अवनि अवित्तम से लेकर नारियल पूर्णिमा तक, जानें कहां किस नाम से मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व 

Raksha Bandhan 2025: श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन भाई की कलाई पर पवित्र रक्षासूत्र या फिर कहें राखी बांधने वाला रक्षाबंधन पर्व देश के अलग-अलग हिस्सों में आखिर किस नाम और मान्यता के साथ मनाया जाता है, जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

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श्रावणी से लेकर राखी तक जानें कहां किस नाम से मनाया जाता है रक्षाबंधन

Raksha bandhan 2025 significance and traditions: सावन महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ने वाले जिस रक्षाबंधन पर्व का इंतजार बहनों को पूरे साल बना रहता है उसका हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है. इस साल यह पावन पर्व 09 अगस्त 2025, शनिवार के दिन मनाया जाएगा. खास बात ये कि इस साल यह पर्व भद्रा (Bhadra) से मुक्त है. पवित्र धागे या फिर कहें रक्षा पोटली से जुड़ा यह पावन पर्व अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नामों और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है.

उत्तर भारत में इसे राखी (Rakhi) के रूप में तो दक्षिण भारत में अवनि अवित्तम और नारली पूर्णिमा आदि के रूप में मनाते हैं. आइए भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक और जीवन में शुभता और सौभाग्य को बढ़ाने वाले इस पावन श्रावण पूर्णिमा पर्व की लोकमान्यताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं.

नारली पूर्णिमा

उत्तर भारत की तरह कोंकण और महाराष्ट्र आदि के समुद्र तटीय क्षेत्रों में श्रावण पूर्णिमा (Sawan Purnima 2025) का पावन पर्व नारली या नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. यहां पर बहनें जहां अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं तो वहीं मछुआरे समुद्र के देवता भगवान वरुण की विशेष पूजा करते हैं. लोकमान्यता के अनुसार नारली पूर्णिमा (Narali Purnima 2025) के दिन समुद्र देवता की पूजा करने पर मुछआरों का जीवन पानी के भीतर सुरक्षित रहता है. चूंकि मछुआरों द्वारा समुद्र में मछली पकड़ने आदि से ही उनकी रोजी-रोटी चलती है, इसलिए इस पावन पर्व पर वे समुद्र देवता को नारियल अर्पित करके उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं. नारली पूर्णिमा पर मछुआरे अपनी नाव की पूजा भी करते हैं. उत्तर भारत की तरह यहां पर भी समुद्र तट पर जाकर जनेउ बदलने की परंपरा है.

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अवनि अवित्तम

श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों में अवनि अवित्तम (Avani Avittam) पर्व मनाया जाता है. अवनि जहां तमिल कैलेंडर के एक महीने का नाम है तो वहीं अवित्तम 27 नक्षत्र में से एक माना जाता है. यहां पर भी यह पर्व यज्ञोपवीत से जुड़ा होता है. इसे मुख्य रूप से वेदपाठी ब्राह्मण (Brahmin) लोग मनाते हैं. रक्षाबंधन के दिन यहां पर जनेउ धारण करने वाले लोग समुद्र के किनारे जाकर विधि-विधान से अपना यज्ञोपवीत बदलते हैं. इस पर्व को भगवान श्री विष्णु (Lord Vishnu) के हयग्रीव अवतार से भी जोड़कर देखा जाता है. मान्यता है कि श्री हरि ने वेदों (Vedas) की रक्षा के लिए घोड़े के सिर वाला अवतार लिया था. 

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श्रावणी पर्व

उत्तराखंड में रक्षाबंधन के पर्व पर आम राज्यों की तरह बहनें अपने भाईयों की कलाई में राखी बांधकर भाई और स्वयं के लिए मंगलकामना करती हैं लेकिन इसके साथ यहां पर श्रावणी (Shrawani) पर्व भी पूरे विधि-विधान से मनाया जाता है. इस दिन लोग गंगा या फिर पवित्र नदी के किनारे स्नान-ध्यान, ऋषियों की पूजा, तर्पण आदि करके नया यज्ञोपवीत यानि जनेउ धारण करते हैं. इस दिन मंदिर के पुजारी अपने यजमान को विशेष रूप से रक्षासूत्र बांधकर उन्हें सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं. 

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वैदिक परंपरा

उत्तर भारत में बहनों के द्वारा जहां अपने भाईयों की कलाई में वैदिक राखी या फिर कहें रक्षा पोटली बांधने की परंपरा रही है तो वहीं राजस्थान में राम राखी (Ram Rakhi) और चूड़ा राखी या लुंबा बांधने की परंपरा है. वैदिक राखी जिसमें एक पोटली में अक्षत, चंदन, रोली और स्वर्ण आदि रखकर भाई को बांधा जाता है तो वहीं राम राखी एक एक पीले रंग का फुलरा लगा धागा होता है, जो अपने आराध्य देवता को बांधा जाता है. इसी प्रकार ननद द्वारा अपनी भाभी की चूड़ियों में चूड़ा राखी बांधी जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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