Tripund Kaise Lagaye: सनातन पंरपरा में पूजा के दौरान तिलक का प्रयोग अत्यंत ही शुभ माना गया है. हिंदू (Hindu) मान्यता के अनुसार बगैर तिलक के कोई भी पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन आदि सत्कर्म सफल नहीं होते हैं. सनातन परंपरा में इसे ईश्वर का प्रसाद और आशीर्वाद माना गया है. यही कारण है कि भगवान शिव पर आस्था रखने वाले भक्त अक्सर अपने माथे पर महादेव का महाप्रसाद माने जाने वाला त्रिपुण्ड धारण किए रहते हैं. हिंदू धर्म में त्रिपुंड (Tripundra) का क्या महत्व है? इसे लगाने की विधि और मंत्र क्या है? त्रिपुंड (Tripund) को कैसे लगाना चाहिए? त्रिपुंड लगाने पर क्या पुण्य लाभ मिलता है? आइए इन सभी सवालों के जवाब इस लेख के जरिये पाते हैं.
त्रिपुंड का धार्मिक महत्व (Significance of Tripundra)
गंगा सभा, हरिद्वार के सचिव और तीर्थ पुरोहित उज्जवल पंडित के अनुसार त्रिपुंड भगवान शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक हैं. वासुदेवोपनिषद में त्रिपुंड्र या फिर कहें त्रिपुंड को त्रिमूर्ति, तीन व्याहृती (संध्या के समय उच्चारण किए जानेवाले विशेष मंत्र) एवं तीन छंद का प्रतीक बताया गया है. त्रिपुंड ज्ञान, पवित्रता और तप यानि योगसाधना को दर्शाता है. उज्जवल पंडित बताते हैं कि इसकी ऊपरी रेखा देवगुरु बृहस्पति, मंझली रेखा सूर्यपुत्र शनि एवं निचली रेखा भगवान भास्कर यानि सूर्यदेव की प्रतीक है.
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त्रिपुंड लगाने का धार्मिक महत्व और लाभ (Tripundra benefits)
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के वेद विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर देवेंद्र प्रसाद मिश्र के अनुसार शिव पुराण (Shiva Purana) में त्रिपुंड की बड़ी महिमा बताई गई है. पुराणों के अनुसार अगर आप किसी व्यक्ति के माथे पर लगे त्रिपुंड का दर्शन भी कर ले तो सारे अमंगल नष्ट हो जाते हैं. प्रोफेसर मिश्र के अनुसार त्रिपुंड को लोग तमाम तरह के चंदन आदि से लगाते हैं, लेकिन इसे भस्म (Bhasma) से लगाने का सबसे ज्यादा पुण्यफल माना गया है. त्रिपुंड को आयुवर्धक माना गया है. इसे लगाने से देवताओं और ऋषियों की आयु भी आपको प्राप्त होती है.
त्रिपुंड लगाने की विधि और नियम (How to apply Tripundra Tilak on forehead)
भगवान शिव (Lord Shiva) का आशीर्वाद माना जाने वाला पवित्र त्रिपुंड हमेशा तन-मन से शुद्ध होकर ही लगाना चाहिए. त्रिपुंड शिवलिंग (Shivling) पर लगाना हो या फिर खुद के माथे पर, कभी भूलकर भी इसे अशुद्ध अवस्था में नहीं लगाना चाहिए. त्रिपुंड लगाते समय आपका मुंह हमेशा पूर्व या फिर उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए. त्रिपुंड को कभी भी सीधे अपने माथे पर नहीं लगाना चाहिए, बल्कि इसे सबसे पहले शिवलिंग अथवा भगवान शिव की मूर्ति पर लगाने के बाद बची हुई भस्म को प्रसाद मानते हुए अपने माथे पर लगाना चाहिए. त्रिपुंड हमेशा तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुली की सहायता से बाएं से दाएं ओर की तरफ लगाना चाहिए.
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त्रिपुंड लगाने का मंत्र (Tripund Tilak mantra)
यदि आप माथे पर भस्म का त्रिपुंड लगाने जा रहे हैं तो आपको सबसे पहले उसे अभिमंत्रित करना चाहिए. ऐसा करने के लिए आपको अपने बाएं हाथ की हथेली पर भस्म रखकर उसमें जल मिलाते हुए नीचे दिये गये मंत्र को पढ़ें -
ॐ अग्पिरित भस्म. ॐ वायुरिति भस्म. ॐ जलमिति भस्म. ॐ व्योमेति भस्म. ॐ सर्वं ह वा इदं भस्म. ॐ मन एतानि चक्षूंसि भस्मानीति.
इसके बाद ॐ नम: शिवाय मंत्र का मन में जप करते हुए अपने माथे, ग्रीवा, भुजाओं और हृदय स्थान पर भस्म लगाएं. ऐसा करते हुए नीचे दिये गये मंत्र का उच्चारण करें.
ॐ त्रयायुषं जमदग्नेरिति ललाटे. ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषमिति ग्रीवायाम्. ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति भुजायाम्. ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदये.
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त्रिपुंड का उपाय (Tripund ke upay)
यदि आपकी कुंडली में चंद्र दोष है तो आज सावन के सोमवार पर भगवान शिव को चंदन का त्रिपुंड लगाएं और फिर बचे हुए चंदन से अपने माथे पर प्रसाद स्वरूप धारण करें. मान्यता है कि इस उपाय को करने पर चंद्र दोष से जुड़े कष्ट दूर होते हैं. चूंकि शिव के मस्तक पर शोभायमान चंद्रमा का संबंध मन से है, आज शिव पूजा में इस उपाय को करने पर साधक के सभी मानसिक कष्ट दूर होते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)