Parivartini Ekadashi 2025 Timing Date Muhurat: आज है परिवर्तनी एकादशी, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व

Parivartini Ekadashi: सनातन परंपरा में परिवर्तनी एकादशी का व्रत का क्या धार्मिक महत्व? यह व्रत किस देवता के लिए और कब रखा जाता है? परिवर्तनी एकादशी व्रत को करने से क्या लाभ होता है? परिवर्तनी एकादशी के शुभ मुहूर्त से लेकर संपूर्ण पूजा विधि और धार्मिक महत्व जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

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परिवर्तनी एकादशी व्रत की पूजा विधि एवं धार्मिक महत्व

Parivartini Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में भगवान श्री विष्णु की कृपा पाने के लिए किसी भी महीने के कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी ​का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. श्री हरि की कृपा बरसाने वाली एकादशी का महत्व तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब यह भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में पड़ती है और परिवर्तनी या फिर जलझूलनी एकादशी कहलाती है. इस साल परिवर्तनी एकादशी का व्रत कब पड़ेगा और इसकी किस विधि से पूजा करनी चाहिए? पूजा​ विधि से लेकर शुभ मुहूर्त तक, सभी जरूरी बातों को आइए विस्तार से जानते हैं. 

परिवर्तनी एकादशी का शुभ मुहूर्त 

हिंदू धर्म में जिस व्रत को करने पर व्यक्ति के अच्छे दिन आते हैं और उसे सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है, वह परिवर्तनी एकादशी का व्रत इस साल 03 सितंबर2025 को रखा जाएगा और इस व्रत का पारण अगले दिन 04 सितंबर 2025 को दोपहर 01:36 से 04:07 बजे के बीच होगा. 

परिवर्तनी एकादशी व्रत की पूजा विधि 

परिवर्तनी एकादशी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें और स्नान-ध्यान करने के बाद पूजा से जुड़ी सभी सामग्री अपने पास रख लें. इसके बाद अपने घर के पूजा स्थान पर श्री हरि को पहले शुद्ध जल अर्पित करें फिर उसके बाद धूप-दीप, रोली-चंदन, फल-फूल, मिष्ठान, नारियल, पंचामृत, तुलसीदल, आदि अर्पित करके एकादशी व्रत की कथा कहें. कथा को कहने या फिर सुनने के बाद श्री हरि के मंत्र का तुलसी की माला से कम से कम एक माला जप करें.

एकादशी व्रत बगैर पारण के अधूरा रहता है, इसलिए इसके अगले दिन विधि-विधान से इस व्रत का पारण कर श्री हरि से आशीर्वाद मांगते हुए अपनी मनोकामना कहें तथा किसी देवालय में जाकर पुजारी को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें. 

परिवर्तनी एकादशी का धार्मिक महत्व

हिंदू मान्यता के अनुसार परिवर्तनी एकादशी के दिन पहली बार भगवान श्री कृष्ण ब्रज यशोदा और नंद बाबा के साथ ब्रज में भ्रमण के लिए निकले थे. इसी कारण से इस दिन भक्त कान्हा को पालकी में रखकर उन्हें घुमाते हैं और उन्हें झूला झुलाते हैं. इस पर्व को जलझूनी एकादशी भी कहते हैं. मान्यता ये भी है कि इसी दिन योग निद्रा में रहने वाले भगवान श्री विष्णु अपनी करवट बदलते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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