Valmiki Jayanti 2023: आज है वाल्मीकि जयंती, जानिए रामायण के रचयिता का इतिहास और उनसे जुड़ी रोचक बातें

Valmiki decoit story : हिंदू धर्म में महर्षि वाल्मीकि जयंती का विशेष महत्व होता है, ये दिन शरद पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है. ऐसे में आइए हम आपको बताते हैं महर्षि वाल्मीकि जयंती इस बार कब मनाई जाएगी.

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Valmiki Jayanti 2023: हिंदू धर्म में महर्षि वाल्मीकि (Valmiki) को श्रेष्ठ गुरु माना जाता है, कहते हैं कि पहले वाल्मीकि जी डाकू थे, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि उनका जीवन बदल दिया और उन्होंने भगवान श्री राम (Lord Rama) के जीवन पर आधारित रामायण (Ramayan) महाकाव्य लिख दी. महर्षि वाल्मीकि का जीवन बहुत ही संघर्षों से भरा रहा है. शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन ही महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाती है, वैसे तो शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा होती है लेकिन इस दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती का भी विशेष महत्व होता है.

कौन थे महर्षि वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था, कहा जाता है कि यह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र प्रचेता के बेटे थे. वहीं कुछ जानकार वाल्मीकि जी को महर्षि कश्यप  चर्षणी का बेटा भी मानते हैं. कहा जाता है कि एक भीलनी ने बचपन में महर्षि वाल्मीकि का अपहरण कर लिया था और भील समाज में ही उनका पालन पोषण हुआ. भील लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वाले राहगीरों को लूट लिया करते थे और महर्षि वाल्मीकि भी इसी परिवार के साथ डकैत बन गए थे.

एक घटना ने बदली रत्नाकर की जिंदगी
कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते जाते हुए डाकू रत्नाकर के चंगुल में आ गए थे. तब नारद जी ने उनसे कहा कि इसमें कुछ हासिल नहीं होगा. रत्नाकर ने उनसे कहा कि वो ये सब परिवार के लिए करते हैं. तब नारद मुनि ने उनसे सवाल किया कि क्या तुम्हारे घर वाले भी तुम्हारे बुरे कर्मों के साझेदार बनेंगे? इस पर रत्नाकर ने अपने घर वालों के पास जाकर नारद मुनि का सवाल दोहराया, जिस पर उन्होंने इनकार कर दिया. इससे डाकू रत्नाकर को बड़ा झटका लगा और उनका हृदय परिवर्तन हो गया.

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राम से प्रेरित होकर लिखा महाकाव्य
कहा जाता है कि नारद मुनि से प्रेरित होकर रत्नाकर ने राम नाम का जाप करना शुरू किया, लेकिन उनके मुंह से राम की जगह मरा मरा शब्द निकल रहे थे. नारद मुनि ने कहा यही दोहराते रहो इसी में राम छुपे हैं. इसके बाद रत्नाकर के मन में राम नाम की ऐसी अलख जगी कि उनकी तपस्या देखकर ब्रह्मा जी ने उन्हें खुद दर्शन दिए और उनके शरीर पर लगे बांबी को देखकर ही ब्रह्मा जी ने उन्हें वाल्मीकि नाम दिया. महर्षि वाल्मीकि को ब्रह्मा जी से ही रामायण की रचना करने की प्रेरणा मिली. उन्होंने संस्कृत में रामायण लिखी, जिसे सबसे पुरानी रामायण माना जाता है और कहते हैं कि इसमें 24000 श्लोक हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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