Vijaya Ekadashi 2021: विजया एकादशी पर इस विधि से करें पूजा, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

Vijaya Ekadashi Puja Vidhi: हिन्‍दू पंचांग के अनुसार,  फाल्गुन मास की कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं. इस बार विजया एकादशी 9 मार्च को है.

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Vijaya Ekadashi 2021: विजया एकादशी पर इस विधि से करें पूजा.
नई दिल्ली:

Vijaya Ekadashi 2021: हिन्‍दू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह एकादशी हर साल फरवरी या मार्च के महीने में आती है. इस बार विजया एकादशी 9 मार्च मंगलवार को यानी आज है. इस एकादशी के दिन सृष्टि के रचयिता श्री हरि विष्‍णु की पूजा का विधान है. हिन्‍दू पुराणों में विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का व्रत सर्वोत्तम माना जाता है. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से कई गुना पुण्‍य मिलता है और व्‍यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. 

विजया एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त 
विजया एकादशी की तिथि: 9 मार्च 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ- 08 मार्च 2021 को दोपहर 03.44 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 09 मार्च 2021 को दोपहर 03.02 मिनट पर

विजया एकादशी का महत्‍व 
हिन्‍दू मान्‍यताओं में विजया एकादशी का बड़ा महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्‍त होती है. इस व्रत को सभी व्रतों में उत्तम माना गया है. इस विजया एकादशी के महात्‍म्‍य के श्रवण और पठन से सभी पापों का नाश हो जाता है. कहते हैं कि विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों का नाश करने वाला है. हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करता है उसकी विजय अवश्‍य होती है.

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विजया एकादशी की पूजा विधि
- एकादशी के दिन सुबह उठकर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और व्रत का संकल्‍प लें. 
- अब घर के मंदिर में पूजा से पहले एक वेदी बनाकर उस पर सप्‍त धान (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें. 
- वेदी के ऊपर एक कलश की स्‍थापना करें और उसमें आम या अशोक के पांच पत्ते लगाएं. 
- अब वेदी पर भगवान विष्‍णु की मूर्ति या तस्‍वीर रखें. 
- इसके बाद भगवान विष्‍णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें. 
- फिर धूप-दीप से विष्‍णु की आरती उतारें. 
- शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें. 
- रात्रि के समय सोए नहीं बल्‍कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें. 
- अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथा-शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें. 
- इसके बाद आप भी भोजन कर व्रत का पारण करें.

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