Varuthini Ekadashi 2021: वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरूथिनी एकादशी कहते हैं. वरूथिनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. मान्यता है कि वैशाख के महीने में भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलते हैं. वरूथिनी शब्द संस्कृत भाषा के 'वरूथिन्' से बना है, जिसका मतलब है- प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से विष्णु भगवान हर संकट से भक्तों की रक्षा करते हैं, इसलिए इसे वरूथिनी ग्यारस भी कहा जाता है. इस बार वरूथिनी एकादशी 7 मई को है.
वरूथिनी एकादशी का व्रत करते समय इन बातों का रखें ध्यान
1. कांसे के बर्तन में भोजन न करें
2. नॉन वेज, मसूर की दाल, चने व कोदों की सब्जी और शहद का सेवन न करें.
3. कामवासना का त्याग करें.
4. व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए.
5. पान खाने और दातुन करने से बचें.
6. व्रत के दौरान बुराई करने और चुगली करने से बचें.
7. क्रोध न करें और झूठ न बोलें.
8. इस दिन नमक, तेल और अन्न वर्जित है.
वरूथिनी एकादशी की व्रत कथा
बहुत समय पहले नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य था, जिस पर मांधाता नामक राजा राज किया करते थे. राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे. अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे. वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के उपासक थे.
एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिए चले गए और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी. वे अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया और उनके पैर चबाने लगा. लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में ही लीन रहे.
भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई.
विष्णु भगवान प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया. लेकिन तब तक भालू राजा के पैर को लगभग पूरा चबा चुका था. राजा बहुत दर्द में थे. तब भगवान विष्णु ने कहा, 'वत्स! विचलित होने की आवश्यकता नहीं है. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मेरे वराह रूप की पजा करना. व्रत के प्रताप से तुम पुन: संपूर्ण अंगो वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे. भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप का फल है. इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जाएगी.'
भगवन की आज्ञा मानकर राजा मांधाता ने वैसा ही किया और व्रत का पारण करते ही उसे जैसे नवजीवन मिला गया. वह फिर से हष्ट पुष्ट हो गया. अब राजा और भी अधिक श्रद्धाभाव से भगवद् भक्ति में लीन रहने लगे.