Shankaracharya Jayanti 2022: शंकराचार्य जयंती आज, जानिए उनके जीवन से जुड़ी खास बातें

Shankaracharya Jayanti 2022: शंकराचार्य जयंती 6 मई 2022 को यानि आज मनाई जा रही है. आदि शंकराचार्य का वैशाख शुक्ल पंचमी तिथि को 8वीं सदी में केरल में हुआ था.

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Shankaracharya Jayanti 2022: आइए जानते हैं शंकराचार्य के जीवन से जुड़ी खास बातें.
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  • बचपन से ही सन्यासी बनना चहते थे शंकराचार्य.
  • शंकराचार्य ने की थी चारों दिशाओं में 4 मठ की स्थापना.
  • शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरू की उपाधि है.
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Shankaracharya Jayanti 2022: शंकराचार्य जयंती 6 मई 2022 को यानि आज मनाई जा रही है. आदि शंकराचार्य का वैशाख शुक्ल पंचमी तिथि को 8वीं सदी में केरल में हुआ था. कहा जाता है कि शंकराचार्य (Shankaracharya) के पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी. मान्यता है कि बचपन से ही शंकराचार्य (Shankaracharya) संन्यास जीवन में जाना चाहते थे. हालांकि उनकी माता नहीं चाहती थीं कि उनका पुत्र संन्यासी बने. कहा जाता है कि जब शंकरचार्य 8 साल की अवस्था में थो तो वे एक बार अपनी माता के साथ नदी में स्नान करने के लिए गए. जहां उन्हें मगरमच्छ ने पकड़ लिया. जिसके बाद शंकराचार्य (Shankaracharya) ने अपनी माता से कहा कि वो उन्हें सन्यासी (Monk) बनने की अनुमति दे दें मगरमच्छ उन्हें मार देंगे. कहते हैं कि जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें संन्यासी बनने की अनुमति दे दी. आइए जानते हैं शंकराचार्य के जीवन (Life of Shankaracharya) से जुड़ी खास बातें. 


कब हुआ था शंकराचार्य का जन्म

आदि शंकराचर्य का जन्म 8वीं सदी में केरल के कदाली गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम शिवागुरू और माता का नाम आर्याम्बा था. शंकराचार्य का निधन 32 साल की उम्र में उत्तराखंड के केदारनाथ में हुआ था. लेकिन इससे पहले वे हिंदू धर्म से जुड़ी कई रूढ़ीवादी विचारधारओं से लेकर बौद्ध और जैन धर्म को कई चर्चाएं की हैं. 

कौन होते हैं शंकराचार्य

शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरू की उपाधि है. जो स्थान बौध धर्म में दलाईलामा को प्राप्त होता है और ईसाई धर्म में पोप को प्राप्त है वही स्थान हिंदू धर्म में शंकराचार्य को प्राप्त है. शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भारत के चारों दिशाओं में चार पीठ (मठ) की स्थापना की. जिसे गोवर्धन पीठ, शारदा (श्रृंगेरी पीठ), द्वारका पीठ और ज्योतिर्पीठ (जोशीमठ) के नाम से जाना जाता है. आदि शंकराचार्य ने अपने चार शिष्यों को इन चारों मठों का उत्तराधिकारी बनाया. इन चारों मठों में मठाधीश बनाने की परंपरा आज भी कायम है. 

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शंकराचार्य की रचनाएं

आदि शंकराचार्य ने उपनिषद, भगवत गीता और ब्रह्मसूत्र पर कई भाष्य लिखा. उनके द्वारा की गई उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता की टिप्पणी को प्रस्थानात्रयी के नाम से जाना जाता है. शंकराचार्य अपने समय के उत्कृष्ट विद्वान और दार्शनिक थे. इतिहास में उनका स्थान उनके अद्वैत सिद्धांत के कारण अमर है.  

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)  

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