कब और कैसे शुरु हुई नाग देवता की पूजा, जानें नाग पंचमी से जुड़ी मान्यताएं

Nag Panchami 2025: नाग पंचमी के दिन देश भर में लोग सुख-सौभाग्य की कामना लिए हुए नाग देवता की पूजा करते हैं. शिव को समर्पित श्रावण मास की पंचमी पर की जाने वाली इस नाग पूजा से जुड़ी मान्यता और परंपरा आदि के बारे में जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

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Nag puja traditions and belief: सनातन परंपरा में नाग पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. दुनिया भर में तमाम तरह के सांपों की प्रजाति पाई जाती है लेकिन यदि पुराणों की बात करें तो उसमें कहीं पर 78 तो कहीं पर 68 प्रकार के नागों का का उल्लेख मिलता है. इन तमाम नागों में शेषनाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोट, शंखू, कालिया, धृतराष्ट्र आदि नाग का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. देश के विभिन्न हिस्सों में नाग मंदिर हैं, जहां पर नाग देवता की पूजा अलग-अलग मान्यताओं के आधार पर की जाती है. आइए नाग पंचमी पर की जाने वाली नाग पूजा से जुड़ी परंपराओं और मान्यताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं. 

Photo Credit: freepic

क्या महाभारत काल में शुरु हुई नाग पूजा? 

नाग देवता से जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई. जिसके अनुसार जब राजा परीक्षित की तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हुई तो उनके पुत्र राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प जाति का सर्वनाश करने का निर्णय लिया और उन्हें समाप्त करने के लिए बड़ा यज्ञ करवाया. जब एक-एक करके नाग उस अग्नि में जाकर खत्म होने लगे तब आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रुकवा कर नागों की रक्षा की थी. मान्यता है कि तभी से नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा की परंपरा प्रारंभ हुई. 

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नाग पूजा का भगवान कृष्ण से क्या है कनेक्शन?

नागपंचमी के दिन की जाने वाली पूजा को भगवान श्री कृष्ण की लीला से भी जोड़कर देखा जाता है. मान्यता है कि द्वापरयुग में ब्रज क्षेत्र में यमुना कालिया नाग पहुंच गया और लोगों को सताने लगा तो पूर्णावतार माने जाने वाले भगवान श्री कृष्ण ने उसका मर्दन करते हुए उसके फन पर चढ़कर ​नृत्य किया. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को ब्रज मंडल छोड़कर पाताल लोक जाने का आदेश दिया. 

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नाग पंचमी पर क्यों पीटी जाती है गुड़िया?

नाग पंचमी पर बहुत से स्थान पर गुड़िया का पर्व मनाया जाता है. इस दिन तालाब में गुड़िया को पीटने की परंपरा है. हिंदू मान्यता के अनुसार एक बार एक शिव भक्त मंदिर में सर्प को प्रतिदिन दूध पिलाया करता था. जिसके कारण दोनों में मित्रता हो गई. एक दिन जब वह अपनी बहन के साथ उस मंदिर में पहुंचा तो सर्प उस शिव भक्त को देखते ही उसके पैरों से लिपट गया. जब बहन को उस सर्प से अपने भाई की जान को खतरा महसूस हुआ तो उसने डंडे से उसे मार दिया. बाद में जब उसे वास्तविकता पता चली तो उसे बड़ा पश्चाताप हुआ. मान्यता है कि अनजाने में हुए उस अपराध के लिए प्रतीकात्मक सजा आज तक गुड़िया को पीटने के रूप में दी जाती है. 

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नाग पंचमी से जुड़ी अन्य मान्यताएं

  • जिस प्रकार हमारे यहां कुल देवता अथवा आराध्य देवता की पूजा की जाती है, कुछ वैसे ही देश के तमाम क्षेत्रों में नाग देवता को लोक देवता, ग्राम देवता या फिर कहें स्थान देवता के रूप में पूजा जाता है. 
  • नाग पंचमी के दिन मिट्टी के ढेर पर एक दूधिया बाड़ पौधा लगाने की भी परंपरा है. सनातन परंपरा में इस पौधे को मां मनसा का स्वरूप मानकर पूजा जाता है. जो सर्पों की देवी मानी जाती हैं. 
  • पूर्वोत्तर क्षेत्रों में यदि मुख्य रूप से बिहार की बात करें तो महिलाएं दीवार पर गोबर से नाग की आकृति बनाकर उसकी पूजा दूध एवं लावा से की जाती है. कुछ इसी प्रकार परंपरा उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिलती है. 
  • नाग पंचमी पर कुछ जगह चूल्हा न जलाने और दूध न उबालने जैसी मान्यताओं का भी लोग पालन करते हैं. ऐसी परंपरा को पालन करने वाले एक दिन पूर्व खाने की चीजें बना लेते हैं और इस दिन बासी भोजन करते हैं. 

नाग पंचमी की पूजा के लाभ  

हिंदू मान्यता है कि यदि नागपंचमी पर कोई महिला विधि-विधान से नाग देवता की पूजा करती है तो उसे संतान सुख प्राप्त होता है. नाग देवता की कृपा से उसके कुल की वृद्धि होती है. दक्षिण भारत में मनोकामना के पूरे होने पर पत्थर से बनी नाग प्रतिमा को मंदिर अथवा किसी पवित्र वृक्ष के नीचे चढ़ाने और पूजने का विधान है. ज्योतिष के अनुसार नाग पंचमी के दिन विधि-विधान से नाग पूजा करने पर कुंडली में स्थित कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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