा इसलिए वह एक ही कपड़े को कई दिनों तक पहनता है, तब कान्हा ने उस ग्वाले की कंजूसी को देखकर उसका नाम धनसुखा रख दिया.
मनसुखा के लिए कान्हा बने थे माखनचोर
मान्यता है कि मनसुखा दुर्बल शरीर वाले एक गरीब ब्राह्मण परिवार से आते थे. जिनके शरीर को देखते हुए एक बार कान्हा ने उनसे कहा कि तुम मेरे तरह स्वस्थ शरीर वाले क्यों नहीं हो जाते. यह सुनते ही मनसुखा दुखी होकर बोला मैं एक गरीब ब्राह्मण का बच्चा हूं और तुम राज परिवार की संतान. तुम्हारी मां यशोदा तुम्हे प्रतिदिन मक्खन खिलाती हैं और मेरी मां मुझे रोज छाछ पीने के लिए देती हैं. मैंने तो आज तक माखन खाया ही नहीं. ऐसा सुनते ही भगवान श्री कृष्ण ने मनसुखा से कहा कि तुम फिक्र न करो मैं तुम्हें आज से माखन खिलाया करूंगा. मान्यता है कि उसी के बाद कान्हां तमाम घरों से माखन चोरी करके ग्वाल-बालों को खिलाया करते थे.
जब मनसुखा ने धरा कान्हा का रूप
मान्यता है कि एक बार मनसुखा ने भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप यह सोच कर धर लिया कि उसे सभी गोपियां प्रेम करेंगी ओर उसे खाने के लिए लड्डू देंगी, लेकिन तभी वहां पर श्रीकृष्ण को मारने के लिए घोड़े का रूप धारण करके केशी दैत्य आ गया. मनसुखा को देखकर उसे लगा वहीं श्रीकृष्ण हैं और वह उन्हें मारने के लिए लपका, लेकिन तभी भगवान श्रीकृष्ण ने आकर उसदैत्य का वध कर दिया और मनसुखा को बचा लिया. इस घटना के बाद मनसुखा ने कसम खाई कि वह भविष्य में कभी भी कान्हा का स्वरूप नहीं धारण करेंगे.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)














