आज है भीमा निर्जला एकादशी, यहां जानिए व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व

भगवान विष्णु का खास व्रत भीमा एकादशी (ekadashi 2023 date) कब पड़ रही है, पूजा विधि और महत्व क्या है उसके बारे में पता लगा लेना जरूरी है, तो चलिए जानते हैं इस खास एकादशी के बारे में. 

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Nirjala ekadashi का व्रत रखने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच-स्नान आदि से निवृत हो लिया जाता है.

Ekadashi importance : ज्येष्ठ महीने की निर्जला एकादशी को सभी एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. यह एकादशी बहुत कठिन भी होती है. इसे भीमा एकादशी के नाम से जाना जाता है. आपको बता दें कि भगवान विष्णु की पूजा अर्जना किए जाने वाला यह व्रत पूरे साल में 24 पड़ता है. इन सभी एकादशियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. ऐसे में भीमा एकदशी कब पड़ रही है, पूजा विधि और महत्व क्या है उसके बारे में पता लगा लेना जरूरी है, तो चलिए जानते हैं इस खास एकादशी के बारे में. 

निर्जला एकादशी कब है

इस बार निर्जला एकादशी दिन मंगलवार को 01 बजकर 07 मिनट से दिन बुधवार को दोपहर 01 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. इस व्रत का पारण 01 जून सुबह 5 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 10 मिनट तक रहेगा. 

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निर्जला एकादशी पूजा विधि

निर्जला एकादशी का व्रत रखने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच-स्नान आदि से निवृत हो लिया जाता है. इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा पूरे भक्ति भाव से करनी चाहिए. इस व्रत में महिलाएं  पूर्ण श्रृंगार और मेंहदी लगाती हैं. व्रत के दौरान पूरे दिन भगवान विष्णु का नाम लेना चाहिए. एकादशी के दिन सोना निषेध माना गया है. एकादशी व्रत की पूजा के बाद कलश के जल से पीपल को जल देना चाहिए. दूसके दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु और पीपल के नीचे दीपक जलाना चाहिए. इसके बाद ब्रह्मणों को भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा देना चाहिए. इस दिन दान में जल से भरा घड़ा, अन्न, वस्त्र, छाता, पान, शैय्या, आसन, पंखा सोना और गोदान करना चाहिए.

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निर्जला एकादशी के दिन वैसे तो सभी को दान करना अच्छा माना गया है, लेकिन व्रती को इस दिन सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, जल, जूता, आसन, पंखा, छतरी और फल इत्यादि का दान करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन जल से भरे कलश का दान करने से बहुत अधिक पुण्य प्राप्त होता है.   

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निर्जला एकादशी व्रत के नियम | Nirjala Ekadashi Vrat Niyam

धार्मिक मान्यता के मुताबिक एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से ही शुरू हो जाते हैं. दशमी तिथि की रात को अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है. वहीं अगले दिन यानी एकादशी तिथि को सूर्योदय से सूर्यास्त तक अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है. निर्जला व्रत रखा जाता है. द्वादशी तिथि को पारण के बाद ही जल या अन्न ग्रहण किजा जाता है. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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