Vakratunda Sankashti Chaturthi 2025 Date: हिंदू धर्म में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है क्योंकि यह न सिर्फ करवा चौथ व्रत के लिए जानी जाती है, बल्कि इसे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना लिए हुए प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है. वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत में भगवान श्री गणेश जी के साथ चंद्र देवता की पूजा का विधान है. आइए वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि और धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं.
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार इस साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी 09 अक्टूबर 2025 की रात 10:54 बजे से प्रारंभ होकर 10 अक्टूबर 2025 को सायंकाल 07:38 बजे तक रहेगी. ऐसे में यह व्रत 10 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन चंद्रोदय रात को 08:13 बजे होगा.
Karwa Chauth Moon Rise Time: दिल्ली-नोएडा समेत बड़े शहरों में कब दिखाई देगा करवा चौथ का चांद? नोट कर लें सही समय
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसर वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी व्रत वाले दिन रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान श्री गणेश जी के वक्रतुण्ड स्वरूप की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन टेढ़ी सूंड़ वाली गणपति की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है. गौरतलब है कि अष्टविनायक में गणपति का पहला स्वरूप वक्रतुण्ड ही माना जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री गणेश जी ने अपना यह स्वरूप मत्सरासुर नामक दैत्य का वध करने के लिए धारण किया था. हालांकि इस युद्ध में मत्सरासुर राक्षस गणपति से माफी मांग अपने प्राणों को बचा लिया था.
Karwa Chauth 2025: अगर बादलों के बीच न नजर आए चांद तो कैसे पूरा करें अपना करवा चौथ व्रत?
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर कैसे करें पूजा
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर गणपति का आशीर्वाद पाने के लिए स्नान-ध्यान करने के बाद उनकी मूर्ति या चित्र को जल से पवित्र करें. इसके बाद रोली, चंदन, हल्दी आदि से तिलक करने के बाद पुष्प, फल, मोदक, लड्डू, नारियल, आदि अर्पित करें. इसके बाद वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी की कथा का पाठ और गणपति के मंत्र का जप करें. पूजा के अंत में श्रद्धा और विश्वास के साथ आरती करें. फिर रात के समय चंद्र देवता का दर्शन करने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत को पूर्ण करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)