Shani Pradosh Vrat: आज है शनि प्रदोष व्रत, इस तरह करेंगे शनि देव की पूजा तो मान्यतानुसार मिलेगी कृपा 

Shani Pradosh Vrat 2022: मान्यतानुसार प्रदोष व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. शनिवार को पड़ने वाले इस प्रदोष व्रत में जानिए शनि देव को कैसे प्रसन्न किया जाए. 

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Shani Dev Puja: इस तरह करें शनि प्रदोष व्रत में शनि देव की आराधना. 
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Shani Pradosh Vrat: धार्मिक मान्यताओं में प्रदोष व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन आमतौर पर भगवान शिव की पूजा की जाती है. लेकिन, शनिवार (Saturday) के दिन पड़ने के चलते इस प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाता है और मान्यतानुसार भोलेनाथ के साथ-साथ शनि देव (Shani Dev) की पूजा भी की जाती है. पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के आधार पर शनि देव को न्याय का देवता कहते हैं. माना जाता है कि मन में बैर रखने वाले या किसी दूसरे का बुरा करने वाले को शनि ढैय्या झेलनी पड़ती है और उसपर शनि देव का प्रकोप पड़ता है. ऐसे में भक्तों की कोशिश होती है कि वे शनि देव को क्रोधित ना करें व उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रयासरत रहें. 

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शनि प्रदोष व्रत पूजा | Shani Pradosh Vrat  Puja 


शनि प्रदोष व्रत के दिन सुबह निवृत्त होकर स्नान करें. स्नास पश्चात गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है. इसके बाद भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा के लिए मंदिर जा सकते हैं या घर पर ही दीप, धूप, अक्षत और बेलपत्र से भोलेनाथ की पूजा करें. शिव जी को जल चढ़ाएं और ओम नम: शिवाय का जाप करें. 

शनि देव की पूजा के लिए शाम के समय शनि देव के समक्ष सरसो का दीया जलाया जाता है. यह दीया पीपल के पेड़ के नीचे भी जलाया जा सकता है. इसके साथ ही, निम्न दिए दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ भी किया जा सकता है. 

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ  वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं  योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च  सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु  मे  देव  वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद  सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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