पूजा में शंख का क्या है महत्व? जानें महाभारत काल में श्री कृष्ण और पांडवों के पास कौन से शंख थे?

Shankh bajane ke fayde: सनातन परंपरा में पूजा-पाठ से लेकर मांगलिक कार्यों में शंख क्यों बजाया जाता है? हिंदू धर्म से जुड़े देवी-देवताओं के हाथों में दिखने वाले इस शंख का क्या धार्मिक महत्व है? किसके पास कौन सा शंख था? शंख से जुड़ी बड़ी बातों को जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

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Shankha: हिंदू धर्म में शंख का क्या धार्मिक महत्व है?

Puja me shankh kyu bajate hai: हिंदू धर्म में शंख (Shankha) को पूजा का अभिन्न अंग माना गया है. यही कारण है कि प्राचीन काल से शंख (Conch Shell) का प्रयोग धार्मिक और मांगलिक आयोजनों के समय होता चला आ रहा है. ईश्वर की पूजा में अत्यधिक शुभ माने जाने वाले शंख कई प्रकार के आते हैं. इनमें मुख्य रूप से गणेश शंख, दक्षिणावर्ती शंख, वामावर्त शंख, मोती शंख, पांचजन्य शंख, भीम शंख, आदि हैं. आइए जानते हैं कि धार्मिक कार्यों में क्यों बजाया जाता है शंख और किसके पास कौन सा शंख था?

पूजा में क्यों बजाया जाता है शंख?

हिंदू धर्म में शंख को अत्यंत ही पवित्र और मंगलदायक वस्तु माना गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार पूजा या फिर किसी भी मांगलिक कार्य में शंख बजाने से नकारात्मक उर्जा दूर होती है और सकारात्मक उर्जा फैलती है. धर्म का मंगलदायक प्रतीक माने वाले शंख की आवाज से वातावरण पवित्र होता है. शंख की ध्वनि से देवी-देवता को जगाने का प्रयास किया जाता है. मान्यता है कि इसकी मंगलमय ध्वनि से देवता प्रसन्न होकर मनचाहा आशीर्वाद देते हैं.

श्री कृष्ण का पांचजन्य शंख 

पांचजन्य शंख अत्यधिक पवित्र होता है. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा यह दिव्य शंख जिस भी स्थान पर होता है, वहां पर सुख-सौभाग्य बना रहता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस शंख को भगवान श्री कृष्ण ने पांचजन्य नाम के राक्षस को मारकर प्राप्त किया था और इसका प्रयोग उन्होंने महाभारत के युद्ध में युद्ध की शुरुआत और समाप्ति के लिए किया करते थे. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति का शंख से अभिषेक करना अत्यंत ही शुभ और फलदायी माना गया है. मान्यता है कि लड्डू गोपाल को प्रतिदिन दूध, जल आदि स्नान कराने से शीघ्र ही उनकी कृपा प्राप्त होती है. 

पांडवों के शंख का नाम क्या था?

महाभारत काल में पांच पांडवों और कौरवों में प्रमुख माने जाने वाले दुर्योधन के पास भी अपने शंख थे. अर्जुन के पास देवदत्त नाम का तो भीम के पास पौंड्र शंख था. वहीं पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर के पास अनंतविजय नामक शंख था. जबकि नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणिपुष्पक शंख था. दुर्योधन के पास विदारक नाम का शंख तो कर्ण के पास हिरण्यगर्भ नामक शंख था.

शंख से जुड़ी खास बातें 

  • शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई इसलिए उन्हें माता लक्ष्मी का भाई भी माना जाता है. ऐसे में लक्ष्मी की कामना रखने वालों को पूजा में प्रतिदिन शंख जरूर बजाना चाहिए और उसकी पूजा भी करनी चाहिए.
  • सनातन परंपरा में दक्षिणवर्ती शंख भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है. यह शंख भगवान विष्णु के अलावा माता लक्ष्मी और देवी दुर्गा के हाथ में भी देखने को मिलता है. 
  • संतान सुख की कामना रखने वाले लोग अपने घर में गणेश शंख की प्रतिदिन पूजा करते हैं तो वहीं दक्षिणवर्ती शंख का संबंध भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से है. मान्यता है कि जिस घर में दक्षिणावर्ती शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं. 
  • वास्तु शास्त्र के अनुसार शंख को हमेशा अपने पूजा घर में उत्तर अथवा पूर्व दिशा में रखना चाहिए. इस दिशा में रखा गया शंख शुभता प्रदान करता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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