प्रीह विहियर मंदिर: भगवान शिव की आस्था से जुड़ा केंद्र, जहां दिखता है भारतीय संस्कृति का पूरा प्रभाव

विश्व में तमाम देशों के बीच चल रहे युद्ध और तनाव के बीच कंबोडिया और थाईलैंड ने भी एक दूसरे पर हमला करना शुरु कर दिया है. इस टकराव के बीच जो शिव मंदिर खबरों की खबर में बना हुआ है, उससे जुड़े राज जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

Preah Vihear Shiva Temple of Cambodia: आस्था से जुड़े स्थलों को लेकर सिर्फ देश में ही नहीं ​पूरे विश्व में अक्सर टकराव देखने को मिलते रहे हैं. ताजा मामला थाईलैंड और कंबोडिया के बीच का है. जहां 118 साल पुराने सीमा विवाद के बीच एक शिव मंदिर (Shiva Temple) खबरों की खबर में बना हुआ है. प्रीह विहियर मंदिर को लेकर यह विवाद नया नहीं है. इससे पहले इन दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव तक हो चुके हैं. अभी भी इस मंदिर के पास की सीमा को लेकर दोनों के बीच संघर्ष जारी है. प्रीह विहियर मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह खमेर शासकों द्वारा 11वीं सदी में बनवाया गया था. 

यहां दिखता है भारतीय संस्कृति का प्रभाव 

बहरहाल प्रीह विहियर मंदिर की बात करें तो यह थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर डोंगरेक पहाड़ी के शिखर पर स्थित है, जहां से नीचे का पूरा क्षेत्र नजर आता है. इस प्रचाीन मंदिर से जुड़े इतिहास पर नजर डालें तो एक समय भारत और कंबोडिया के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध रहा है. चूंकि वहां पर उस दौर में भारतीय संस्कृति का बहुत ज्यादा प्रभाव था, इसलिए वहां पर शैव (Shaiva) और वैष्णव (Vaishnav) दोनों मतों का प्रचार-प्रसार हुआ. गौरतलब है कि वहां का अंकोरवाट मंदिर भगवान श्री विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित है. जिसे भी देखने के लिए भारत ही नहीं दुनिया भर से लोग देखने के लिए पहुंचते हैं. 

मंदिर की वास्तुकला द्रविण शैली पर आधारित

प्रीह विहियर मंदिर की बात करें तो इस पर पूरा प्रभाव दक्षिण भारत के चोल राजाओं का रहा है. यही कारण है कि इस शिव मंदिर की वास्तुकला पर आपको द्रविण शैली की छाप नजर आएगी. मंदिर में बने गोपुरम आदि को देखने पर आपको वैसा ही प्रतीत होगा. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के इतिहासकार डा. सुशील पांडेय के अनुसार प्रीह विहियर शिव मंदिर को स्थानीय स्तर पर भगवान शिव को शिखरेश्वर अथवा भद्रेश्वर के नाम से जाना गया और जिस खमेर राजा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था, उसका भी मूल भारत ही रहा है. मंदिर में सिर्फ भगवान शिव को ही नहीं स्थापित किया गया बल्कि उसकी दीवारों पर कई लोककथाओं के साथ अर्जुन और भगवान ​श्रीकृष्ण (Lord Krishna) को भी उकेरा गया है. 

Advertisement

कभी मंदिर के लिए मिलता था अनुदान

डा. सुशील पांडेय के अनुसार खमेर राजाओं के दौर में इस मंदिर का स्वर्णकाल हुआ करता था और उस समय इसकी बहुत ज्यादा महत्ता थी. उस दौर में इन मंदिरों को सरकारी अनुदान मिलता था, जिसकी मदद से यह हमेशा मेनटेन रहा करते थे. उस काल में ये मंदिर अपनी एक अलग ही आभा लिए थे, लेकिन जैसे ही खमेर शासकों का राज खत्म हुआ, वहां पर दूसरे वंश आ गये. अनुदान बंद होने के बाद मंदिर में जो सामाजिक-आर्थिक भूमिका थी वो खत्म हो गई. 

Advertisement

अब बचे हैं सिर्फ मंदिर के अवशेष

इसके बाद जब वहां पर फ्रांस का कब्जा हुआ तो तो धीरे-धीरे वहां की सांस्कृतिक विरासत ही नष्ट होती चली गई. कंबोडिया में हिंदू शासकों का शासनकाल समाप्त होते ही वहां के मंदिर बौद्धों के नियंत्रण में आ गये. इसके बाद वहां पूजा-पाठ नहीं होने के कारण यह प्रीह विहियर मंदिर सिर्फ एक प्रतीक मात्र में रह गये और वहां पर इस शिव मंदिर के कुछ अवशेष ही बाकी हैं. वर्तमान में इसमें किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधियां नहीं होती हैं, लेकिन यह एक प्राचीन वास्तुकला की एक विरासत है, इसलिए यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिया हुआ है. 

Advertisement

वर्तमान में इस मंदिर का धार्मिक पक्ष कम सांस्कृतिक रूप से ज्यादा देखने को मिलता है. चूंकि यह मंदिर पहाड़ी के शिखर पर स्थित है, इसलिए वहां एक अलग ही प्राकृतिक सौंदर्य नजर आता है. यही कारण है कि वहां की सरकार इसे पर्यटन स्थल के रूप में प्रमोट भी करती रही है. कभी धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधयों का केंद्र रहे इस इस प्रीह विहियर मंदिर को युनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल करने के बाद से यहां पर बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते रहे हैं.

Advertisement

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Featured Video Of The Day
Weather: भारी बारिश ने मचाया हाहाकार, कच्चा मकान गिरने से मासूम की मौत | Monsoon | MP | Maharashtra