Putrada Ekadashi Ka Vrat Kaise Kiya Jata Hai: सनातन परंपरा में जिस एकादशी व्रत को भगवान श्री विष्णु की कृपा बरसाने वाला माना जाता है, वह साल के अंत में 30 और 31 तारीख को रखा जाएगा. स्मार्त जहां इस व्रत को 30 तारीख को रखेंगे तो वहीं इस्कॉन के राष्ट्रीय संचार निदेशक बृजेंद्रनंदनदास जी महाराज के अनुसार वैष्णव परंपरा से जुड़े साधक इस व्रत को साल के आखिरी दिन यानि 31 तारीख को प्रारंभ करके अगले दिन यानि नये साल की पहली तारीख को शुभ मुहूर्त में पारण करेंगे.आइए पौष मास के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली इस पावन पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा विधि, नियम, महत्व और महाउपाय के बारे में विस्तार से जानते हैं.
पुत्रदा एकादशी व्रत की सही विधि
- संतान की सुख-समृद्धि और उसका सौभाग्य बढ़ाने वाली पुत्रदा एकादशी व्रत को करने के लिए साधक को इस व्रत के ठीक एक दिन पहले यानि दशमी तिथि की शाम से ही इस व्रत के नियम का पालन प्रारंभ कर देना चाहिए और सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए.
- पुत्रदा एकादशी व्रत रखने वाले साधक को प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर तन-मन से पवित्र हो जाना चाहिए. यदि संभव हो तो इस दिन गंगा स्नान करना चाहिए. अगर आप गंगा तट न जा सकें तो अपने घर में नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं.
- हिंदू मान्यता के अनुसार साधक को एकादशी व्रत वाले दिन श्री हरि को प्रिय लगने वाले पीले रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए तथा पूजा में पीले पुष्प, पीली मिठाई आदि अर्पित करना चाहिए.
- स्नान-ध्यान के बाद सबसे पहले श्री हरि का स्वरूप माने जाने वाले भगवान श्री सूर्य नारायण को अर्घ्य देना चाहिए. इसके बाद पुत्रदा एकादशी व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लेना चाहिए.
- पुत्रदा एकादशी व्रत वाले दिन साधक को अपने पूजा घर या फिर ईशान कोण में एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु का चित्र या फिर मूर्ति या फिर बाल गोपाल को स्थापित करके गंगाजल, पीला चंदन, केसर, पुष्प, धूप, दीप, फल, मिष्ठान उनकी विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए.
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- आपक एकादशी व्रत की पूजा तब तक अधूरी है, जब तक आप श्री हरि को विष्णुप्रिया कहलाने वाली तुलसी को अर्पित नहीं करते, लेकिन ध्यान रहे कि एकादशी के दिन इसके पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए. ऐसे में एकादशी व्रत से ठीक एक दिन पहले इसके पत्ते तोड़ कर रख लें.
- भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजन करने के बाद एकादशी व्रत की कथा को कहना या फिर सुनना चाहिए. साथ ही साथ संतान सुख की कामना लिए हुए तुलसी की माला से 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र आधिक से अधिक जप करना चाहिए.
- पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा के अंत में श्रद्धापूर्वक आरती करें और प्रसाद बांटने के बाद स्वयं भी ग्रहण करें. ध्यान रहे कि इस व्रत में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है. यदि आप व्रत नहीं भी हैं तो आप इस दिन चावल एवं तामसिक चीजों का सेवन भूलकर भी न करें.
- पुत्रदा एकादशी व्रत को नियम-संयम के साथ रखते हुए अगले दिन द्वादशी तिथि में शुभ मुहूर्त में स्नान-ध्यान करने के बाद इस व्रत का श्रद्धापूर्वक पारण करें.
पुत्रदा एकादशी व्रत का महाउपाय
- पुत्रदा एकादशी व्रत का पुण्यफल पाने के लिए इस व्रत का जब पारण करें तो उस समय किसी ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल, अन्न, वस्त्र और धन आदि का दान जरूर करें.
- पुत्रदा एकादशी व्रत वाले दिन शाम के समय माता लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाने वाली तुलसी जी के पास गाय के दूध से बने शुद्ध देशी घी का दीया जलाकर उनकी 11 बार परिक्रमा करें.
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- पुत्रदा एकादशी व्रत वाले दिन श्री हरि की पूजा में शंख जरूर बजाएं और यदि आपके पास दक्षिणवर्ती शंख हो तो उसमें जल भर कर श्री हरि का विशेष रूप से अभिषेक करें.
- पुत्रदा एकदशी व्रत वाले दिन संतान सुख का आशीर्वाद पाने के लिए विशेष रूप से श्री विष्णु सहस्त्रनाम या फिर संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें.
पुत्रदा एकादशी का धार्मिक महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी यानि पुत्रदा एकादशी व्रत को विधि-विधान को करने से नि:संतान लोगों को संतान सुख की प्राप्ति होती है तो वहीं जिनकी संतान होती है, उसे सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह व्रत संतान को सभी तरह के शुभ फल दिलाने के साथ समृद्धि प्रदान करता है. पुत्रदा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से संतान अपने माता-पिता की सेवा करते हुए उन्हें सभी सुख प्रदान करती है. पुत्रदा एकादशी व्रत साधक को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्रदान करते हुए सभी प्रकार के पाप एवं दोष से मुक्त करता है. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से साधक सभी सुखों को भोगता हुआ अंत में विष्णु लोक को प्राप्त होता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)














