Sawan Purnima 2022: सावन मास की पूर्णिमा 11 और 12 अगस्त दोनों ही दिन है. हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन पूर्णिमा की शुरुआत आज सुबह 11 बजकर 38 मिनट से हो चुकी है. वहीं सावन मास की पूर्णिमा तिथि 12 अगस्त को सुबह 7 बजकर 05 मिनट तक रहने वाली है. ऐसे में दोनों दिन सावन पूर्णिमा मनाई जाएगी. सावन पूर्णिमा के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है. इसके अलावा इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण किए जाते हैं. साथ ही इस दिन श्रावणी उपकर्म का भी खास महत्व है. इस दिन नई जनेऊ धारण करने का विधान है. आइए जानते हैं कि क्या होती है श्रावणी उपकर्मा और इस दिन नया जनेऊ क्यों धारण किया जाता है.
श्रावण पूर्णिमा पर क्यों धारण किया जाता है नया जनेऊ
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सावन मास की पूर्णिमा जनेऊ बदलने के लिए सबसे उत्तम दिन होता है. कहा जाता है कि इस दिन सुहब काल स्नान के पश्चात पूजा-पाठ करके नया जनेऊ धारण करना अच्छा होता है. मान्यतानुसार, इस दिन नया जनेऊ धारण करते वक्त मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लिया जाता है.
हिंदू धर्म के 16 संस्कार में से एक उपनयन यानी यज्ञोपवीत संस्कार भी है. धार्मिक दृष्टिकोण से जनेऊ धारण करने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है, इसलिए छोटी उम्र में ही बच्चों को जनेऊ धारण करा दी जाती है.
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, जनेऊ को सत, रज, तम का प्रतीक है. इसके तीन सूत्र ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक भी माने जाते हैं. इसे पहनने से इन सभी का आशीर्वाद जातक को मिलता है.
मान्यता यह भी है कि जनेऊ पहनने वालों के पास बुरी शक्तियां नहीं आती हैं. यज्ञोपवीत संस्कार के कारण मानसिक बल भी मिलता है. इसके अलावा यह लोगों को हमेशा बुरे कामों से बचने की याद दिलाता रहता है.
श्रावणी उपाकर्म का महत्व | Sawan Upakarma Importance
सावन पूर्णिमा में जनेऊ धारण करना भी श्रावणी उपाकर्म का हिस्सा माना गया है. श्रावणी उपाकर्म में दस विधि से स्नान कर पितरों का तर्पण किया जाता है. इसके साथ ही आत्म कल्याण के लिए मंत्रों के साथ यज्ञ में आहुतियां दी जाती हैं. श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)