Sai Chalisa: गुरुवार को साईं बाबा की पूजा के दौरान करें साईं चालीसा का पाठ

गुरुवार (Thursday) का दिन साईं बाबा को समर्पित है और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग इस दिन व्रत (Fast) रखते हैं. कहा जाता है कि जब भी साईं बाबा की पूजा की जाए तो उनकी चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए.

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नई दिल्ली:

कहते हैं कि शिरडी के साईं बाबा (Shirdi Sai Baba) की जो भी मन से पूजा करता है या फिर उन्हें केवल याद करता है, वह उनकी झोली खुशियों से भर देते हैं. आज का दिन साईं बाबा को समर्पित है. मान्यता है कि अगर आज के साईं बाबा की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाए तो व्यक्ति का हर दुख दूर हो जाता है. इनकी अराधना हर धर्म के भक्त करते हैं. साईं बाबा किसी भी धर्म में भेदभाव नहीं रखते हैं. वह हमेशा कहते थे कि, जो उनकी तरफ देखेगा, वो उनकी तरफ जरूर देखेंगे. कहा जाता है कि जब भी साईं बाबा की पूजा की जाए तो उनकी चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए, तो आइए पढ़ते हैं साईं चालीसा.

साईं चालीसा | Sai Chalisa

पहले साईं के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं।

कैसे शिरडी साईं आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥


कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना।

कहां जन्म साईं ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना॥

Shirdi Sai Baba Mantra: साईं बाबा खुशियों से भर देंगे झोली, गुरुवार को पूजा के दौरान पढ़ें ये मंत्र

कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं।

कोई कहता साईं बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं॥


कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साईं।

कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नंदन हैं साईं॥


शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते।

कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साईं की करते॥


कुछ भी मानो उनको तुम, पर साईं हैं सच्चे भगवान।

बड़े दयालु दीनबंधु, कितनों को दिया जीवन दान॥


कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात।

किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात॥


आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुंदर।

आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर॥

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कई दिनों तक भटकता, भिक्षा मांग उसने दर-दर।

और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर॥


जैसे-जैसे उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान।

घर-घर होने लगा नगर में, साईं बाबा का गुणगान॥


दिग दिगंत में लगा गूंजने, फिर तो साईं जी का नाम।

दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥


बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूं निर्धन।

दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुख के बंधन॥


कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान।

एवमस्तु तब कहकर साईं, देते थे उसको वरदान॥


स्वयं दुखी बाबा हो जाते, दीन-दुखीजन का लख हाल।

अंत:करण श्री साईं का, सागर जैसा रहा विशाल॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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