Pitru Paksha: आज से पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) की शुरुआत हो रही है, जो 06 अक्टूबर तक रहेंगे. इन दिनों पितरों को खुश करने के लिए और उनका आर्शीवाद पाने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं. कहा जाता है कि श्राद्ध के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता और वह पिंडदान (Pind Daan), अन्न व जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं. तर्पण और पिंडदान करने पर पितरों को बल मिलता है. वो शक्ति प्राप्त करके परलोक जाते हैं और अपने परिवार का कल्याण करते हैं. मान्यताओं के अनुसार, कई जगह पर बालू और चावल की पिंडी बनाकर पिंडदान किया जाता है. गया में बालू से पिंडदान किया जाता है. बालू से पिंडदान क्यों किया जाता है इसके बारे में लोगों के मन में कई सवाल होते हैं. बालू से पिंडदान (Pind Daan) का उल्लेख वाल्मिकी रामायण में मिलता है. आज हम इसी से जुड़ी जानकारियां आप तक पहुंचा रहे हैं.
बालू का पिंडदान
मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता और वह पिंडदान, अन्न व जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं. तर्पण और पिंडदान (Pind Daan) करने पर पितरों को बल मिलता है. इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय कर पाते हैं. इन्हीं की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों का कल्याण भी करते हैं.
गया में इसलिए करतें हैं बालू का पिंडदान
रामायण के अनुसार, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे. श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की ओर गए. उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान (Pind Daan) का समय निकला जा रहा है. इसी के साथ देवी सीता को दशरथजी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए, जो उनसे पिंडदान के लिए कह रही थी. माता सीता ने पिंडदान की तैयारी की, लेकिन कुछ नहीं होने की वजह से उन्होंने बालू का पिंडदान किया.
माता सीता ने फल्गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फल्गू नदी के किनारे श्री दशरथजी महाराज का पिंडदान कर दिया. इससे उनकी आत्मा प्रसन्न होकर सीताजी को आर्शीवाद देकर चली गई. मान्यता है कि तब से ही गया में बालू से पिंडदान (Pind Daan) करने की परंपरा की शुरुआत हुई. बालू के पिंडदान करने से पितरों की आत्मा शांत होती है.